Delhi News: एम्स के डाक्टरों ने 7 वर्षीय बच्चे को किया देश का पहला किडनी आटोट्रांसप्लांट, दुर्लभ बीमारी से पीड़ित था बच्चा
नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। Delhi News: किडनी की धमनी में खराबी के कारण हाइपरटेंशन (रेनोवैस्कुलर हाइपरटेंशन) की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित एक सात वर्षीय बच्चे की प्रभावित एक किडनी को निकालकर एम्स के डाक्टरों ने उसे वापस दूसरी जगह पेट के निचले हिस्से में प्रत्यारोपित कर दिया। 29 जून को आठ घंटे की सर्जरी में डाक्टरों ने कामयाबी हासिल की। एम्स के डाक्टरों का दावा है कि यह देश में पहली और दुनिया में तीसरी किडनी आटोट्रांसप्लांट सर्जरी है। पश्चिम बंगाल के रहने वाले उस बच्चे को सर्जरी के सात दिन बाद एम्स से छुट्टी दे दी गई और अब वह स्वस्थ है।
धमनी गुब्बारे की तरह फूल गई
एम्स के जनरल सर्जरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डा. मंजूनाथ मारुति पोल ने बताया कि बच्चे की दायीं किडनी की धमनी में एन्यूरिज्म था। जिसके कारण धमनी गुब्बारे की तरह फूल गई थी, जो कभी भी फट सकती थी। यह बच्चे के लिए घातक हो सकता था। इसके अलावा किडनी खराब हो सकती थी और इस तरह का एन्यूरिज्म शरीर के दूसरे हिस्सों में भी हो सकता था। इस वजह से ब्रेन स्ट्रोक भी हो सकता था। कुछ बच्चों में यह बीमारी जन्मजात होती है। कुछ बच्चों में उम्र बढ़ने के साथ पांच वर्ष, सात वर्ष या 13 वर्ष की उम्र में भी बीमारी सामने आती है। इस बीमारी के कारण शरीर में रक्त संचार प्रभावित हो रहा था। इस वजह से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इस बच्चे का ब्लड प्रेशर भी 150/110 रहा था। इस वजह से उसे ब्लड प्रेशर की दवा भी लेनी पड़ रही थी।
किडनी निकालने की सलाह
पिछले तीन वर्ष के दौरान यूरिन में दो बार खून भी आया था। तब माता-पिता ने दिल्ली के दो निजी अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क किया। दोनों अस्पतालों के डाक्टरों ने एक किडनी निकालने की सलाह दी। बाद में माता-पिता बच्चे को लेकर एम्स के सीटीवीएस (कार्डियो थोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी) विभाग में पहुंचे। इसके बाद सीटीवीएस व जनरल सर्जरी विभाग के डाक्टरों ने मिलकर इलाज के विकल्पों पर विचार किया।
इलाज के दो विकल्प
ऐसे में इलाज के दो विकल्प थे। पहला स्टेंट और दूसरी सर्जरी। स्टेंट डालने में समस्या यह थी कि बच्चों के किडनी की नसें बहुत सूक्ष्म होती हैं। इस वजह से स्टेंट डालना आसान नहीं था। जांच करने पर पता चला कि स्टेंट डालने पर प्रभावित किडनी 30 प्रतिशत हीं सुरक्षित बच पाने की संभावना थी। इसलिए दूसरे विकल्प सर्जरी को चुना गया लेकिन यह बेहद जटिल सर्जरी थी। क्योंकि बच्चे का वजन करीब 21 किलोग्राम है। इस वजह से सर्जरी के दौरान 350 मिली लीटर से अधिक रक्त स्राव बच्चे की सेहत के लिए ठीक नहीं होता।
सतर्कता के साथ किडनी को अलग किया
समस्या यह थी कि धमनी में एन्यूरिज्म किडनी के बिल्कुल नजदीक थी और एक बड़े नस (वेना कावा) के पीछे था। इसलिए किडनी को नसों से बेहद सुरक्षित तरीके से अलग करने की चुनौती थी। सर्जरी में छोटी चूक से बड़ा नस कटने पर 20 से 30 सेकेंड में एक से डेढ़ लीटर रक्त स्राव हो सकता था। इसलिए बेहद सतर्कता के साथ किडनी को अलग कर आपरेशन थियेटर के वर्क स्टेशन पर रखा गया और खराब नस को काट कर हटाया गया। इसके बाद नया नस बनाकर बच्चे की दायीं किडनी को वापस पेट के निचले हिस्से में दायीं तरफ ही प्रत्यारोपित किया गया। सीटीवीएस व जनरल सर्जरी के डाक्टरों ने मिलकर यह सर्जरी की।
एम्स में तीसरा प्रत्यारोपण हुआ
इस तरह की पहली किडनी आटोट्रांसप्लांट वर्ष 2014 में दक्षिण कोरिया में एक 13 वर्ष के बच्चे की दायीं किडनी हुई थी। तब दो दिन बाद ही किडनी निकालनी पड़ गई थी। इस वजह से सर्जरी असफल हो गई थी। दूसरी सर्जरी वर्ष 2021 में लंदन चार वर्षीय बच्ची की हुई थी। उसके दायें किडनी का आटोट्रांसप्लांट हुआ था। इसके बाद अब एम्स में तीसरा प्रत्यारोपण हुआ है। डा. मंजूनाथ ने बताया कि इस सर्जरी से बच्चे की बीमारी भी दूर हो गई और बच्चे की दोनों किडनी सुरक्षित बच गईं। इसके अलावा बीपी ठीक हो जाएगा। इसलिए उसे आगे चलकर ब्लड प्रेशर की दवा लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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