Champat Rai: कौन हैं चंपत राय, जिन्हें लोग कहते हैं ‘रामलला का पटवारी’?
नई दिल्ली, BNM News। Who is Champat Rai: 1975 इंदिरा गांधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय बिजनौर के धामपुर स्थित आरएसएम डिग्री कॉलेज में एक युवा प्रोफेसर चंपत राय, छात्रों को chemistry पढ़ा रहे थे, तभी उन्हें गिरफ्तार करने वहां पुलिस पहुंची क्योंकि वह संघ से जुड़े थे। अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय चंपत राय जानते थे कि उनके वहां गिरफ्तार होने पर क्या हो सकता है । पुलिस को भी अनुमान था कि छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है। प्रोफेसर चंपत राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा, आप जाइये मैं बच्चों की क्लास खत्म कर थाने आ जाऊंगा। पुलिस वाले इस व्यक्ति के शब्दों के वजन को जानते थे अतः वे लौट गए। क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कह कर प्रोफेसर चंपत राय घर पहुंचे, माता पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लिया और लंबी जेल यात्रा के लिए थाने पहुंच गए।
राम मंदिर के लिए चंपत राय ने सरकारी नौकरी छोड़ दी
18 महीने उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बेहद कष्टकारी जीवन व्यतीत कर जब बाहर निकले तो इस दृढ़प्रतिज्ञ युवा के आत्मबल को संघ के तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया ने पहचाना और श्री राममंदिर की लड़ाई के लिए अयोध्या जी को तैयार करने का जिम्मा उनके कंधों पर डाल दिया। चंपत राय ने सरकारी नौकरी को लात मार दी और रामकाज में जुट गए। वे अवध के गांव गांव गए हर द्वार खटखटाया। स्थानीय स्तर पर ऐसी युवा फौज खड़ी की जो हर स्थिति से लड़ने को तत्पर थी। अयोध्या के हर गली कूंचे ने चंपत राय को पहचान लिया और हर गली कूचे को उन्होंने भी पहचान लिया। उन्हें अवध के इतिहास, वर्तमान, भूगोल की ऐसी जानकारी हो गई कि उनके साथी उन्हें ‘अयोध्या की इनसाइक्लोपीडिया’ उपनाम से बुलाने लगे।
लाखों पेज के दस्तावेज इकट्ठा किए
बाबरी ध्वंस से पूर्व से ही चंपत राय ने राम मंदिर पर ‘डॉक्यूमेंटल एविडेंस’ जुटाने प्रारंभ किए। लाखों पेज के दस्तावेज पढ़े और सहेजे, एक-एक ग्रंथ पढ़ा और संभाला। उनका घर इन कागजातों से भर गया, साथ ही हर जानकारी उंन्हें कंठस्थ भी हो गई। के. परासरण जी और अन्य साथी वकील जब जन्मभूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे तो उन्हें अकाट्य सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।
और रचा गया इतिहास
6 दिसंबर 1992 को मंच से बड़े बड़े दिग्गज नेता कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे। तमाम निर्देश दिए जा रहे थे। बाबरी ढांचे को नुकसान न पहुंचाने की कसमें दी जा रही थीं, उस समय चंपत राय जी मंच से कुछ दूर स्थानीय युवाओं के साथ थे। एक पत्रकार ने चंपत राय से पूछा “अब क्या होगा?” उन्होंने हंस कर उत्तर दिया ‘ये राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पीटी करने यहां नहीं आई है। ये जो करने आई है, करके ही जाएगी।’ इतना कहकर उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया और बाबरी ढांचे की ओर बढ़ गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का नारा गूंजा और… इतिहास रचा गया।

रामलला के श्रीचरणों में संपूर्ण जीवन अर्पित किया
चंपत राय को यूं ही राम मंदिर ट्रस्ट का सचिव नहीं बना दिया गया है। उन्होंने रामलला के श्रीचरणों में संपूर्ण जीवन अर्पित किया है। प्यार से उन्हें लोग ‘रामलला का पटवारी’ भी कहते हैं। यह व्यक्ति सनातन का योद्धा है। बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याण सिंह के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुल कर उस घटना का दायित्व अपने ऊपर लिया। चंपत राय कह चुके हैं कि जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे, युवा पीढ़ी को मथुरा की जिम्मेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे’।
तपस्वी और विद्वान हैं चंपत राय
चंपत राय जी धर्म की छोटी से छोटी चीजों का ध्यान रखने वाले तपस्वी और विद्वान हैं। एक बार वे किसी काम से काशी में किन्हीं के यहां रुके, तब रात्रि में देखा तो पाया कि बेड का डायरेक्शन कुछ ऐसा था कि सोते हुए पैर दक्षिण की तरफ हो रहे थे, उन्हें एक रात को भी यह स्वीकार नहीं था, रात में ही उन्होंने बेड का डायरेक्शन ठीक करवाया, तभी सोए। जो धोती कुर्ता पहनकर भारत का गांव-गांव नापने वाला व्यक्ति अपने निजी जीवन में हिंदू जीवनचर्या की छोटी-छोटी बातों का हठ के साथ पालन करता है, वह श्रीराम मंदिर के संदर्भ में किस हद तक विचारशील और जुझारू होगा, समझा जा सकता है।