One Nation One Election: एक देश एक चुनाव बिल लोकसभा में पेश, कांग्रेस, सपा और TMC समेत कई दलों का विरोध
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नई दिल्ली, बीएनएम न्यूजः लोकसभा में एक देश एक चुनाव वाला विधेयक पेश हो गया है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह बिल लोकसभा में पेश किया। बिल का कांग्रेस, टीएमसी, सपा समेत कई दलों ने विरोध किया है। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि आखिर इस बिल को लाने की जरूरत ही क्या है। यह तो एक तरह से तानाशाही को थोपने की कोशिश है।
हालांकि भाजपा को अपने अहम सहयोगी दल जनता दल युनाइटेड का समर्थन हासिल है। आज एक बार फिर जेडीयू के नेता संजय कुमार झा ने कहा कि यह बिल जरूरी है। उन्होंने कहा कि हम तो हमेशा कहते रहे हैं कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ ही होने चाहिए। पंचायत के चुनाव अलग से होने चाहिए।
इस देश में जब चुनाव की शुरुआत हुई थी, तब एक साथ ही इलेक्शन होते थे। यह कोई नई बात तो नहीं है। अलग-अलग चुनाव तो 1967 में शुरू हुए, जब कांग्रेस ने कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन थोप दिया था और सरकारों को बर्खास्त किया जाने लगा। सरकार हमेशा इलेक्शन मोड में रहती है। इसमें बड़े पैमाने पर खर्च होता है।
कांग्रेस ने कहा कि यह बिल संघीय ढांचे के ही खिलाफ है और संविधान की आत्मा पर चोट है। विपक्ष ने कहा कि इसके चलते कई सरकारों को हटाना पड़ेगा और विधानसभाएं भंग होंगी। यह संघवाद के भी विपरीत होगा।
अखिलेश यादव ने किया विरोध
अखिलेश यादव ने भी इसका विरोध किया और कहा कि ‘एक’ की भावना तानाशाही की ओर ले जाने वाली है। उन्होंने कहा कि इससे देश में तानाशाही आएगी और संघीय लोकतंत्र के लिए रास्ता बंद होगा। वहीं धर्मेंद्र यादव ने कहा कि अभी पिछले सप्ताह ही संविधान बचाने की इस सदन में कसमें खाई गई थीं और आज एक देश एक चुनाव का बिल लाया गया है, जो मूल भावना के ही खिलाफ है।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, सरकारें बर्खास्त करनी होंगी
कांग्रेस लीडर मनीष तिवारी ने कहा कि यदि लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलता है तो क्या पूरे देश का चुनाव होगा। उनका कहना था कि ऐसे नियम की स्थिति में तो बड़ी संख्या में विधानसभाओं को भंग करना होगा और सरकारें बर्खास्त करनी होंगी।
चर्चा के दौरान अमित शाह ने बीच में दिया दखल
चर्चा के दौरान अमित शाह ने भी बीच में दखल दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को तो बहस का मतलब सिर्फ विरोध ही पता है। यदि कोई चीज देश हित में है तो फिर उसका समर्थन भी किया जा सकता है। बता दें कि अपना दल, अकाली दल, जनता दल युनाइटेड समेत कई दलों ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है। चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी ने भी बिल का समर्थन किया है।
इस विधेयक में क्या है
विधेयक में पहली बात लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ में कराने की है। इसके अलावा इन चुनावों के साथ नगर निकायों और पंचायत के चुनाव भी कराए जाएंगे। इसके अलावा जिन राज्यों की विधानसभा के चुनाव आम चुनाव के बाद होने हैं उनका भी कार्यकाल घटा दिया जाएगा और आम चुनाव के साथ ही विधानसभा के भी चुनाव करा दिए जाएंगे। पंचायत और नगर निकायों के चुनाव साथ कराने के लिए विधेयक में आर्टिकल 324ए को शामिल किया जाएगा।
क्या होगा अगर गिर जाए राज्य की सरकार
विधेयक में इस बात का भी प्रावधान होगा कि अगर अविश्वास प्रस्ताव या अन्य कारण से बीच में ही किसी राज्य की सरकार गिर जाएगी तो क्या किया जाएगा। ऐसी स्थिति में मध्यावधि चुनाव कराए जा सकते हैं लेकिन नई विधानसभा का कार्यकाल केवल अगले लोकसभा चुनाव तक ही होगा। इसके अलावा विधेयक में चुनाव आयोग को भी निर्देश दिए गए हैं कि साथ में चुनाव कराने को लेकर आवश्यक जरूरतें पूरी की जाएं। ईवीएम और वीवीपैट का भी इंतजाम एकसाथ चुनाव कराने से पहले ही कर लिया जाए।
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ विधेयक की खास बातें
13 दिसंबर को सामने आई विधेयक की कॉपी के मुताबिक अगर लोकसभा या फिर विधानसभा को बीच में भंग करना पड़ता है तो मध्यावधि चुनाव पांच साल में बाकी बचे समय के लिए ही करवाया जाएगा। विधेयक मे आर्टिकल 82 (A), 172 और 327 को शामिल करने का प्रस्ताव है।
82A में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ कराने का प्रावधान है। इसके अलावा आर्टिकल 83 में संसद के सदनों के कार्यकाल का प्रावधान है। आर्टिकल 327 में विधानसभा चुनाव को लेकर संसद के नियम बनाने के अधिकार के बारे में बताया गया है।
आम चुनाव के बाद राष्ट्रपति ही करेंगे ऐलान
विधेयक में कहा गया है कि आम चुनाव के बाद राष्ट्रपति ही ऐलान करेंगे कि एक साथ चुनाव कबसे करवाए जाएंगे। ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि 2029 के लोकसभा चुनाव पहले की ही तरह करवाए जाएंगे। इसके बाद राष्ट्रपति लोकसभा की पहली बैठक के दौरान ऐलान करेंगे कि 2034 से विधानसभा और लोकसभा के चुनाव साथ में करवाए जाएंगे। विधेयक को पास कराने के लिए सरकार को 361 सांसदों के समर्थन की जरूरत है।
लोकसभा की मौजूदा संख्या 542 है। एनडीए के सांसदों के अलावा सरकार को वाईएसआरसीपी, बीजू जनता दल और एआईएडीएमके के सांसदों के समर्थन की भी जरूरत पड़ेगी। वहीं राज्यसभा में फिलहाल 231 सदस्य हैं। ऐसे में बिल के समर्थन में 154 सांसद होने चाहिए। राज्यसभा में एनडीए के पास 114 सांसद हैं। इंडिया गठबंधन के 86 और अन्य दलों के 25 सांसद राज्यसभा में हैं।
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