Delhi Raj Niwas: दिल्ली राजनिवास ने राज्य सरकार सरकार पर लगाया अदालतों को गुमराह करने का आरोप, जानें क्या है मामला

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। राजनिवास (Delhi Raj Niwas) ने दिल्ली सरकार (Delhi Government) पर अदालतों को गुमराह करने और झूठी दलीलों एवं हलफनामे के जरिये उपराज्यपाल कार्यालय (LG Office) को बदनाम करने का बड़ा आरोप लगाया है। एलजी वीके सक्सेना (Delhi Lieutenant governor VK Saxena) के प्रधान सचिव आशीष कुंद्रा ने केन्द्रीय गृह सचिव अजय भल्ला (Ajay Bhalla) को लिखे गए छह पेज के पत्र में ऐसे कई मामलों का जिक्र किया गया है जिनमें दिल्ली सरकार के वकीलों द्वारा कोर्ट को गुमराह किया गया। मीडिया में भी झूठी एवं गलत जानकारियां दी गईं। आलम यह रहा कि अदालतों में विभिन्न मामलों में दिल्ली सरकार बनाम राजनिवास एक प्रचलित मानदंड बन गया। इस पत्र का उद्देश्य गृह मंत्रालय को दिल्ली सरकार द्वारा विभिन्न अदालतों में अनावश्यक मुकदमेबाजी को लेकर पूरे घटनाक्रम से अवगत कराना है।

सुप्रीम कोर्ट व दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहे कई मामलों का जिक्र

कुंद्रा ने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहे कई मामलों का जिक्र किया और कहा कि इससे न केवल न्यायपालिका पर अत्यधिक बोझ पड़ा, बल्कि ”अपमानजनक” मुकदमेबाजी पर करोड़ों रुपये खर्च हुए और सरकारी अधिकारियों का समय बर्बाद हुआ।” पत्र में कहा गया है, अदालतों को गुमराह करने के अलावा, एक भ्रमित करने वाली विकृत कहानी बनाने का प्रयास किया गया, जो जनता के मन में उपराज्यपाल की छवि को खराब करता है।

एलजी के बारे में बनाई गई नकारात्मक छवि

राजनिवास ने कहा कि जल मंत्री आतिशी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर उपराज्यपाल को वित्त विभाग से जल बोर्ड को फंड जारी करने का निर्देश देने की मांग की। अधिकारी ने कहा कि यह मामला एक “स्मोकस्क्रीन” की तरह था, जिसका उद्देश्य एलजी के बारे में नकारात्मक छवि बनाना था, क्योंकि वित्त और जल दोनों विषयों को स्थानांतरित कर दिया गया था। अधिकारी ने कहा, ”उपराज्यपाल की उनके द्वारा लिए गए निर्णयों में कोई भूमिका नहीं है और कोई भी फाइल उनके माध्यम से नहीं भेजी जाती है।” उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की पहली ही तारीख पर एलजी को नोटिस जारी नहीं करने का फैसला किया।

गलत और भ्रामक बयान

दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा दायर एक याचिका का जिक्र करते हुए कि उसके फंड को एलजी ने रोक दिया था, अधिकारी ने कहा कि याचिकाकर्ता को 10 सुनवाई के बाद इसे वापस लेना पड़ा जब एक विशेष वकील ने दावों का जोरदार विरोध किया। अधिकारी ने पत्र में उल्लेख किया है कि दिल्ली सरकार के स्थायी वकीलों ने अब के कार्यान्वयन के लिए राजधानी में अनुरूप और गैर-अनुरूप वार्डों की पहचान और वर्गीकरण से संबंधित एक मामले में एलजी और उनके कार्यालय को बदनाम करते हुए “स्पष्ट रूप से गलत और भ्रामक बयान” दिए हैं। इसी तरह उत्पाद शुल्क नीति भी रद कर दी गई।

‘फ़रिश्ते’ योजना को रोकने के लिए एलजी को जिम्मेदार ठहराया गया

कुंद्रा ने दावा किया कि अदालत द्वारा नियुक्त समिति ने अगस्त 2022 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी और इसकी फ़ाइल राजनिवास को जनवरी 2024 में प्राप्त हुई। जबकि सरकारी वकीलों ने यह दावा करके हाईकोर्ट को गुमराह किया कि फ़ाइल इतने समय तक एलजी के पास लंबित थी। कुंद्रा ने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें ‘फ़रिश्ते’ योजना को रोकने के लिए भी एलजी को जिम्मेदार ठहराया गया और इस मुद्दे को मीडिया में एक कथित “कानूनी झगड़े” के रूप में “खेला” गया। अधिकारी ने कहा, ”…यह फिर से मुद्दे को उलझाने और ‘हस्तांतरित विषय’ की जिम्मेदारी एलजी पर डालकर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का एक प्रयास था। जबकि न तो यह स्कीम और न ही भुगतान रोकने में एलजी की कोई भूमिका रही है।

एलजी के प्रधान सचिव ने कहा कि सक्सेना ने दिल्ली सरकार के एनसीटी अधिनियम, 1993 के ट्रांजेक्शन आफ बिजनेस रूल्स के संबंधित खंड को लागू किया। उन्होंने हाई कोर्ट और जिला अदालतों में न्यायिक बुनियादी ढांचे के उन्नयन से संबंधित प्रस्तावों से संबंधित फाइलें मांगीं। दिल्ली के मंत्री ने भ्ज्ञी प्रस्तावों को मंजूरी दे दी। उन्होंने कहा कि परियोजनाओं को 2019 में हाई कोर्ट द्वारा पहले ही मंजूरी दे दी गई थी और सरकार के पास लंबित थीं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रस्तावों को इतने लंबे समय तक लंबित रखने के लिए दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी।

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