आरएसएस ने कहा, समाज के समग्र विकास के लिए हो जाति आधारित गणना का उपयोग

नागपुर, एजेंसी। RSS News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने एक पदाधिकारी द्वारा जाति आधारित गणना का विरोध किये जाने के बाद कहा कि इस तरह की कवायद का उपयोग समाज के समग्र विकास के लिए किया जाना चाहिए। इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सामाजिक सद्भाव और एकता को कोई नुकसान न हो।
कहा, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सामाजिक सद्भाव और एकता को कोई नुकसान न हो
आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने एक्स पर कहा कि संघ किसी भी प्रकार के भेदभाव, विषमता से मुक्त हिंदू समाज के लक्ष्य को लेकर सतत कार्यरत है। यह सही है कि विभिन्न ऐतिहासिक कारणों से समाज के अनेक घटक आर्थिक, सामाजिक अैर शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ गए। उनके विकास, उत्थान एवं सशक्तीकरण की दृष्टि से विभिन्न सरकारें अनेक योजनाओं का प्रविधान करती हैं, जिनका संघ पूर्ण समर्थन करता है। आंबेकर ने कहा कि पिछले कुछ समय से जाति आधारित गणना की चर्चा फिर से शुरू हुई है। हमारा यह मानना है कि इसका उपयोग समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए हो और यह करते समय सभी पक्ष यह सुनिश्चित करें कि किसी भी कारण से सामाजिक समरसता एवं एकात्मकता खंडित न हो। संघ का बयान 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
विधानसभा चुनावों के दौरान चुनावी मुद्दा बन गई जाति आधािरत गणना
विशेष रूप से कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल जाति आधारित गणना की मांग कर रहे हैं। यह मांग पिछले महीने के विधानसभा चुनावों के दौरान एक चुनावी मुद्दा भी बन गई थी। महत्वपूर्ण यह भी है कि यह बयान संघ के वरिष्ठ प्रचारक और विदर्भ क्षेत्र के प्रमुख श्रीधर गाडगे के यह कहने के कुछ दिनों बाद आया है कि हमें जाति आधारित गणना में कोई लाभ नहीं दिखता, बल्कि नुकसान दिखता है। यह असमानता की जड़ है और इसे बढ़ावा देना उचित नहीं है। जाति आधारित गणना के बिना भी आरक्षण जारी रखा जा सकता है। गाडगे की यह टिप्पणी भाजपा और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के विधायकों की नागपुर में संघ मुख्यालय की यात्रा के दौरान आई थी। उस समय संघ के सर संघचालक मोहन भागवत नागपुर में नहीं थे। गाडगे के इस बयान के बाद कांग्रेस ने एक्स पर पोस्ट किया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो भाजपा को चलाता है हमेशा जाति आधारित गणना के खिलाफ रहा है। इस पर संघ और भाजपा का रुख बिल्कुल साफ है। दलितों और पिछड़ों को उनका हक किसी भी कीमत पर नहीं मिलना चाहिए। इसी सोच के कारण एक भी संघ प्रमुख दलित या पिछड़े वर्ग से नहीं हुआ। आरएसएस का स्पष्टीकरण इसी पृष्ठभूमि में आया है।

 
                                             
                                             
                                             
                                         
                                         
                                         
                                        