अनुप्रिया पटेल ने भर्तियों में आरक्षण का मुद्दा उठाया, योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिख लगाए गंभीर आरोप, आयोग ने दिया जवाब

लखनऊ, बीएनएम न्यूज: अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर आरक्षित पदों को अनारक्षित घोषित किए जाने की व्यवस्था पर रोक लगाने की कार्रवाई किए जाने का अनुरोध किया है। इसके उलट विभिन्न भर्ती बोर्डों से जुड़े अधिकारियों ने कहा है कि अनुप्रिया के आरोपों में दम नहीं हैं।

यदि किसी श्रेणी में अभ्यर्थी न्यूनतम अर्हता अंक हासिल नहीं कर पाते तो ऐसी रिक्तियों को आयोग स्तर पर किसी अन्य श्रेणी में करने का अधिकारी नहीं है। यह रिक्तियां शासनादेश के आधार पर आगे बढ़ाई जाती हैं।

गुरुवार को मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र में अनुप्रिया ने अनुरोध किया है कि सिर्फ साक्षात्कार आधारित नियुक्ति प्रक्रिया वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित पदों को सिर्फ इस वर्ग के अभ्यर्थियों से ही भरा जाए।

इन पदों को भरने के लिए जितनी भी बार नियुक्ति प्रक्रिया करनी पड़े की जानी अनिवार्य की जाए। साक्षात्कार आधारित नियुक्ति प्रक्रिया वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में ओबीसी व एससीएसी के लिए आरक्षित पदों पर प्राय: नाट फाउंड शुटेबल घोषित कर इन वर्गों से आने वाले अभ्यर्थियों का चयन नहीं किया जाता है।

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने दिया जवाब

इस पर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने भी अपनी ओर से सरकार को पत्र लिखकर जानकारी दी है कि नियमावली में स्पष्ट है कि न्यूनतम अर्हता अंक न मिलने पर भी नाट फाउंड सूटेबल अंकित नहीं किया जाता है, बल्कि ग्रेडिंग अंकित की जाती है। साक्षात्कार समाप्ति के पश्चात साक्षात्कार परिषद के सदस्य तथा प्रविधिक परामर्शदाताओं द्वारा दी गई ग्रेडिंग को औसत के सिद्धांत के आधार पर परिवर्तित कर मार्कशीट में अंकित किया जाता है।

रिक्तियों के सापेक्ष किसी भी श्रेणी में अभ्यर्थी न्यूनतम अर्हता अंक धारित नहीं करते या उपलब्ध नहीं होते तो ऐसी सारी अनभरी रिक्तियों को आयोग स्तर पर किसी अन्य श्रेणी में परिवर्तित करने का अधिकार नहीं है। शासनादेश के अनुसार कार्यवाही करते हुए ऐसी रिक्तियां अग्रेनीत (कैरी फारवर्ड) कर दी जाती हैं। साक्षात्कार लेने वाले लोगों को अभ्यर्थी का क्रमांक, नाम, जाति (श्रेणी), आयु की जानकारी नहीं दी जाती है।

दूसरी ओर इस मसले पर प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय कहते हैं कि संविधान के 81वें संशोधन अधिनियम, 2000 में राज्य सरकार को यह शक्ति दी गई है कि ऐसे रिक्त पदों को पृथक श्रेणी का माना जाए और उन्हें आरक्षित श्रेणी से ही भरा जाए। उन्हें उस वर्ष की रिक्तियों में न मिलाया जाए। इस संशोधन ने बैकलाग रिक्तियों के मामले में आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को समाप्त कर दिया है। इसलिए ऐसा किया ही नहीं जा सकता।

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सपा ने भी उठाया आरक्षण से खिलवाड़ का मुद्दा

सपा ने भी एसजीपीजीआइ की भर्ती में आरक्षण से खिलवाड़ किए जाने का मुद्दा उठाया है। पार्टी के प्रवक्ता डा. आशुतोष वर्मा ने इंटरनेट मीडिया एक्स पर लिखा कि देश के सर्वोच्च संस्थान एसजीपीजीआइ लखनऊ में खुले आम हो रहा है आरक्षण से खिलवाड़! 97 सीट का आवेदन दिया गया, जिसने आरक्षित वर्ग की 48 सीट में से सिर्फ दो सीट पर एससी/एसटी और आठ पर ओबीसी डाक्टर का ही चयन हुआ, बाकी 38 सीट कहां गईं कुछ अता-पता नहीं है।

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