गुरनाम चढ़ूनी बोले- किसान आंदोलन से कांग्रेस के लिए माहौल कर दिया था तैयार, हुड्डा भुना नहीं पाए

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Kisan Andolan : कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ लंबे समय तक चले किसान आंदोलन पर एक बार फिर सवाल उठे हैं। इस आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी गुट) के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने हाल ही में दिए गए एक बयान में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की बात कही है। चढ़ूनी ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस का समर्थन किया था, लेकिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस समर्थन का लाभ नहीं उठा सके। चढ़ूनी का आरोप है कि कांग्रेस की हार के लिए हुड्डा जिम्मेदार हैं, जिन्होंने पार्टी के वफादार लोगों और किसान नेताओं को नजरअंदाज किया।

हुड्डा की आलोचना की

गुरनाम सिंह चढ़ूनी का यह बयान इंटरनेट पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह खुलकर हुड्डा की आलोचना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हुड्डा ने पार्टी के कई वफादार नेताओं और कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया, जिससे पार्टी को नुकसान हुआ। चढ़ूनी ने आरोप लगाया कि हुड्डा ने खुद के अलावा किसी के साथ समझौता नहीं किया और पार्टी के कई अहम लोगों को साइडलाइन कर दिया। चढ़ूनी ने कहा कि हुड्डा ने रमेश दलाल को साइड लाइन किया जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का केस अपनी जान जोखिम में डालकर लड़ा था। मुझे किनारे किया, जबकि मैंने चुनाव में भी उनकी मदद की थी। हर्ष छिकारा और बलराज कुंडू को किनारे किया। किसान लीडरों का ग्रुप उनके पास गया था, लेकिन उन्हें भी किनारे कर दिया। कुमारी सैलजा, किरण चौधरी, रणदीप सुरजेवाला को किनारे लगाते हुए आम आदमी पार्टी और इनेलो नेता अभय चौटाला को भी साइड कर दिया। हुड्डा ने सभी को किनारे किया तो परमात्मा ने अब उन्हें ही किनारे लगा दिया। कांग्रेस को उन्हें विपक्ष का नेता भी नहीं बनाना चाहिए।

भाजपा फिर हुई हमलावर

 

चढ़ूनी के इस बयान के बाद भाजपा को एक बार फिर मौका मिल गया है किसान आंदोलन की नीयत पर सवाल उठाने का। भाजपा नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि किसान आंदोलन के नाम पर कुछ लोग अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश कर रहे थे। भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने भी चढ़ूनी के बयान का हवाला देते हुए दावा किया कि यह आंदोलन किसानों के हित से ज्यादा राजनीतिक था और संयुक्त किसान मोर्चा का कांग्रेस से गठजोड़ था।

कृषि कानूनों के खिलाफ चले इस आंदोलन में सिंघु, टीकरी और झरोदा बॉर्डर पर किसानों ने लंबे समय तक मोर्चा संभाला था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकारों ने विवाद सुलझाने के प्रयास किए, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है।

 

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