हरियाणा में चेयरमैन पदों को लेकर खींचतान तेज, भाजपा ने कांग्रेस और JJP समर्थित पदाधिकारियों को किया बाहर

नरेन्‍द्र सहारण, कैथल : Kaithal News: हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने तीसरी बार सरकार बनाने के बाद जिला परिषद, पंचायत समिति, और ब्लॉक समिति के चेयरमैन पदों पर अपने प्रभाव को मजबूत करना शुरू कर दिया है। इसके चलते विभिन्न जिलों में अविश्वास प्रस्तावों के जरिए कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी (JJP) समर्थित पदाधिकारियों को हटाने का सिलसिला जारी है। अब तक राज्य में पांच चेयरमैनों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जा चुके हैं, जिसमें से तीन चेयरमैन पदों पर भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने कब्जा जमा लिया है।

कैथल जिला परिषद में कर्मबीर कौल बने चेयरमैन

कैथल जिला परिषद में पहले JJP समर्थित दीप मलिक चेयरमैन थे। 30 अक्टूबर को उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इस दौरान 21 में से 19 पार्षद बैठक में पहुंचे और सर्वसम्मति से भाजपा के कर्मबीर कौल को नया चेयरमैन चुन लिया गया। इससे पहले कर्मबीर कौल जिला परिषद के वाइस चेयरमैन थे। दिलचस्प बात यह है कि दीप मलिक के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने में सबसे बड़ा योगदान खुद कर्मबीर कौल का था। कौल के चेयरमैन बनने के बाद अब वाइस चेयरमैन का चुनाव होना बाकी है, जिसकी तारीख अभी तय नहीं हुई है।

सीवन की चेयरपर्सन मनजीत कौर को हटाया गया

कैथल के सीवन ब्लॉक समिति में कांग्रेस समर्थित चेयरपर्सन मनजीत कौर के खिलाफ 12 नवंबर को अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इस प्रस्ताव में कुल 16 में से 13 सदस्यों ने भाग लिया। इनमें से 12 भाजपा समर्थित सदस्यों ने मनजीत कौर के खिलाफ वोट दिया, जबकि केवल एक वोट उनके पक्ष में पड़ा।

प्रस्ताव की वोटिंग के दौरान तनावपूर्ण माहौल बन गया। भाजपा समर्थित सदस्यों के साथ पहुंचे गुहला के पूर्व विधायक कुलवंत बाजीगर का विरोध करने पर मनजीत कौर के समर्थकों को पुलिस ने मौके से हटाया। इसके बाद ही वोटिंग प्रक्रिया पूरी हो सकी।

रोहतक जिला परिषद की चेयरपर्सन मंजू हुड्डा पर संकट

रोहतक जिला परिषद की चेयरपर्सन मंजू हुड्डा, जिन्होंने गढ़ी सांपला किलोई विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था, के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। 10 पार्षदों ने जिला उपायुक्त को पत्र लिखकर प्रस्ताव की मांग की थी।

अब तक इस मामले में तीन बार वोटिंग के लिए तारीख तय की जा चुकी है, लेकिन हर बार वोटिंग टाल दी गई। हाल ही में, अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में शपथ पत्र देने वाले एक पार्षद ने अपना समर्थन वापस ले लिया और मंजू हुड्डा के पक्ष में आ गया।

नाथूसरी चोपटा में इनेलो के सूरजभान ने बचाई कुर्सी

सिरसा जिले की नाथूसरी चोपटा पंचायत समिति के चेयरमैन सूरजभान बुमरा के खिलाफ 20 नवंबर को अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इस बैठक में 30 में से 22 सदस्यों ने भाग लिया। इनमें से 13 सदस्यों ने सूरजभान के पक्ष में वोट दिया, जबकि 9 ने उनके खिलाफ।

सूरजभान, जो विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा छोड़कर इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) में शामिल हो गए थे, अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे। कुर्सी बचाने के बाद उन्होंने कहा, “भाजपा से अलग होने के बाद मेरे खिलाफ साजिशें रची गईं, लेकिन मेरे साथ समिति सदस्यों का समर्थन है।”

चीका ब्लॉक समिति में डिंपल रानी पर संकट के बादल

 

कैथल के चीका ब्लॉक समिति की कांग्रेस समर्थित चेयरपर्सन डिंपल रानी के खिलाफ भी भाजपा समर्थित पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग की है। 22 सदस्यों में से 18 ने 18 नवंबर को कैथल जिला सचिवालय पहुंचकर अपने शपथ पत्र जमा किए।

भाजपा समर्थकों ने आरोप लगाया है कि डिंपल रानी कांग्रेस समर्थित होने के कारण उनके वार्डों में विकास कार्यों में भेदभाव कर रही हैं। उनका कहना है कि पिछले दो साल में सिर्फ कुछेक काम हुए हैं, जबकि अधिकांश विकास योजनाएं ठप पड़ी हैं। अब प्रशासन द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए बैठक बुलाई जाएगी, लेकिन इसकी तारीख अभी तय नहीं हुई है।

पार्टी लाइनों पर खींचतान बढ़ी

भाजपा ने राज्य में जिला परिषद और पंचायत समिति जैसे स्थानीय निकायों पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कांग्रेस और JJP समर्थित सदस्यों को हटाने का अभियान तेज कर दिया है। कैथल, रोहतक और सिरसा जैसी जगहों पर जहां कांग्रेस और अन्य दलों का प्रभाव रहा है, वहां भाजपा अपनी पकड़ मजबूत करने के प्रयास में जुटी है। दूसरी ओर, इनेलो और कांग्रेस अपने समर्थकों को एकजुट रखने की कोशिश कर रहे हैं।

क्या कहता है यह घटनाक्रम?

यह खींचतान हरियाणा में भाजपा की बढ़ती राजनीतिक पकड़ और विपक्षी दलों के सामने खड़े हो रहे नए संकटों को दर्शाती है। पंचायत और स्थानीय निकायों में भाजपा के बढ़ते वर्चस्व से साफ है कि पार्टी जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ को और मजबूत करने के लिए काम कर रही है। वहीं, विपक्षी दलों के लिए यह समय अपने समर्थकों को एकजुट करने और उनकी नाराजगी दूर करने का है। इस खींचतान के बीच, यह देखना दिलचस्प होगा कि स्थानीय निकायों के ये राजनीतिक समीकरण आने वाले चुनावों पर क्या असर डालते हैं।

 

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