अचानक जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद सत्ता खेमे की चुप्पी, प्रधानमंत्री के संक्षिप्त संदेश में दिखी नाखुशी

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति के पद से जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम को अचानक इस्तीफा दिया और मंगलवार को उसे राष्ट्रपति ने स्वीकार भी कर लिया। यह आखिर क्यों हुआ? इस जिज्ञासा के साथ विपक्ष बेशक ‘असल कहानी‘ कुरेदने के लिए बेताब है, लेकिन अप्रत्याशित घटना के बाद सत्ताधारी खेमे की खामोशी कुछ इशारा जरूर करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संक्षिप्त संदेश के भी यही निहितार्थ निकाले जा रहे हैं कि जिस व्यक्ति को भाजपा ने सफलता और सम्मान के शीर्ष आसन तक पहुंचाया, शायद उनके किसी कार्य-व्यवहार ने आखिर में मन को कोई टीस पहुंचा दी है।

अधूरी रह गई अपेक्षा

 

प्रधानमंत्री मोदी ने जरूर मंगलवार को एक्स पर पोस्ट किया, लेकिन उनके संदेश का आकार और शब्द, उनके भाव को काफी कुछ बयां करने का प्रयास कर रहे हैं। मोदी ने लिखा- ‘जगदीप धनखड़ को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं।’ इस संदेश में जो अवसर मिलने की बात कही है, उसे उन्हीं अवसरों से जोड़कर देखा जा रहा है जो धनखड़ को भाजपा ने उपलब्ध कराते हुए सफलता के इस शीर्ष पर पहुंचाया। अधूरा-अधूरा सा संदेश अधूरी रह गई अपेक्षाओं का भी संकेत देता है।

भाजपा के सहारे ही बुलंदियों तक पहुंचे धनखड़

जगदीप धनखड़ ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जो अन्य दलों से होते हुए भाजपा में आए और यहां भी उनकी क्षमताओं को देखते हुए हाथों-हाथ लिया गया। मूल रूप से राजस्थान के झुंझुनू जिले के निवासी धनखड़ ने अपनी राजनीतिक यात्रा जनता दल से शुरू की थी। 1991 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके थे। हालांकि, तब उन्होंने राज्य की राजनीति में सक्रियता जारी रखी। इसके बाद वह 2003 में भाजपा में शामिल हो गए। राजस्थान से ही भाजपा में और भी कद्दावर नेता रहे हैं और वर्तमान में भी हैं, लेकिन भाजपा ने धनखड़ को आगे बढ़ने का पूरा अवसर दिया।

उनके राजनीतिक करियर ने सफलता की ऊंचाइयों को तब छुआ जब भाजपा ने उन पर भरोसा जताते हुए वर्ष 2019 में उन्हें बंगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल बनाया। निस्संदेह वहां उन्होंने अपने कर्तव्यों का अपेक्षा अनुरूप निर्वहन किया, जिसके परिणामस्वरूप राजग सरकार ने वर्ष 2022 में जगदीप धनखड़ को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी बनाया और वह चुनाव जीतकर देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हुए।

उपराष्ट्रपति पद के लिए जल्द कराया जाएगा चुनाव

उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफा देने और उसकी अधिसूचना जारी होने के साथ ही नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की तैयारी तेज हो गई है। जो संकेत दिए गए हैं, उसके तहत उपराष्ट्रपति पद के लिए जल्द चुनाव कराए जाएंगे। माना जा रहा है कि अगले सप्ताह तक चुनाव आयोग की ओर से अधिसूचना जारी हो सकती है। धनखड़ ने सोमवार देर शाम अपने पद से इस्तीफा दिया था। उसका कार्यकाल अभी 2027 तक था।

चुनाव की तैयारी शुरू

 

चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की अधिसूचना जारी होने के साथ ही उस पद को रिक्त मान लिया जाता है। ऐसे में इस पद के लिए चुनाव की तैयारी शुरू कर दी गई है। जल्द ही इसका कार्यक्रम  घोषित किया जाएगा। हालांकि इस चुनाव की प्रक्रिया दूसरे चुनाव जैसी ही होती है। इसमें नामांकन दाखिल करने की अवधि से लेकर नामांकन पत्रों की जांच, नाम वापसी जैसे प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस दौरान यदि चुनाव की स्थिति बनी तो मतदान और बाद में मतगणना आदि की प्रक्रिया भी अपनाई जाती है। इस चुनाव में संसद के दोनों सदनों के यानी लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य हिस्सा लेते हैं।

गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन के लिए संविधान में भी व्यवस्था की गई है। जिसमें इस्तीफे से खाली हुए उपराष्ट्रपति पद के लिए जल्द से जल्द चुनाव कराने को कहा गया है। वहीं कार्यकाल खत्म होने की स्थिति में  इसके लिए चुनाव को कार्यकाल की अवधि खत्म होने के 60 दिनों के भीतर ही कराने की व्यवस्था है।

कौन हो सकता है निर्वाचित

संविधान के तहत कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति के लिए तभी निर्वाचित हो सकता है जब वह भारत का नागरिक हो। वह पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है और जो राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।इस चुनाव में हिस्सा लेने के लिए उसे संसद के कम से कम 20 सदस्यों के प्रस्तावक और कम से कम 20 सदस्यों का समर्थन करना जरूरी है। इसके लिए नामांकन के दौरान उसे 15 हजार की जमानत राशि भी जमा करना होता है।

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