Haryana Assembly Land Dispute: 10 एकड़ जमीन के लिए पंजाब-हरियाणा में छिड़ा घमासान, राज्यपाल के पास पहुंचा मामला
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़: Haryana Assembly Land Dispute: चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा हरियाणा को विधानसभा निर्माण के लिए जमीन देने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है और यह विवाद अब गहराते हुए बड़े राजनीतिक मुद्दे में तब्दील हो गया है। यह मामला इतना गंभीर हो गया है कि इसे लेकर न केवल राजनीतिक हलकों में बयानबाजी तेज हो गई है, बल्कि यह राज्यपाल के दरबार तक भी पहुँच गया है। विवाद को देखते हुए पंजाब के राजनीतिक दलों ने भी हरियाणा को जमीन देने के इस फैसले का कड़ा विरोध करना शुरू कर दिया है।
पंजाब के राज्यपाल से मिला आप प्रतिनिधिमंडल
शुक्रवार को आम आदमी पार्टी (आप) ने इस मुद्दे पर एक बड़ा कदम उठाया। पार्टी के नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल वित्त मंत्री हरपाल चीमा के नेतृत्व में पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया से मिला। इस प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपते हुए स्पष्ट रूप से चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा के लिए जमीन आवंटित करने के फैसले का विरोध किया। प्रतिनिधिमंडल में मंत्री हरजोत बैंस, आप नेता दीपक बाली और परमिंदर सिंह गोल्डी भी शामिल थे। हरपाल चीमा ने राज्यपाल के सामने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है और इसे किसी भी सूरत में हरियाणा को नहीं दिया जा सकता। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी हरियाणा को चंडीगढ़ में विधानसभा बनाने के लिए जमीन देने के इस निर्णय का सख्त विरोध करेगी और इसके खिलाफ हर कदम उठाएगी। चीमा ने सुझाव दिया कि हरियाणा को अपनी विधानसभा पंचकूला में बनानी चाहिए, न कि चंडीगढ़ में।
जमीन मांगने की आड़ में एक विशेष एजेंडा
हरपाल चीमा ने यह भी आरोप लगाया कि हरियाणा सरकार चंडीगढ़ में विधानसभा परिसर बनाने के लिए जमीन मांगने की आड़ में एक विशेष एजेंडा चला रही है। उन्होंने कहा कि हरियाणा ने पंचकूला में 12 एकड़ जमीन के बदले चंडीगढ़ में 10 एकड़ जमीन मांगी है। चीमा ने इसे पंजाब के अधिकारों पर सीधा हमला बताया और कहा कि चंडीगढ़ की एक इंच जमीन भी हरियाणा को नहीं दी जानी चाहिए।
फैसले की कड़ी आलोचना
उधर, कैबिनेट मंत्री हरभजन सिंह ईटीओ ने भी इस फैसले की कड़ी आलोचना की और इसे पंजाब के हितों के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ का निर्माण पंजाब के गांवों को उजाड़ कर किया गया था और यह हमेशा से पंजाब की राजधानी रही है। इसलिए, हरियाणा को यहां विधानसभा बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। ईटीओ ने कहा कि पंजाब सरकार इस मामले में किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगी और राज्य के हक की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करेगी।
विरोध का स्वर तेज
पंजाब कांग्रेस के नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने भी इस मुद्दे पर विरोध का स्वर तेज कर दिया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। अपने पत्र में बाजवा ने कहा कि चंडीगढ़ का निर्माण पंजाब की जमीन पर हुआ है और यह हमेशा से पंजाब का हिस्सा रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की कि वे हरियाणा को चंडीगढ़ में जमीन देने के प्रस्ताव को तुरंत रद्द करें। बाजवा ने यह भी लिखा कि चंडीगढ़ पंजाब के गांवों को उजाड़कर बसाया गया है, इसलिए हरियाणा को यहाँ अपनी विधानसभा बनाने की अनुमति देना बिल्कुल अनुचित होगा।
पंजाब के सभी दलों ने किया विरोध
यह विवाद केवल आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तक ही सीमित नहीं है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिरोमणि अकाली दल ने भी चंडीगढ़ प्रशासन के इस फैसले का विरोध किया है। भाजपा नेताओं ने भी कहा कि यह मामला पंजाब के हितों से जुड़ा हुआ है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। शिरोमणि अकाली दल ने इसे पंजाब के साथ धोखा बताते हुए इस निर्णय को वापस लेने की मांग की है। पार्टी नेताओं ने कहा कि चंडीगढ़ पंजाब का अभिन्न हिस्सा है और इसे किसी अन्य राज्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
विवाद नया नहीं
पंजाब और हरियाणा के बीच चंडीगढ़ को लेकर विवाद कोई नया नहीं है। यह मुद्दा लंबे समय से दोनों राज्यों के बीच एक विवादित विषय रहा है। चंडीगढ़ को भारत सरकार ने 1966 में हरियाणा के गठन के बाद दोनों राज्यों की साझा राजधानी घोषित किया था। लेकिन वर्षों बाद भी यह मुद्दा सुलझ नहीं पाया है। पंजाब के राजनीतिक दलों का मानना है कि चंडीगढ़ पूरी तरह से पंजाब का है और इसे हरियाणा के लिए किसी भी तरह के विकास कार्य या निर्माण के लिए नहीं दिया जा सकता। वहीं, हरियाणा सरकार का तर्क है कि उनके राज्य को भी चंडीगढ़ में एक विधानसभा परिसर की आवश्यकता है।
दोनों राज्यों के बीच राजनीतिक गर्माहट बढ़ा
इस विवाद ने एक बार फिर पंजाब और हरियाणा के बीच के तनाव को उजागर कर दिया है। जहां पंजाब के नेता इसे अपने राज्य के अधिकारों और सम्मान का मुद्दा बना रहे हैं, वहीं हरियाणा सरकार इसे अपने प्रशासनिक जरूरतों के तहत सही ठहराने की कोशिश कर रही है। चंडीगढ़ प्रशासन के फैसले को लेकर दोनों राज्यों के बीच राजनीतिक गर्माहट बढ़ती जा रही है और इस विवाद का हल फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे चलकर केंद्र सरकार इस मामले में क्या रुख अपनाती है और क्या यह विवाद किसी समाधान की ओर बढ़ पाता है।
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