Haryana News: जगाधरी के श्री गौरी शंकर मंदिर में मिली छठी शताब्दी का हनुमान जी का विग्रह स्वरूप, जानें क्या है इसकी मान्यता
नरेन्द्र सहारण, जगाधरी : Haryana News: श्री गौरी शंकर मंदिर में हनुमान जी का पौराणिक विग्रह स्वरूप मिला है। इसे छठी शताब्दी का माना जा रहा है। त्रेता युग में हनुमान ने शनिदेव जी के बल और पराक्रम के अहंकार को युद्ध में परास्त कर तोड़ दिया था। हनुमान ने शनिदेव को गदा से घायल कर अपनी पूंछ में लपेट लिया था। यह वही स्वरूप है। माना जा रहा है कि हनुमान जी का ऐसे ऊर्जावान स्वरूप की खोज अभी तक भारत में कहीं पर नहीं हुई है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय स्थित सरस्वती नदी उत्कृष्ट शोध केंद्र के निदेशक एआर चौधरी का मानना है कि गौरी शंकर मंदिर में मिली हनुमान जी की मूर्ति छठी शताब्दी की प्रतीत होती है। सिंध प्रांत के अंतिम हिंदू राजा दाहीर सेन ने इस प्रकार की मूर्तियों का निर्माण कराया था। मोहम्मद बिन कासिम ने 712 ईस्वी में जब भारत पर आक्रमण किया था, तब युद्ध में दाहीर सेन की मौत हो गई थी। वहीं राजस्थान के जिला पाली के गांव गुडलई निवासी मूर्तिकार रमेश के मुताबिक लोहे के औजारों से सिंदूर हटाने में मूर्ति को नुकसान हो सकता था। इसलिए लकड़ी से बने औजारों की मदद से मूर्ति से सिंदूर हटाने में काफी समय लग गया। यह मूर्ति बहुत मजबूत है।
छह कट्टे भर गए थे सिंदूर के कर दिया प्रवाहित
पुजारी पंडित रामस्वरूप उपाध्याय ने बताया कि पिछले दिनों हनुमान जी की मूर्ति पर चढे़ सिंदूर यानि चोले से थोड़ा सा टुकडा टूटकर गिर गया। इसके बाद राजस्थान से मूर्तिकार को बुला मूर्ति से सिंदूर को हटाने का काम शुरू किया गया। मूर्ति से उतारने के बाद सिंदूर का वजन किया गया तो यह साढ़े तीन क्विंटल पाया गया। मूर्ति से हटाए गए सिंदूर से छह कट्टे भर गए थे। प्रत्येक कट्टे में 60 से 65 किलो सिंदूर था। सिंदूर के सभी कट्टों को यमुना में प्रवाहित कर दिया गया है। सिंदूर हटने के बाद हनुमान जी का विग्रह स्वरूप सामने आया। उसे देखकर सभी दंग रह गए। मूर्ति में हनुमान जी ने शनिदेव को नीचे गिराकर पूंछ से लपेटा हुआ है। मंदिर की मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद कपालमोचन स्थिति ऋणमोचन तालाब में स्नान करने से पूर्व पांडवों ने इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग की अराधना की थी।
यह है पौराणिक कथा
त्रेता युग में शनिदेव को अपने बल और पराक्रम पर अहंकार हो गया था। शनिदेव ने हनुमान जी के बल और पराक्रम की प्रशंसा सुनी और उनसे युद्ध करने निकल पड़े। हनुमान जी प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन थे। घमंड में चूर शनिदेव ने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा। शनिदेव और बजरंग बली के बीच घमासान युद्ध हुआ। हनुमान जी ने शनिदेव जी को परास्त कर दिया। शनिदेव जी के शरीर पर कई जगह घाव बन गए। उन्हें पीड़ा से मुक्त करने के लिए शरीर पर सरसों का तेल लगाया। तभी से शनिदेव जी को सरसों का चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई। श्री गौरी शंकर मंदिर स्थित शिवलिग स्वयंभू है। जो कि सैकड़ों वर्ष पुराना है। शिवरात्रि पर दूर दराज के लोग मंदिर में शिवलिग के दर्शन के लिए आते हैं। पांडवों ने भी इस मंदिर में भगवान शिव की अराधना की थी।
जानें क्या है मंदिर की विशेषता
मंदिर परिसर में स्वयंभू शिवलिंग के अलावा राम दरबार, लड्डू गोपाल, हनुमान, नवग्रह, वामन भगवान, भगवान विष्णु-लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां संतोषी के अलावा अन्य मूर्तियां स्थापित है। मंदिर के साथ ही गौरी कुंड बनाया गया है। वामन द्वादशी पर इसी कुंड के किनारे कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। कुंड के चारों तरफ हरियाली के लिए पौधे रोपित किए गए हैं। शिवरात्रि पर भंडारे का आयोजन, सावन महीने में शिवपुराण की कथा, माघ महीने में श्रीमद्भागवत कथा, कार्तिक महीने में राम चरित मानस का जाप किया जाता है।
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