जन्मशताब्दी वर्ष में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान, जानें उनकी जननायक की छवि के बारे में

कर्पूरी ठाकुर की फाइल फोटो।

नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्र सरकार ने बड़ी घोषणा की है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पिछड़ों के नेता कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (मरणोपरांत ) देने का फैसला किया गया है। वह पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे। 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर जन्म शताब्दी है। कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे चुनाव कभी नहीं हारे।बुधवार को उनकी जन्मशताब्दी के मौके पर विज्ञान भवन में कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी

पीएम नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर कहा कि इस घोषणा के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है और वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्मशती मना रहे हैं। यह प्रतिष्ठित सम्मान हाशिये पर पड़े लोगों के लिए एक चैंपियन, समानता और सशक्तिकरण के समर्थक के रूप में उनके स्थायी प्रयासों का एक प्रमाण है। दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है। यह पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान करता है बल्कि हमें एक अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है।

कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए

 

बिहार के समस्तीपुर में जन्मे कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। हालांकि वह कभी अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर पाए। उन्हें पिछड़ें वर्गों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ करने के लिए जाना जाता है। उन्होने मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिशों को लागू करवाया था। इसके लिए उनको अपनी सरकार की भी कुर्बानी देनी पड़ गई। इसके अलावा उन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था में भी कई अमूलचूक परिवर्तन किए थे। उपमुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेजी पास करने की अनिवार्यता को खत्म कर दिया था।

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आठवीं तक की शिक्षा मुफ्त की थी

 

वह बिहार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो कि कांग्रेस से नहीं थे। 1952 में पहली बार उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता था। वह जयप्रकाश नारायण को आदर्श मानते थे। 1970 में सरकार में मंत्री बनने के बाद उन्होने आठवीं तक की शिक्षा मुफ्त करने का ऐलान कर दिया था। उन्होंने उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया।

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बिहार में पहली बार की थी शराबबंदी

 

ठाकुर को बिहार में पहली बार शराबबंदी करने के लिए भी जाना जाता है। वहीं उनकी पहचान उनकी सादगी के लिए भी है। बताया जाता है कि वह अपने काम खुद करना पसंद करते थे। यहां तक कि दूसरों से हैंडपंप चलवाकर वह पानी तक नहीं पीते थे। वह अपने कपड़े भी खुद धुला करते थे। कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी 1988 को हो गया था।

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