DU News: हिंदी हमारे गौरव, आजीविका और रचनात्मकता का प्रतीक : प्रो. निरंजन कुमार

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। DU News: भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री सुरेश जैन ने हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा महोत्सव’ में अपनी बात रखते हुए कहा, “मातृभाषा से ही हमें आत्मबल मिलता है।” यह कार्यक्रम भारतीय भाषा समिति द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें विभिन्न विद्वानों और शिक्षकों ने मातृभाषा के महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ, जिसमें सुरेश जैन मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। उनके साथ दिल्ली विश्वविद्यालय की भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष प्रो. निरंजन कुमार भी मंच साझा कर रहे थे। समारोह की संयोजक प्रो. संध्या गर्ग ने कार्यक्रम की भूमिका स्पष्ट करते हुए कहा कि मातृभाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
संस्कारों के साथ भाषा का विकास
सुरेश जैन ने अपने संबोधन में मातृभाषा के भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा कि हमें केवल भाषाओं का विकास नहीं करना चाहिए, बल्कि संस्कारों के साथ भाषा का विकास करना चाहिए। उन्होंने इस पर जोर दिया कि अंग्रेजी भाषा का बढ़ता प्रचलन खतरनाक है और हमें अपनी मातृभाषाओं का सम्मान करना चाहिए। मातृभाषा न केवल सामाजिक पहचान देती है, बल्कि यह आत्मिक बल भी प्रदान करती है।
मातृभाषा की पहचान को समझना आवश्यक
प्रो. निरंजन कुमार ने हिंदी भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह हमारे गौरव, आजीविका, और रचनात्मकता का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बहुभाषा प्रतिपादित की गई है, जो भारतीय भाषाओं की समृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। प्रो. कुमार ने चिंता व्यक्त की कि कई लिपियों और भाषाओं का अस्तित्व संकट में है इसलिए चाहिए कि हम अपनी मातृभाषाओं को संरक्षित करें, ताकि वे आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रह सकें। उनका यह कहना कि चीन जैसे देशों ने अपनी मातृभाषा को संजोकर रखा है, वे वैश्विक स्तर पर प्रभावी बने हुए हैं, इस बात की गांरटी है कि मातृभाषा की पहचान को समझना कितना आवश्यक है।
कार्यक्रम में शिक्षकों और विद्वानों ने विभिन्न मातृभाषाओं में विचार प्रस्तुत किए, जिसने उपस्थित दर्शकों के बीच एक जीवंत चर्चा को जन्म दिया। इस अवसर पर छात्राओं ने लोकगीत प्रतियोगिता और स्लोगन लेखन प्रतियोगिता में भी भाग लिया। प्रतियोगिताओं में छात्रों की व्यापक भागीदारी ने कार्यक्रम में एक उत्साहजनक माहौल को बढ़ाया।
मातृभाषा में हस्ताक्षर अभियान भी चलाया
इसके अलावा कॉलेज में मातृभाषा में हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया, जिसमें छात्रों, शिक्षकों, और अन्य कर्मचारियों ने अपनी मातृभाषाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। इस हस्ताक्षर अभियान ने यह संदेश दिया कि मातृभाषा का संरक्षण केवल भाषा से संबंधित नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान की रक्षा का भी माध्यम है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. दीनदयाल और डॉ. राहुल प्रसाद ने किया। आयोजन के दौरान दोनों ने जोश के साथ सभी गतिविधियों का संचालन किया और सुनिश्चित किया कि सभी प्रतिभागियों को अपनी बात रखने का उचित अवसर मिले। इस कार्यक्रम में कॉलेज के शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक वर्ग की काफी बड़ी संख्या में सहभागिता देखी गई, जिसने मातृभाषा के प्रति सभी की जागरूकता को प्रदर्शित किया।
इस महोत्सव के आयोजन का सबसे बड़ा उद्देश्य मातृभाषाओं को समर्पित एक मंच प्रदान करना और उनके महत्व को समझाना था। शिक्षा, संस्कृति और संवाद के इस युग में मातृभाषा का संरक्षण सभी का दायित्व बनता है। यह महोत्सव अपने आप में एक प्रेरणा स्रोत है, जो हमें याद दिलाता है कि हम किस प्रकार अपनी भाषाओं को संरक्षित कर सकते हैं और उनके माध्यम से अपनी पहचान बनाए रख सकते हैं।
महत्वपूर्ण संदेश
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा महोत्सव ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया कि मातृभाषा का संरक्षण न केवल व्यक्तिगत पहचान का हिस्सा है, बल्कि यह हमारे समाज और संस्कृति का अभिन्न अंग भी है। हमें न केवल अपनी मातृभाषाओं को समझना और अपनाना चाहिए, बल्कि उन्हें आधुनिक संदर्भ में निखारने का प्रयास भी करना चाहिए।
इस महोत्सव ने एक नए जागरूकता के साथ हमें प्रेरित किया है कि हम मातृभाषाओं की शक्ति को पहचानें और उन्हें संरक्षित करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करें। सही मायनों में कहा जाए तो, मातृभाषा का संरक्षण केवल भाषायी विविधता का सम्मान नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत और पहचान का संरक्षण भी है।
मातृभाषाएं हमारी पहचान का आधार
इस महोत्सव के सफल आयोजन से यह स्पष्ट होता है कि मातृभाषाएं हमारी पहचान का आधार हैं और हमें इनका सम्मान और संरक्षण करना चाहिए। जब हम अपनी मातृभाषाओं का सम्मान करेंगे, तब हम न केवल अपनी पहचान को बचा पाएंगे, बल्कि अपने समाज को भी आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएंगे। समापन समारोह में सभी उपस्थित लोगों ने एक-दूसरे से अपनी मातृभाषाओं में संवाद किया, जिससे इस महोत्सव का एक सार्थक निष्कर्ष निकला और सभी ने मिलकर यह प्रण लिया कि वे अपनी मातृभाषाओं को हमेशा संरक्षित और विकसित करने के लिए प्रयासरत रहेंगे।
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