पुस्तक लोकार्पण समारोह : प्राचार्या प्रो.स्वाति पाल बोलीं, शिक्षा में समावेशिता अनिवार्य है

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज: शिक्षा का क्षेत्र सदैव ही समाज के विकास का आधार रहा है और इस विकास में समावेशिता का स्थान सर्वोपरि है। जब हम शिक्षा के माध्यम से समाज में बदलाव लाने की बात करते हैं तो यह जरूरी हो जाता है कि हम सभी वर्गों, समुदायों और व्यक्तियों को बराबर का अवसर एवं स्थान दें। इसी संकल्प के साथ जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) की प्राचार्या प्रो. स्वाति पाल ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट रूप से कहा कि “शिक्षा में समावेशिता अनिवार्य है।” उनके इस कथन ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में एक नई दिशा की ओर संकेत किया बल्कि इस विचार को समाज में व्यापक रूप से फैलाने का भी प्रयास किया। समारोह का आयोजन भारत में साहित्य और सामाजिक जागरूकता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किया गया था, जहां विभिन्न विद्वान, छात्र, और साहित्यकार एक साथ आए।
समावेशिता का अर्थ और उसकी आवश्यकता
प्रो. स्वाति पाल ने अपने भाषण में कहा कि “शिक्षा का मूल उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं बल्कि ऐसी व्यवस्था बनाना है जिसमें हर किसी को समान अवसर मिले और समाज में समान भागीदारी सुनिश्चित हो।” उन्होंने स्पष्ट किया कि समावेशिता का तात्पर्य केवल शैक्षिक वातावरण में विविधता को मान्यता देने से नहीं है, बल्कि इसकी वास्तविक परिभाषा है कि बच्चे, युवा, और वयस्क, सभी को अपने साथियों के साथ समान रूप से भाग लेने, सीखने और समाज में सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर मिले।
उन्हें इस बात का भी अनुभव है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में जहां सामाजिक, आर्थिक, लैंगिक, और सांस्कृतिक भिन्नताएं हैं, वहां समावेशिता का सिद्धांत और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। बिना समावेशिता के शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य अधूरा रह जाता है, क्योंकि इससे समाज में विभाजन और असमानता बढ़ती है।
शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य
प्रो. पाल ने अपने भाषण में कहा कि “शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, सामाजिक जागरूकता और समानता का सृजन है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक हम शिक्षा के माध्यम से समावेशी वातावरण का निर्माण नहीं करते, तब तक हम समाज में स्थायी बदलाव नहीं ला सकते। उनके अनुसार, शिक्षकों, अभिभावकों, और नीति निर्धारकों का काम है कि वे ऐसी शिक्षण पद्धतियों को अपनाएं जो सभी बच्चों को समान रूप से सीखने का अवसर प्रदान करें। उन्होंने कहा कि समावेशिता का मतलब है कि हम शैक्षिक संसाधनों, पाठ्यक्रम, और शिक्षण विधियों में विविधता लाएं ताकि हर छात्र अपनी विशिष्टताओं के साथ सीख सके।
पुस्तक लोकार्पण और उसके पीछे का उद्देश्य
हाल ही में भारत में साहित्य और समाजिक चेतना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से “स्पीकिंग (ऑफ) विडोज” नामक पुस्तक का लोकार्पण किया गया। इस पुस्तक का सह-सम्पादन प्रो नमिता सेठी, प्रो वी राज्यलक्ष्मी और श्री तरुण शर्मा ने किया है। इस कार्यक्रम का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली में किया गया, जिसमें जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) और गिल्ड ऑफ सर्विस ने भागीदारी की। यह कार्यक्रम न केवल पुस्तक का विमोचन था, बल्कि यह भारत में विधवाओं के सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति, उनके प्रतिनिधित्व, और समाज में उनके साथ जुड़ी रूढ़ियों पर एक विचार-विमर्श का मंच था।
