हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की मनमानी? हाई कोर्ट ने लगाई फटकार, सचिव को हलफनामा दाखिल करने का आदेश
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नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़ : हरियाणा में सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं के लिए एक बड़ी खबर सामने आई है। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) के सचिव को एक अहम मामले में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। यह मामला गोहाना (सोनीपत) के निवासी राहुल द्वारा दायर एक याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने सहायक जेल अधीक्षक (पुरुष) के पद पर चयन में अनुचित देरी का आरोप लगाया है। हाई कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए आयोग से स्पष्टीकरण मांगा है और भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के निर्देश दिए हैं।
याचिकाकर्ता का आरोप
याचिकाकर्ता राहुल ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि वे सहायक जेल अधीक्षक (पुरुष) के पद के लिए सभी आवश्यक योग्यताएं रखते हैं और उन्होंने सभी परीक्षाएं भी सफलतापूर्वक पास की हैं। इसके बावजूद, उन्हें नियुक्ति नहीं दी जा रही है। राहुल का कहना है कि HSSC ने 4 फरवरी 2025 को उन्हें एक ईमेल भेजकर 20 फरवरी को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए बुलाया, साथ ही एक अज्ञात एजेंसी को भी रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता के वकील रजत मोर ने अदालत में तर्क दिया कि यह अज्ञात एजेंसी असंवैधानिक है और भर्ती प्रक्रिया में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप कर रही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब आयोग ने स्वयं परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया है, कटऑफ अंक और जन्मतिथि के आधार पर याचिकाकर्ता को योग्य ठहराया है, तो इस अतिरिक्त सुनवाई की क्या आवश्यकता है। वकील ने आशंका जताई कि इस अज्ञात एजेंसी की रिपोर्ट चयन प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है और राहुल के साथ अन्याय हो सकता है।
अदालत का सख्त रुख: पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर
हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद एस भारद्वाज की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान सख्त रुख अपनाते हुए हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि यदि यह पाया जाता है कि आयोग ने नियुक्ति में अनावश्यक और अवैध रूप से देरी की है, तो आयोग के सचिव से उस अवधि का वेतन और अन्य लाभ वसूलने का आदेश दिया जा सकता है। इसका मतलब है कि यदि अदालत को लगता है कि आयोग ने जानबूझकर राहुल के चयन में देरी की है, तो सचिव को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
अदालत का यह रुख इस बात का संकेत है कि वह सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। अदालत ने आयोग को स्पष्ट संदेश दिया है कि वह उम्मीदवारों के चयन में मनमानी और देरी बर्दाश्त नहीं करेगी।
आयोग का जवाब: समय की मांग और मामले की सुनवाई स्थगित
सुनवाई के दौरान, हरियाणा सरकार की ओर से पेश हुए आयोग ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। अदालत ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई 21 फरवरी तक स्थगित कर दी। इसका मतलब है कि अब आयोग को इस मामले में अपना पक्ष रखने और हाई कोर्ट के सवालों का जवाब देने के लिए 21 फरवरी तक का समय मिल गया है। इस दौरान, आयोग को यह स्पष्ट करना होगा कि उसने अज्ञात एजेंसी की रिपोर्ट क्यों मंगवाई, अन्य उम्मीदवारों के चयन में भी क्या ऐसा ही किया गया था, और राहुल के चयन में देरी का क्या कारण है।
राहुल की पृष्ठभूमि: परीक्षा परिणाम में गड़बड़ी और कानूनी लड़ाई
राहुल ने जून 2024 में विज्ञापित सहायक जेल अधीक्षक पद के लिए आवेदन किया था। उन्होंने 2022 में कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (CET) परीक्षा दी थी और 78 से अधिक अंक प्राप्त किए थे। हालांकि, परीक्षा परिणाम में कथित गड़बड़ी के कारण, राहुल और अन्य उम्मीदवारों को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। उन्होंने परीक्षा परिणाम में पारदर्शिता की मांग की थी और आरोप लगाया था कि परिणाम में अनियमितताएं हैं।
हाई कोर्ट ने 2023 में परीक्षा परिणाम को संशोधित करने और उम्मीदवारों के दस्तावेजों की जांच के बाद ही लिखित परीक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था, जिससे हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि हुई थी। इसके बाद, राहुल ने लिखित परीक्षा भी पास की और उन्हें सहायक जेल अधीक्षक के पद के लिए योग्य पाया गया।
आयोग पर आरोप: पक्षपात और बदले की भावना
याचिकाकर्ता का आरोप है कि उन्होंने कर्मचारी चयन आयोग की चयन प्रक्रिया में खामियों को उजागर किया था, जिसके कारण उन्हें जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। राहुल का मानना है कि आयोग उनके चयन में देरी कर रहा है और उन्हें परेशान करने की कोशिश कर रहा है क्योंकि उन्होंने आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे।
यह आरोप गंभीर है और यदि यह साबित हो जाता है, तो यह HSSC की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा देगा। अदालत इस पहलू पर भी गौर कर सकती है कि क्या राहुल को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि उन्होंने आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। यदि ऐसा होता है, तो यह भर्ती प्रक्रिया में पक्षपात और बदले की भावना को दर्शाता है, जो कि अस्वीकार्य है।
मामले का महत्व: पारदर्शिता और निष्पक्षता
यह मामला हरियाणा में सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता के महत्व को उजागर करता है। यह दिखाता है कि उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया में देरी और मनमानी के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार है। हाई कोर्ट का सख्त रुख इस बात का संकेत है कि वह सरकारी एजेंसियों को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने और भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए बाध्य करने के लिए प्रतिबद्ध है।
यह मामला उन सभी उम्मीदवारों के लिए प्रेरणादायक है जो सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे हैं। यह उन्हें यह याद दिलाता है कि उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और सरकारी एजेंसियों की मनमानी के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
आगे की राह: आयोग को जवाब देना होगा
अब, हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग को 21 फरवरी को हाई कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखना होगा। आयोग को इन सवालों का जवाब देना होगा: