Haryana News: एचएसएससी के तृतीय श्रेणी के संशोधित परिणाम पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने लगाई रोक, 781 की गई थी नौकरी

नरेंद्र सहारण, चंडीगढ़ : Haryana News: भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका का स्थान सर्वोपरि है और यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी नौकरियों और भर्ती प्रक्रियाओं में न्याय, निष्पक्षता और पारदर्शिता का पालन हो। हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एचएसएससी) द्वारा 14 जून 2025 को जारी किए गए ग्रुप सी पदों के संशोधित परिणाम पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपना कड़ा रुख अपनाते हुए उस पर अंतरिम रोक लगा दी है। कोर्ट ने इस कदम को “अन्यायपूर्ण, अनुचित और अवैध” करार देते हुए संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किया है, ताकि स्पष्ट और निष्पक्ष निर्णय लिया जा सके। यह मामला केवल एक भर्ती प्रक्रिया का मामला नहीं है बल्कि यह न्याय और नियमों के पालन का सवाल भी है। कोर्ट का यह फैसला यह दर्शाता है कि सरकारी नियमानुसार चयन और नियुक्ति प्रक्रिया में किसी भी तरह का अनियमितता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

मामला कैसे उठा

 

यह विवाद 14 जून 2025 को जारी किए गए संशोधित परिणाम के साथ शुरू हुआ जिसमें हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने प्रदेश भर में विभिन्न ग्रुप सी पदों जैसे पटवारी, क्लर्क, जेई (जैसे इंजीनियरिंग पद), कांस्टेबल (पुरुष और महिला), और अन्य पदों के लिए नए चयन परिणाम घोषित किए। इस परिणाम में कुल 1699 नए अभ्यर्थियों का चयन हुआ, जबकि पहले से काम कर रहे 781 कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं।

यह निर्णय ऐसे समय में आया जब पहले घोषित परिणाम पर ही विवाद चल रहा था। अक्टूबर 2024 में घोषित परिणाम को लेकर कई अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी, जिसमें बताया गया कि उनके आवेदन पिछड़ा वर्ग प्रमाणपत्र की वैधता के आधार पर खारिज कर दी गई है। इन अभ्यर्थियों का तर्क था कि उनके पास परंपरागत सरकारी दस्तावेज के रूप में जारी पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र है, जिसे अब अवैध माना जा रहा है।

इसके अलावा भर्ती प्रक्रिया के दौरान सरकार ने 1 अप्रैल 2023 से पहले जारी जाति प्रमाण पत्रों को मान्य नहीं ठहराया। सरकार का तर्क था कि इन प्रमाणपत्रों की वैधता जांचने का तरीका अधिक नियंत्रित और प्रमाणित होना चाहिए ताकि फर्जीवाड़े को रोका जा सके। इस निर्णय का असर यह हुआ कि कई योग्य उम्मीदवारों का आवेदन रद्द कर दिया गया, जिससे कई युवा निराश हुए और उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया।

सरकारी नीति और चयन प्रक्रिया में आए बदलाव

 

भर्ती के दौरान सरकार का एक बड़ा फैसला यह रहा कि 1 अप्रैल 2023 से पहले जारी पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र को मान्यता नहीं दी जाएगी। इस निर्णय का कारण था कि फर्जी प्रमाणपत्रों का व्यापक रूप से प्रयोग हो रहा था, और सरकार इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठा रही थी।

इसके तहत जिन उम्मीदवारों के पास 1 अप्रैल 2023 के बाद का वैध जाति प्रमाण पत्र नहीं था उनके आवेदन रद्द कर दिए गए। इस फैसले के पीछे सरकार का तर्क था कि परिवार पहचान पत्र (एफपी) के आधार पर जाति की पुष्टि की जा सकती है क्योंकि उनके पास पूरे परिवार का डाटा मौजूद है।

लेकिन इन फैसलों ने कई युवाओं को प्रभावित किया जिन्होंने अपने आवेदन के समर्थन में पारंपरिक सरकारी दस्तावेज प्रस्तुत किए थे। इन युवाओं का तर्क था कि उनके पास फर्जीवाड़ा नहीं है, और यदि परिवार पहचान पत्र से जाति की पुष्टि हो सकती है तो फिर क्यों उनकी उम्मीदवारी रद्द की जा रही है।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें और हाई कोर्ट में बहस

 

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में तर्क दिया कि वे अक्टूबर 2024 से लगातार विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं, और उनके समर्पित सेवा का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अचानक से उनके पदों से हटाना, विशेष रूप से जब वे लंबे समय से कार्यरत हैं, यह न्याय के खिलाफ है। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के जस्टिस संदीप मौदगिल ने पाया कि यह मामला पहले ही दो बार न्यायिक विचाराधीन है। पहली बार, 15 फरवरी 2025 को, इन आधारों पर एक निर्णय आया था, जिसे 13 मई 2025 को एक डिवीजन बेंच ने रोक दिया था। अब, जब संबंधित मामलों पर पहले से ही विचार हो रहा है, तो आयोग का यह कदम न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं माना गया।

