Bihar Politics: फ्लोर टेस्ट को लेकर नीतीश सरकार के खिलाफ तेजस्वी यादव के घर क्या चल रही तैयारी, जानें कल से नजरबंद विधायकों का हाल

पटना, BNM News: Bihar Politics: बिहार में फ्लोर टेस्ट से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां अपने विधायकों की बाड़ेबंदी कर चुकी हैं। तेजस्वी यादव ने आरजेडी विधायकों को अपने आवास पर रोक रखा है तो कांग्रेस के विधायक भी हफ्ते भर की नजरबंदी के बाद रविवार शाम तक हैदराबाद से लौटते ही एयरपोर्ट से सीधे तेजस्वी के बाड़े में पहुंचेंगे। भाजपा के विधायक बोधगया में प्रशिक्षण ले रहे हैं। जेडीयू विधायकों की रविवार को फिर बैठक हो रही है। शनिवार को विधायकों की गोलबंदी का जो परिदृश्य सामने आया, उसमें एक भोज के दौरान जेडीयू के 6 विधायकों के बैठक में न पहुंच पाने की सूचना थी। भाजपा का एक विधायक बोधगया नहीं पहुंच पाया था। सीपीआई (ML) के विधायक महबूब आलम ने एनडीए नेता और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी से मुलाकात की थी। विधायकों की बाड़ेबंदी विधानसभा स्पीकर अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मद्देनजर की जा रही है। सोमवार को नीतीश कुमार के विश्वास प्रस्ताव पर भी वोटिंग होनी है। महागठबंधन की कोशिश है कि 128 विधायकों के समर्थन से बनी नीतीश कुमार की सरकार को 115 विधायकों के अलावा सत्ताधारी दलों के कुछ विधायकों को तोड़ कर धूल चटा दी जाए।

तेजस्वी यादव के लिए लालू ने की इस खेल की तैयारी

विधानसभा में तैयारी दोनों ओर से है। महागठबंधन का प्रमुख घटक दल आरजेडी इस कोशिश में है कि किसी भी तरह तेजस्वी की ताजपोशी हो जाए। इसके लिए आरजेडी को स्पीकर के अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग का अनुकूल अवसर मिल गया है। नीतीश कुमार के पास 128 विधायकों का समर्थन है। पर, आरजेडी के दावे के मुताबिक उनमें कुछ क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं। आरजेडी ने ऐसे विधायकों को आश्वस्त किया है कि क्रॉस वोटिंग करने पर अगर सदस्यता जाने की नौबत आती है तो अपने स्पीकर के रहने पर उन्हें बचा लिया जाएगा। पार्टी से दगाबाजी कर तेजस्वी का साथ देने वाले विधायकों में कुछ को मंत्री बनाया जाएगा तो कुछ लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक विधायकों को टिकट दिया जाएगा। नीतीश के महागठबंधन से अलग होने पर उनके कोटे की 16 सीटें तो आरजेडी के पास बची ही हुई हैं। जो भी हो, तेजस्वी को अपने मकसद में कामयाबी मिले या न मिले, उनकी ताकत का अंदाजा जरूर विधानसभा में लग जाएगा।

नीतीश जीत कर भी कमजोर बने रहेंगे

नीतीश कुमार बाजी मार भी ले जाएं, पर उन्हें आगे भी कमजोरी का एहसास होता रहेगा। उन्हें विपक्ष की एकजुटता से परेशानी आगे भी बनी रहेगी। महज 45 जेडीयू विधायकों के साथ वे 2020 से ही इधर-उधर डोलते रहे हैं। वर्ष 2020 का विधानसभा चुनाव लड़ा भाजपा के साथ। सीएम बने भाजपा के समर्थन से। साल 2022 में महागठबंधन के साथ चले गए। 2024 में फिर भाजपा के साथ सरकार बना ली। नीतीश ने कुर्सी बचाए रखने के लिए तमाम तिकड़म तो किए, लेकिन अब अपने ही चार दर्जन से भी कम विधायकों को उन्हें संभालना पड़ा। यानी आगे भी उन्हें इस बात का विपक्ष तो एहसास कराता ही रहेगा कि वे कम विधायकों वाली पार्टी के नेता हैं। भाजपा भी इसका संकेत दे चुकी है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने साफ कह दिया है कि भाजपा एनडीए में जेडीयू के साथ जरूर है, लेकिन उसने अपनी सरकार बनाने का संकल्प नहीं छोड़ा है।

नीतीश क्या अगली बार भी सीएम रहेंगे?