विधवाओं का सांस्कृतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था कि भारत में विधवाओं के सांस्कृतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व को समझा जाए और इन पर मौजूद समाजिक रूढ़ियों को तोड़ा जाए। वर्तमान में, विधवाओं को समाज में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें से अधिकांश सामाजिक मान्यताएं और परंपराएं हैं। पुस्तक में इन विषयों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है, साथ ही विधवाओं की विविध जीवनशैली, उनकी सांस्कृतिक गतिविधियों और समाज में उनके अधिकारों पर भी चर्चा की गई है। इस चर्चा में विद्वान, लेखक, समाजसेवी और छात्र वर्ग ने भाग लिया, जिन्होंने अपने विचारों और अनुभवों को साझा किया।
कार्यक्रम का सजीव चित्रण
कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि और वक्ताओं के परिचय के साथ हुई। प्रो. नमिता सेठी ने कहा कि यह पुस्तक और यह विमर्श समाज में बदलाव लाने का एक प्रयास है। उन्होंने बताया कि समाज में विधवाओं का स्थान अभी भी कई जगहों पर अवांछित और उपेक्षित है और इन रूढ़ियों को तोड़ने के लिए साहित्य और शिक्षा का प्रयोग आवश्यक है। प्रो. वी. राज्यलक्ष्मी ने कहा कि विधवाओं की स्थिति को समझने के लिए हमें उनकी सांस्कृतिक परंपराओं और जीवनशैली का अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि विधवाओं को समाज में सम्मान और समान अधिकार देने के लिए समाज में जागरूकता फैलाना जरूरी है। तरुण शर्मा ने कहा कि इस तरह की पुस्तकें और कार्यक्रम समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने समाज में मौजूद रूढ़ियों को चुनौती देना चाहिए और विधवाओं को समाज का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए।
छात्रों की प्रस्तुतियां और अनुभव
कार्यक्रम में छात्रों ने अपनी प्रस्तुतियों से यह दिखाया कि वे बदलाव के प्रति जागरूक हैं। अनेक छात्रों ने अपने अनुभव साझा किए कि कैसे उन्होंने अपने परिवार और समाज में विधवाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया है। छात्रों ने अपने भाषणों में कहा कि शिक्षा और जागरूकता ही बदलाव का आधार हैं, और उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में समाज अधिक समावेशी और सहिष्णु होगा।
गिल्ड ऑफ सर्विस और जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज की भूमिका
गिल्ड ऑफ सर्विस की अध्यक्षा मीरा खन्ना और उपाध्यक्ष प्रो. मालाश्री लाल ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि यह आयोजन समाज में जागरूकता और बदलाव लाने का एक महत्वपूर्ण कदम है। प्राचार्या प्रो. स्वाति पाल ने अपने भाषण में कहा कि शिक्षा और साहित्य के माध्यम से ही समाज में परिवर्तन संभव है। उन्होंने यह भी कहा कि कॉलेज का उद्देश्य है कि छात्र न केवल अकादमिक ज्ञान प्राप्त करें बल्कि समाज के प्रति जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनें।
छात्र-शिक्षक और समाज की भागीदारी
यह कार्यक्रम छात्रों, शिक्षकों और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संवाद का माध्यम बना। छात्रों को अपने अनुभव साझा करने का अवसर मिला, जिससे उन्हें अनुभवात्मक सीखने का लाभ हुआ। सभी ने मिलकर यह प्रतिज्ञा की कि वे समाज में सांस्कृतिक समावेशिता और रूढ़ियों के विरुद्ध काम करेंगे ताकि भारत का भविष्य अधिक समावेशी और समानता आधारित हो सके।
न्यायसंगत समाज का निर्माण
“शिक्षा में समावेशिता अनिवार्य है” – यह कथन आज के समाज में प्रासंगिक और आवश्यक है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि किस प्रकार शिक्षा के माध्यम से हम समाज में बदलाव ला सकते हैं और कैसे हम सब मिलकर एक अधिक समान और न्यायसंगत समाज का निर्माण कर सकते हैं। पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिसमें साहित्य, शिक्षा और समाजिक जागरूकता का मेल देखने को मिला। इस तरह के आयोजनों से समाज में मौजूद रूढ़ियों का तोड़ना आसान हो जाएगा और नई पीढ़ी को एक समावेशी और जागरूक समाज का सपना साकार करने का अवसर मिलेगा। आशा की जानी चाहिए कि आगे भी ऐसी पहलें और कार्यक्रम समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का काम करें और हम सब मिलकर भारत को एक नई दिशा में ले जाएं।