जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित भाषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, इलाहाबाद हाईकोर्ट से मांगी जानकारी

नई दिल्‍ली, बीएनएम न्‍यूज। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव के विवादित भाषण पर स्वत: संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट से जानकारी मांगी है। यह मामला तब उभरा जब जस्टिस यादव ने विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की लीगल सेल द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कई विवादास्पद टिप्पणियां कीं। इन टिप्पणियों के चलते न्यायिक नैतिकता और निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह कार्रवाई न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) की ओर से मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र के बाद हुई है, जिसमें न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ जांच की मांग की गई थी।

सीजेएआर और प्रशांत भूषण की प्रतिक्रिया

सीजेएआर के संयोजक और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि जस्टिस यादव ने अपने भाषण में न्यायिक नैतिकता और संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का उल्लंघन किया है। भूषण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पद और उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि उनके भाषण से न्यायपालिका की साख को नुकसान पहुंचा है।

भूषण के अनुसार, जस्टिस यादव ने एक समुदाय के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया, जो न्यायपालिका की निष्पक्षता के सिद्धांतों के विपरीत है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि “गाय, गीता और गंगा” भारतीय संस्कृति को परिभाषित करते हैं और यह भी दावा किया कि “हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा।”

विवादास्पद टिप्पणियां और आरोप

जस्टिस यादव ने अपने भाषण में मुस्लिम समुदाय की प्रथाओं जैसे बहुविवाह, हलाला और ट्रिपल तलाक की आलोचना की और उनकी तुलना हिंदू परंपराओं से की। इन टिप्पणियों में कथित तौर पर ऐसी भाषा का उपयोग किया गया जो संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और समतावादी मूल्यों के विपरीत थी।

भूषण ने कहा कि उनके बयान से न्यायपालिका के कर्तव्य, जो कानून और संविधान के नियमों को बनाए रखना है, का उल्लंघन हुआ है। उन्होंने पत्र में यह भी आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति यादव ने धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा दिया, जिससे कानून के शासन को कमजोर किया गया।

सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई

 

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वत: संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट से मामले की पूरी जानकारी मांगी है। इससे पहले, इस मामले में सीजेएआर ने न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ आंतरिक जांच की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट की इस कार्रवाई से यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायपालिका अपने पदाधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्ध है।

न्यायिक नैतिकता पर सवाल

 

न्यायिक नैतिकता के सिद्धांत यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी न्यायाधीश न केवल निष्पक्ष हो, बल्कि ऐसा दिखे भी। जस्टिस यादव के बयान इस सिद्धांत के खिलाफ माने जा रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि एक न्यायाधीश का ऐसा भाषण, जिसमें धार्मिक पक्षपात और असहिष्णुता की झलक हो, न्यायपालिका की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाता है।

संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का उल्लंघन

 

जस्टिस यादव के बयान, विशेष रूप से “हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा,” जैसे वक्तव्य, संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के विपरीत माने जा रहे हैं। भारतीय संविधान देश को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में परिभाषित करता है, जहां सभी धर्मों के प्रति समानता का भाव हो।

न्यायपालिका की साख पर असर

जस्टिस यादव का भाषण न्यायपालिका की साख और उसके प्रति जनता के विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। न्यायपालिका का दायित्व है कि वह न केवल निष्पक्ष न्याय दे, बल्कि समाज में संविधान और कानून के प्रति विश्वास को बनाए रखे।

सुधार की आवश्यकता

इस प्रकरण ने न्यायिक जवाबदेही और नैतिकता पर एक बार फिर चर्चा छेड़ दी है। न्यायपालिका को अपने सदस्यों की निष्पक्षता और नैतिकता सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक जांच प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लिए जाने के बाद उम्मीद की जा रही है कि इस मामले की गहन जांच होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी होगी, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई तय होगी।

इस मामले से यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका के सदस्यों को सार्वजनिक मंच पर अपने शब्दों के प्रति अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए। भारतीय न्यायपालिका की साख और जनता का विश्वास बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

 

 

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