 

साल 2020 में नीतीश ने कहा था कि उनका यह आखिरी चुनाव है। चुनाव तो तकरीबन दो दशक से उन्होंने नहीं लड़ा। विधान परिषद के रास्ते वो विधानमंडल में आते रहे। उनके कहने का तात्पर्य यही रहा कि विधानसभा चुनाव के लिए अब वे वोट मांगने नहीं आएंगे। महागठबंधन के साथ जाने पर भी उन्होंने कहा था कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा तो क्या अगली बार नीतीश सीएम नहीं बनेंगे? सम्राट चौधरी के संकल्प सुन कर तो यही लगता है कि नीतीश कुमार किसी नए रास्ते की तलाश में हैं। वे किसी तरह मौजूदा कार्यकाल ही पूरा करना चाहते हैं।

भाजपा साथ, पर बढ़ा रही अपनी शक्ति

 

भाजपा और जेडीयू साथ तो आ गए, लेकिन कार्यकर्ताओं के दिल अभी तक नहीं मिले हैं। नीतीश इस उम्मीद में शायद भाजपा के साथ आए हों कि राममय लहर में उन्हें फायदा मिल सकता है। नीतीश तो यह भी चाहेंगे कि लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव भी हो जाएं, ताकि राम लहर का लाभ उनकी पार्टी जेडीयू को भी मिल जाए। राम लहर के फायदे के लिए ही अब जेडीयू के नेता-मंत्री अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए अयोध्या की यात्रा करने वाले हैं। भाजपा मान रही होगी कि उसकी ताकत पहले से जो थी, वह तो अक्षुण्ण है ही, नीतीश के आने से कुछ तो लाभ होगा। नीतीश को साथ लाने के पक्ष में प्रदेश स्तरीय नेताओं के न होने के बावजूद शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें साथ लिया तो इसके पीछे लोकसभा चुनाव की मंशा ही है।

पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में 39 सीटें जीत ली थीं। तब नीतीश कुमार का जेडीयू भी एनडीए का हिस्सा होने के कारण 16 सीटों पर जीत गया था। भाजपा ने इस बार सभी 40 सीटों पर परचम लहराने की योजना बनाई है। पर, यह तभी संभव है, जब भाजपा के वोट जेडीयू को ट्रांसफर हो जाएं। टाइम्स नाउ के सर्वे में बिहार में महागठबंधन की सीटें बढ़ती दिख रही हैं और एनडीए की घट रही हैं। हालांकि, भाजपा की सीटों में कोई कमी नहीं दिख रही। इससे एक बात साफ है कि नीतीश के साथ आने से बिहार में एनडीए को नुकसान ही होगा। चुनाव में तीन महीने का वक्त का बचा है। हो सकता है कि तब तक स्थिति में सुधार हो जाए।

अगर हार गए तो नीतीश के सामने विकल्प क्या ?

 

अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान नीतीश को अपने मकसद में कामयाबी नहीं मिलती है तो वे क्या कदम उठा सकते हैं, बिहार में यह चर्चा भी जोरों पर है। विपक्षी खेमा यही प्रचारित करने में लगा है कि नीतीश विधानसभा भंग करना चाहते हैं। सच यह है कि ऐसी स्थिति आने पर नीतीश की सामने दो विकल्प होंगे। पहला कि वे इस्तीफा दे दें, जो वे नहीं चाहेंगे। दूसरा कि विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दें। दूसरा विकल्प उनके लिए माकूल होगा। इसलिए कि तब वो कार्यकारी मुख्यमंत्री तो बने रहेंगे। संभव है कि लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव हो जाएं तो जेडीयू को शायद फायदा भी मिल जाए।

इस बीच फ्लोर टेस्ट पर RLJP के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने कहा कि खेला तो हो गया… अब कोई खेला नहीं है। ये बयान भ्रमित करने के लिए दिए जा रहे हैं। जिन लोगों ने अपने विधायकों को बंद करके रखा है, खाना पीना दे रहे हैं, मोबाइल तक बंद कर दिए हैं, वो लोग डर रहे हैं और वही कह रहे हैं कि खेला होगा।”

 

 

भारत न्यू मीडिया पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज, Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट , धर्म-अध्यात्म और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi  के लिए क्लिक करें इंडिया सेक्‍शन

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0

You may have missed