सबसे बड़े संकट से कैसे निकलेंगे अरविंद केजरीवाल, 2012 में पार्टी के गठन के बाद आ चुके हैं कई उतार-चढ़ाव

नई दिल्ली, BNM News: Arvind Kejriwal Arrested:  गठन के बाद से आम आदमी पार्टी जिस तरह आगे बढ़ रही थी, किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि आबकारी घोटाले में पार्टी का ऐसा हश्र होगा। पार्टी के दो प्रमुख नेताओं मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के जेल जाने के बाद अब केजरीवाल की भी गिरफ्तारी हो गई है। आप के मुख्य कर्ताधर्ता व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ही हैं। उन्होंने पिछले 12 साल में ही अपने राजनीतिक करियर में कई बार उतार-चढ़ाव देखे हैं। उनके कई प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़ी या फिर उन्हें बाहर किया गया, उनकी पार्टी का कई राज्यों में दो-दो बार चुनाव लड़ने के बाद भी खाता नहीं खुल सका। दिल्ली में पहली बार सरकार बनाकर मुख्यमंत्री बनने पर केजरीवाल को 49 दिन में इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन उसके बाद फिर से लगातार दो बार दिल्ली में बड़ी जीत के साथ सरकार बनाई। दिल्ली में तीन बार सत्ता में आने के साथ केजरीवाल के नाम पर आप पंजाब में भी सत्तासीन हुई और अब उसका दिल्ली नगर निगम में भी कब्जा है। मगर इस दौरान वह हर समय विपक्षी दलों के निशाने पर रहे हैं।

2012 मं पार्टी के गठन के बाद का सफरनामा

भ्रष्टाचार के खिलाफ 2011 में खड़े हुए अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल प्रमुख रूप से उभरे। वहां से निकलकर उन्होंने 2012 में आम आदमी पार्टी बनाई। इसी को लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने वाली अन्ना हजारे और केजरीवाल में मनमुटाव हुआ। इसके बाद हजारे ने केजरीवाल से दूरी बना ली। आइआरएस अधिकारी रहे केजरीवाल एक साल बाद 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरे। आम आदमी पार्टी ने पहला चुनाव लड़ा। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में आप दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसे 28 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने उसे बाहर से समर्थन दिया और दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बन गई, लेकिन यह सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल सकी, 49 दिन बाद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। आप ने 2014 का लोकसभा चुनाव देश की 400 सीटों पर लड़ा। केजरीवाल वाराणसी से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े। केजरीवाल चुनाव हार गए। आप के हाथ कुछ नहीं लगा। दिल्ली में भी एक भी सीट नहीं मिली। उनकी पार्टी सिर्फ पंजाब में चार सीटों पर जीत दर्ज कर सकी। इसके बाद केजरीवाल ने सिर्फ दिल्ली पर फोकस किया।

2015 में पार्टी ने जीती 67 सीटें

 

2015 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल की। आप को 70 में से 67 सीटें मिलीं, लेकिन इस बीच पार्टी में अंतर्कलह सामने आने लगा। अप्रैल 2015 में पार्टी के संस्थापक सदस्यों योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और प्रो. आनंद कुमार को आप से निष्कासित कर दिया गया। इसमें बड़े नेताओं में अंतिम बार 2018 में पार्टी छोड़ने वालों में नेता आशीष खेतान रहे हैं। इससे कुछ समय पहले ही आशुतोष ने आप छोड़ दी थी। कुमार विश्वास भी आप से दूरी बना चुके हैं। केजरीवाल 2015 में पूर्ण बहुमत से दिल्ली में सत्ता में आए, तो काम करने के तरीके को लेकर उनका लगातार उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ टकराव हुआ। अप्रैल 2017 में भाजपा ने दिल्ली नगर निगम पर लगातार तीसरी बार कब्जा किया। उनकी पार्टी के 272 में से सिर्फ 48 पार्षद जीत सके। 2017 में केजरीवाल ने फिर अपनी पार्टी को पंजाब विधानसभा चुनाव में उतारा और 117 में से 20 सीटें हासिल कीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से उन्हें झटका लगा, जब भाजपा ने दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें जीत लीं।

2019 के बाद केजरीवाल ने किया रणनीति में बदलाव

 

इस चुनाव के बाद केजरीवाल ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। केजरीवाल ने मोदी विरोध लगभग खत्म कर दिया और सिर्फ अपने काम का जिक्र करना शुरू कर दिया। केजरीवाल ने 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भी 70 में से 62 सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। केजरीवाल के नेतृत्व में 10 मार्च, 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में 117 सीटों में से आप ने 92 सीटें जीतीं। आप ने पंजाब में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाईं। वहीं, 11 मार्च 2022 को आए गोवा विधानसभा के चुनाव परिणाम में आप को दो सीटें मिलीं। सात दिसंबर 2022 को दिल्ली नगर निगम के आए चुनाव परिणाम में आप ने 250 में से 134 सीटों जीतकर दर्ज की। आठ दिसंबर 2022 को गुजरात विधानसभा के आए चुनाव परिणाम में आप को पांच सीटें मिलीं, मगर हिमाचल विधानसभा चुनाव में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली और प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई।

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