मदरसों में नहीं मिल रही है शिक्षा, बंद हो फंडिंग; NCPCR ने की सरकार से सिफारिश

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूजः राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सभी राज्यों को लेटर लिखकर कहा है कि मदरसों को दिया जाने वाला फंड बंद कर देना चाहिए। ये राइट-टु-एजुकेशन (RTE) नियमों का पालन नहीं करते हैं।
आयोग ने ‘आस्था के संरक्षक या अधिकारों के विरोधी: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे’ नाम से एक रिपोर्ट तैयार करने के बाद ये सुझाव दिया है। NCPCR ने कहा- मदरसों में पूरा फोकस धार्मिक शिक्षा पर रहता है, जिससे बच्चों को जरूरी शिक्षा नहीं मिल पाती और वे बाकी बच्चों से पिछड़ जाते हैं।
बेहतर शिक्षा के लिए स्कूल में दाखिल कराया जाय
अपने पत्र में NCPCR ने ये भी कहा है कि मदरसों से निकलकर मुस्लिम बच्चों को बेहतर तालीम के लिए सरकारी या निजी स्कूल में दाखिल कराया जाय। NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने यह पत्र लिखा है। जिसकी कॉपी वायरल हो रही है। कानूनगो ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह पत्र लिखा है। उन्होंने सभी सक्षम अधिकारियों से मदरसों को मिलने वाली फंडिंग रोकने को कहा है।
मदरसा बोर्ड को भी बंद करने की सिफारिश
एनसीपीसीआर निदेशक प्रियांक कानूनगो ने इसी के साथ मदरसा बोर्ड को भंग करने की मांग की है। आयोग ने इस मुद्दे पर 9 साल तक अध्ययन करने के बाद अपनी अंतिम रिपोर्ट जारी की है। उस रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे रिसर्च के बाद ये पता चला है कि करीब सवा करोड़ से ज्यादा बच्चे अपने बुनियादी शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं. उन्हें इस तरह से टॉर्चर किया जा रहा है कि वे कुछ लोगों के गलत इरादों के मुताबिक़ काम करेंगे।
बाल आयोग की 3 सिफारिश
- मदरसों और मदरसा बोर्डों को राज्य की तरफ से दिए जाने वाले फंड को रोक दिया जाए।
- मदरसों से गैर-मुस्लिम बच्चों को हटाया जाए। संविधान के आर्टिकल 28 के मुताबिक, माता-पिता की सहमति के बिना किसी बच्चे को धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।
- एक संस्थान के अंदर धार्मिक और औपचारिक शिक्षा एक साथ नहीं दी जा सकती है।
UP मदरसा एक्ट पर विवाद रहा, SC रोक लगा चुका
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल 2024 को ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही केंद्र और यूपी सरकार से जवाब भी मांगा था। कोर्ट का कहना था कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख छात्रों पर असर पड़ेगा। छात्रों को दूसरे स्कूल में ट्रांसफर करने का निर्देश देना ठीक नहीं है।
दरअसल 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मदरसा बोर्ड की याचिका पर सुनवाई की।
बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट प्रथमदृष्टया सही नहीं है। ये कहना गलत होगा कि यह मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है। यहां तक कि यूपी सरकार ने भी हाईकोर्ट में मदरसा एक्ट का बचाव किया था। इसके जवाब में यूपी सरकार की तरफ से ASG केएम नटराज ने कहा- ”हमने हाईकोर्ट में जरूर इस एक्ट का बचाव किया था, मगर कोर्ट ने इस एक्ट को असंवैधानिक करार दे दिया था। इसके बाद हमने भी कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर लिया है।”
एक्ट के खिलाफ 2012 में पहली बार दाखिल हुई थी याचिका
मदरसा एक्ट के खिलाफ सबसे पहले 2012 में दारुल उलूम वासिया मदरसा के मैनेजर सिराजुल हक ने याचिका दाखिल की थी। फिर 2014 में माइनॉरिटी वेलफेयर लखनऊ के सेक्रेटरी अब्दुल अजीज, 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर की थी।
इसके बाद 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएं दाखिल की थीं। 2023 में अंशुमान सिंह राठौर ने याचिका दायर की। सभी मामलों को नेचर एक था। इसलिए हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं को मर्ज कर दिया।
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