Haryana Politics: बिना विपक्ष के नेता ही चलेगा हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र

नरेन्‍द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Politics: हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र 13 नवंबर से शुरू हो रहा है, लेकिन इस सत्र में कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा मुद्दा उभरकर सामने आया है। कांग्रेस के नेतृत्व में असमंजस की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेता महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं, और यही कारण है कि हरियाणा में कांग्रेस विधायक दल के नेता का चयन अब महाराष्ट्र के चुनाव के बाद किया जा सकता है। वर्तमान में कांग्रेस के 37 विधायक हैं, और सदन में विपक्ष का कोई और विधायक नहीं है, इसलिए विपक्ष का नेता भी उसी विधायक दल के नेता को बनना है।

विपक्ष का नेता अभी तक तय नहीं हुआ

हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र 13 नवंबर से 18 नवंबर तक चलेगा, और इस दौरान नेता विपक्ष के बिना सत्र चलने की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि विपक्ष का नेता अभी तक तय नहीं हुआ है। कांग्रेस पार्टी में इस समय गुटबाजी का माहौल है, जो विधायक दल के नेता के चयन को लेकर बढ़ रहा है। चुनावी परिणाम के बाद, हुड्डा और सैलजा खेमे के बीच इस पद को लेकर खींचतान साफ तौर पर देखी जा रही है।

हाईकमान पर छोड़ा चयन

कांग्रेस विधायक दल की बैठक में यह प्रस्ताव भेजा गया था कि विधायक दल के नेता का चयन हाईकमान पर छोड़ दिया जाए। इस दौरान, बालमुकुंद शर्मा, जो सैलजा खेमे के समर्थक माने जाते हैं, ने सार्वजनिक तौर पर चंद्रमोहन बिश्नोई और अशोक अरोड़ा में से किसी एक को विपक्ष का नेता बनाने का बयान दिया। यह बयान विवाद का कारण बना, क्योंकि पार्टी में यह सवाल उठने लगा कि क्या बालमुकुंद शर्मा अब भी कांग्रेस के प्रवक्ता हैं। इस पर पार्टी ने कड़ा रुख अपनाते हुए उन्हें छह साल के लिए कांग्रेस से बाहर कर दिया और चेतावनी दी कि यदि उन्होंने फिर से पार्टी के खिलाफ कुछ बोला तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

वर्तमान में हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष चौधरी उदयभान ने यह आरोप लगाया है कि राज्य में संगठन निर्माण में देरी का मुख्य कारण पार्टी प्रभारी दीपक बाबरिया हैं, जिन्होंने कई बार संगठन की सूचियाँ बनाई, लेकिन उन्हें हाईकमान तक नहीं पहुँचाया। पार्टी के अंदर गुटबाजी की स्थिति को देखते हुए, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने अब तक विधायक दल के नेता का चयन नहीं किया है, और पार्टी हाईकमान पर दबाव बन रहा है कि वह इस मुद्दे का शीघ्र समाधान निकाले।

भूपेंद्र हुड्डा का दावा मजबूत

कांग्रेस के लिए एक और चुनौती यह है कि हरियाणा विधानसभा में 2024 के चुनाव में पार्टी ने 37 सीटें जीती हैं, जबकि पिछले चुनाव में यह संख्या केवल 31 थी। इसलिए कांग्रेस के विधायक दल के नेता के रूप में भूपेंद्र हुड्डा का नाम सबसे प्रमुख हो सकता है, क्योंकि उनके समर्थक विधायकों की संख्या अधिक है। पार्टी के भीतर यह सवाल भी उठ रहा है कि यदि हुड्डा खेमे से ही कोई और नेता विपक्ष का नेता बने तो क्या यह सैलजा के खेमे को मजबूत करेगा, क्योंकि सैलजा समर्थक नेता चंद्रमोहन बिश्नोई का नाम इस पद के लिए सामने आ रहा है।

2019 में जब कांग्रेस को लगातार दूसरी बार सत्ता से बाहर रहना पड़ा था, तब भूपेंद्र हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। इससे पहले 2014 से 2019 तक इनेलो के अभय सिंह चौटाला नेता प्रतिपक्ष रहे थे, और 2005 से 2014 तक ओमप्रकाश चौटाला ने विपक्ष के नेता का पद संभाला था, जबकि उस समय हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी।

गुटबाजी से उबरना बना चुनौती

कांग्रेस के सामने अब यह बड़ी चुनौती है कि वह अपनी गुटबाजी से उबरकर एक मजबूत नेतृत्व का चयन करें ताकि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विपक्ष प्रभावी रूप से अपनी भूमिका निभा सके। इस स्थिति में कांग्रेस हाईकमान को जल्द ही कोई ठोस फैसला लेना होगा, अन्यथा विपक्ष की भूमिका कमजोर हो सकती है, जो पार्टी के लिए एक और राजनीतिक नुकसान हो सकता है।

 

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