इस देश का आत्मा धर्म व अध्यात्म में और श्रीराम इसकी धुरी : डा.कृष्ण गोपाल

नोएडा, बीएनएम न्यूज: जब हम भारत की बात करते हैं तो आंखों के सामने उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक का चित्र उभरता है। इसमें अलग-अलग भाषा बोलने वाले, पूजा पद्धति को मानने वाले, नाना प्रकार के जीव-जंतु, हजारों वर्षों का इतिहास शामिल है। यह इस देश का शरीर है। इस शरीर का आत्मा यहां के धर्म और अध्यात्म में बसती है। भगवान श्रीराम हमारे धर्म की धुरी हैं। राष्ट्र की इस अंतर्निहित आत्मा को खत्म करने के बहुत प्रयत्न हुए पर हिंदू समाज ने हर बार शांति के साथ संघर्ष किया। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा.कृष्ण गोपाल ने ‘श्रीराम मंदिर से राष्ट्र का पुनरुद्धार’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में कही।

श्रीराम मंदिर इससे पहले भी पांच बार टूटा और बना

उन्होंने कहा कि यह भारत के साथ ही है। अन्य देश सत्ता केंद्रित हैं। यही कारण है कि मेसोपोटामिया, ग्रीस व रोम की सभ्यताएं समाप्त हो गईं। बाहरी आक्रांताओं ने बहुत प्रयास किए। सैकड़ों मंदिर तोड़े। उन्हें लगा कि इसके बाद यह खत्म हो जाएंगे, पर इस देश के अध्यात्म ने इसे बचाया हुआ है। श्रीराम मंदिर इससे पहले भी पांच बार टूटा और बना। यह छठी बार बना है। आगे भगवान श्रीराम के जीवन की विभिन्न घटनाओं का उल्लेख करते हुए वर्तमान में उसके अनुसरण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जब केवट ने भगवान श्रीराम को नदी पार कराई तो उन्होंने माता सीता की तरफ देखा और उन्होंने अपनी रत्नजड़ित अंगूठी दे दी। वह अलग बात है कि केवट ने ली नहीं। यह बताता है कि जब महिलाएं परिवार के सदस्यों का भाव समझने लगती हैं, तब घर चलता है। जब विभीषण भगवान श्रीराम के साथ आए तो सबने कहा कि यह भेद लेने तो नहीं आया। श्रीराम ने कहा कि शरण देने में लाभ-हानि नहीं देखी जाती। आज तक भारत इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है। हमने बहुत नुकसान उठाकर भी दुनिया को शरण दी है। भारतीय जनमानस के कण-कण में श्रीराम है। श्रीरामचरित मानस इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं। पश्चिम में जो स्थान बाइबिल को नहीं मिला, हिंदी पट्टी में वह स्थान श्रीरामचरित मानस को मिला है।

राममंदिर सौम्य संघर्ष की गाथा : मालिनी अवस्थी

लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने श्रीरामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा समारोह व मंदिर निर्माण यात्रा से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि श्रीराम मंदिर सौम्य संघर्ष की गाथा है। लंबे संघर्ष व विलंब ने हमें श्रीराम को समझने का अवसर दिया। आज हम एक नए भारत में है। भारतीय चेतना व स्वाभिमान बदला हुआ है। प्राण प्रतिष्ठा पर जो माहौल बना उसने अहसास कराया कि जब त्रेता युग में भगवान श्रीराम जन्मे होंगे तो कैसा भाव रहा होगा। भगवान श्रीराम से जुड़े सोहर सुना कर उन्होंने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

 

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