प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान में कहीं भी नहीं होगा माचिस का प्रयोग, जानें कैसे अग्नि को किया जाएगा प्रकट

अयोध्या, BNM News : भगवान रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान में माचिस का प्रयोग कहीं भी नहीं किया जाएगा। अनुष्ठान के लिए प्राचीन अरणि मंथन विधि से अग्नि को प्रकट किया जाएगा। इसके लिए दुर्लभ लकड़ियों का उपयोग होगा। काशी से आए आचार्यगण वैदिक मंत्रोच्चार के बीच इस अग्नि को प्रकट करेंगे।

अरणि मंथन विधि से प्रकट की जाएगी अग्नि

 

इस विधि के लिए शमी और पीपल की लकड़ी का प्रयोग होगा। यह लकड़ी भी ऐसे स्थान से लाई गई है, जहां पीपल और शमी के पेड़ साथ उगते हैं। प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के लिए इस लकड़ी को राजस्थान से लाया गया है। दोनों लकड़ियों को चारों वेदों के परायण के बीच आपस में तब तक रगड़ा जाएगा, जब तक अग्नि प्रकट नहीं हो जाती। इसके साथ ही कांसे के बर्तन में नारियल की जटा व रुई आदि के मिश्रण का चूर्ण तैयार किया जाएगा, जिससे जैसे ही अग्नि प्रगट हो, उस पर चूर्ण डाल कर अग्नि को सुरक्षित किया जा सके।

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यज्ञ-हवन में होगा इसी अग्नि का उपयोग

 

आगामी 19 जनवरी को मंडप में ही अग्नि प्रकट की जाएगी। इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के निमित्त निर्मित मंडप में होने वाले यज्ञ-हवन में इसी अग्नि का उपयोग किया जाएगा। परिसर में नौ कुंड बनाए गए हैं, जिनमें 19 जनवरी से यज्ञ होगा। काशी के वैदिक आचार्य अरुण दीक्षित बताते हैं कि प्राचीन काल में अनुष्ठानों के लिए इसी विधि से अग्नि प्रकट की जाती थी। यह विधि हजारों वर्ष पुरानी है। आचार्य के अनुसार अश्वमेध यज्ञ के साथ ही सोमयज्ञ आदि अनुष्ठान में इसी विधि से अग्नि प्रकट की जाती है।

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