जस्टिस मौदगिल ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि कोई कर्मचारी लंबे समय से कार्यरत है, तो उसकी उम्मीदवारी को केवल छह महीने की सेवा अवधि के आधार पर समाप्त करना न्यायसंगत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि पहले से ही न्यायालय में मामला लंबित है, तो ऐसी स्थिति में नई नियुक्ति रद्द करना अनुचित है।

कोर्ट का निर्णय: अंतरिम रोक और आगे की कार्यवाही

 

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में अनियमितता है और यह “अन्यायपूर्ण, अनुचित और अवैध” है। कोर्ट ने आयोग को नोटिस जारी कर पूछा कि वे इस कदम के समर्थन में क्या तर्क प्रस्तुत करते हैं। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि जब पहले ही इस मामले को लेकर न्यायालय में मामला विचाराधीन है, तो नई नियुक्ति रद्द करने का निर्णय न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन हो सकता है।
अतः हाई कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से इस संशोधित परिणाम पर रोक लगा दी है। साथ ही, इस मामले को सभी संबंधित पक्षों को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है, ताकि न्यायपूर्ण और निष्पक्ष फैसला लिया जा सके।

भर्ती प्रक्रिया का वर्तमान स्वरूप और विवाद की जड़ें

एचएसएससी ने 14 जून 2025 को जारी किए गए संशोधित परिणाम में कुल 1699 पदों पर नए अभ्यर्थियों का चयन किया जिसमें पहले से नियुक्त 781 कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। यह निर्णय उन अभ्यर्थियों के लिए झटका था, जिन्होंने वर्षों से इन पदों पर कार्य किया था। इस निर्णय का आधार पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र की वैधता का विवाद था। कई अभ्यर्थियों का तर्क था कि उनके पास पारंपरिक सरकारी दस्तावेज हैं, जिन्हें वे साबित कर सकते हैं। लेकिन, सरकार का तर्क था कि पारंपरिक दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा होने का खतरा है, और इसलिए परिवार पहचान पत्र के आधार पर जाति की पुष्टि जरूरी है।

इस विवाद के पीछे क्या है

 

यह मामला केवल भर्ती का ही नहीं बल्कि न्याय और नियमों का भी संघर्ष है। सरकार का तर्क है कि फर्जीवाड़ा रोकने के लिए यह कदम जरूरी है, जबकि अभ्यर्थी इसे न्यायसंगत नहीं मानते। न्यायपालिका का मानना है कि जब मामला न्यायालय में लंबित है, तो ऐसी स्थिति में नई नियुक्ति करना या पूर्व निर्णय को रद्द करना उचित नहीं है। यदि लंबे समय से कोई कर्मचारी कार्यरत है, तो उसकी सेवाओं को बिना उचित कारण समाप्त करना न्याय के खिलाफ है।

सुधार और पारदर्शिता का महत्व

यह मामला भारत के सार्वजनिक चयन और भर्ती प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है। सरकार को चाहिए कि वह नियमों में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करे, ताकि अभ्यर्थियों का भरोसा बना रहे। साथ ही, रिटायरमेंट, नियुक्ति और सेवा अवधि के नियमों में स्पष्टता जरूरी है, ताकि ऐसी स्थिति दोबारा न बने।

न्यायपालिका का संदेश और सुधार की आवश्यकता

यह मामला यह स्पष्ट कर देता है कि भर्ती प्रक्रिया में नियमों का सही पालन, पारदर्शिता और न्याय की प्राथमिकता होनी चाहिए। हाई कोर्ट का फैसला इस दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है कि किसी भी प्रक्रिया में अनियमितता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

आशा है कि इस निर्णय से न केवल भर्ती में पारदर्शिता आएगी, बल्कि भविष्य में सरकारी नौकरियों में भी न्याय सुनिश्चित किया जा सकेगा। सरकार और आयोग को चाहिए कि वे इस फैसले का सम्मान करें और नियमों का सही पालन करते हुए निष्पक्ष भर्ती प्रक्रिया सुनिश्चित करें।

न्याय का प्रतीक और नई शुरुआत

यह विवाद केवल एक भर्ती प्रक्रिया का ही नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था की ताकत का भी प्रमाण है। न्यायालय ने अपने फैसले से यह दिखा दिया है कि नियमों का उल्लंघन किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह मामला हमें सीख देता है कि सरकारी नियुक्तियों में नियमों का सख्ती से पालन और न्याय का सम्मान जरूरी है। जब तक सभी पक्ष नियमों का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक देश में समानता, निष्पक्षता और विकास संभव नहीं है।

 

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