Atal Bihari Vajpayee Anniversary: अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण से उनके विरोधी भी हो जाते थे मुरीद, कई दूरगामी फैसले किए
नई दिल्ली, BNM News। Atal Bihari Vajpayee Anniversary: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हमेशा ही बहुत ही सम्मान की नजर से देखा जाता था। वह कवि थे। उनके बोलने में वाकपटुता देखते ही बनती थी। उनके बोलने के अंदाज, तार्किक तरीके से अपनी बात कहने की कला इतनी असरदार थी कि विरोधी उनकी आलोचना करने से बचा करते थे। संसद में उनसे बहस से इतना उलझना आसान नहीं हुआ करता था।
कई दूरगामी नतीजे देने वाले काम किए
अटल बिहारी वाजपेयी को देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से गिना जाता है। उन्होंने प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल में कई दूरगामी नतीजे देने वाले काम किए, लेकिन उन्हें हमेशा ही उनके शानदार भाषणों और बातचीत से दूसरों को प्रभावित करने के लिए जाना जाता रहा है। उनकी समावेशी राजनीति के चलते उन्होंने विरोधियों को भी कई बार साथ लेकर चलने में सफलता हासिल की थी। उनकी वाकपटुता और तर्क के आगे कोई टिक नहीं पाता था। 25 दिसंबर को देश उनका जन्मदिन सुशासन दिवस के रूप में मना रहा है।
तीन बार बने भारत के प्रधानमंत्री
वाजपेयी सबसे पहले 1996 में 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने। बहुमत साबित नहीं होने से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। दूसरी बार वे 1998 में प्रधानमंत्री बने। इस दौरान सहयोगी पार्टियों के समर्थन वापस लेने की वजह से 13 महीने बाद 1999 में फिर आम चुनाव हुए। 13 अक्टूबर 1999 को वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। इस बार उन्होंने 2004 तक अपना कार्यकाल पूरा किया।
भारत ने किया परमाणु परीक्षण
अटल जी ने 1999 में पाकिस्तानी सेना द्वारा कारगिल की चोटियों पर कब्जा करने के बाद आपरेशन विजय को हरी झंडी दी। 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण कराकर खुद को साहसी और सशक्त नेता के तौर पर स्थापित किया। 1992 में पद्म विभूषण और 2015 में भारत रत्न से सम्मानित किए गए।
कई भाषाओं के जानकार थे अटल जी
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और राजनीतिशास्त्र में शिक्षा हासिल की थी। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और एक समय जनता पार्टी का हिस्सा रहे अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। वे संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देने वाले पहले भारतीय थे।
1980 में भाजपा की स्थापना की
1951 में जनसंघ की स्थापना हुई और अटलजी ने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया। 1957 में वाजपेयी मथुरा से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। हालांकि, वे बलरामपुर लोकसभा सीट से जीत गए। आपातकाल के दौरान 1975-77 में उन्हें गिरफ्तार किया गया। 1977 के बाद जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार में वे विदेश मंत्री भी रहे। 1980 में उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नींव रखी। वे 10 बार लोकसभा सदस्य रहे।
नेहरू भी वाजपेयी के भाषणों से प्रभावित थे
अटल जी शुरू से ही अपने भाषण से दूसरों को प्रभावित करते थे। यहां तक कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी उनके भाषणों से प्रभावित थे। उन्होंने कहा था कि वे (अटल बिहारी वाजपेयी) एक दिन जरूर प्रधानमंत्री बनेंगे। उनके हर भाषण में उनका कवि की झलक जरूर दिखती थी।
भाजपा को भारतीय राजनीति का सिरमौर बनाया
यह सच है अटल जी ने कभी भी अपनी पार्टी को साम्प्रदायिक पार्टी नहीं माना बल्कि वे विरोधियों का दुष्प्रचार करारा जवाब देते थे। उनका कहना था कि हिंदुत्व की बात करना साम्प्रदायिकता नहीं है। वे हमेशा खुद को पार्टी के बाद रखा करते थे। एक समय था जब भारत की राजनीति में कोई भी राजनैतिक पार्टी भाजपा से दूरी रखा करती थी। उसके हर नेता की तीखी आलोचना हुआ करती थी, पर अटल जी इसका अपवाद थे। विरोधी भी उनकी आलोचना करने से घबराते थे। अलट बिहारी वाजपेयी खुलकर हिंदुत्व और अपनी पार्टी के ज्वलंत मुद्दों की पैरवी करते थे और आलोचकों को मुंह भी बखूबी बंद किर दिया करते थे।
2005 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया
वाजपेयी ने 2005 में मुंबई में एक रैली में ऐलान कर दिया कि वे सक्रिय राजनीति से संन्यास ले रहे हैं और लालकृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन को बागडोर सौंप रहे हैं। उस वक्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि वाजपेयी मौजूदा राजनीति के भीष्म पितामह हैं। अटलजी 2009 से बीमार थे, 2015 में आखिरी तस्वीर सामने आई थी। वाजपेयी का 16 अगस्त 2018 को 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।