भारत में किसानों की आय दुगनी केवल जी एम फसलों के माध्यम से हो सकती है: गुरनाम सहारण

नरेन्द्र सहारण कैथल: सरकार किसानों की आय दुगनी करने के दावे मुंगेरी लाल के सपने जैसे साबित हो रहे है। वही एक तरफ किसान आंदोलन देश में जोर पकड़ रहा है किसान नेताओं की माने तो सरकार अपने वादों से पीछे हटती नजर आ रही है लेकिन सरकार के सामने किसान अपनी मांगों को लेकर अडिग है। देश में किसानों की आय दुगनी के के विषय पर किसान नेता गुरनाम सहारण ने कहा कि देश ने अभी तक जीएम खाद्य फसल की व्यावसायिक खेती को मंजूरी नहीं दी है ।

क्या है जीएम तकनीक?

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इसके लिये टिश्यू कल्चर, म्युटेशन यानी उत्परिवर्तन और नए सूक्ष्मजीवों की मदद से पौधों में नए जीनों का प्रवेश कराया जाता है। इस तरह की एक बहुत ही समान्य प्रक्रिया में पौधे को एग्रोबेक्टेरियम ट्यूमेफेशियंस (Agrobacterium Tumefaciens) नामक सूक्ष्मजीव से सक्रंमित कराया जाता है। इस सूक्ष्मजीव को टी-डीएनए (Transfer-DNA) नामक एक विशिष्ट जीन से सक्रंमित करके पौधे में डीएनए का प्रवेश कराया जाता है। इस एग्रोबेक्टेरियम ट्यूमेफेशियंस के टी-डीएनए को वांछित जीन से सावधानीपूर्वक प्रतिस्थापित किया जाता है, जो कीट प्रतिरोधक होता है। इस प्रकार पौधे के जीनोम में बदलाव लाकर मनचाहे गुणों की जीनांतरित फसल प्राप्त की जाती है।

क्या है जीएम फसल?

जेनेटिक इजीनियरिंग के ज़रिये किसी भी जीव या पौधे के जीन को अन्य पौधों में डालकर एक नई फसल प्रजाति विकसित की जाती है। जीएम फसल उन फसलों को कहा जाता है जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया जाता है। 1982 में तंबाकू के पौधे में इसका पहला प्रयोग किया गया था, जबकि फ्रांस और अमेरिका में 1986 में पहली बार इसका फील्ड परीक्षण किया गया था। जीएम फसलों के जीन में बायो-टेक्नोलॉजी और बायो-इंजीनियरिंग के द्वारा परिवर्तन किया जाता है। इस प्रक्रिया में पौधे में नए जीन यानी डीएनए को डालकर उसमें ऐसे मनचाहे गुणों का समावेश किया जाता है जो प्राकृतिक रूप से उस पौधे में नहीं होते। इस तकनीक के ज़रिये तैयार किये गए पौधे कीटों, सूखे जैसी पर्यावरण परिस्थिति और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं। जीनांतरित फसलों से उत्पादन क्षमता और पोषक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

जीएम बीजों के लाभ

जीएम बीज यानी कृत्रिम तरीके से बनाया गया फसल बीज। जीएम फसलों के समर्थक मानते हैं कि यह बीज साधारण बीज से कहीं अधिक उत्पादकता प्रदान करता है। इससे कृषि क्षेत्र की कई समस्याएँ दूर हो जाएंगी और फसल उत्पादन का स्तर सुधरेगा। फसलो का उत्पादन दुगुना हो जाऐगा। जीएम फसलें सूखा-रोधी और बाढ़-रोधी होने के साथ कीट प्रतिरोधी भी होती हैं। जीएम फसलों की यह विशेषता होती है कि अधिक उर्वर होने के साथ ही इनमें अधिक कीटनाशकों की जरूरत नहीं होती।

जीएम बीजों के नुकसान को लेकर भारत सरकार का तर्क

भारत में इन फसलों का विरोध करने के कई कारण हैं।  जीएम फसलों की लागत अधिक पड़ती है, क्योंकि इसके लिये हर बार नया बीज खरीदना पड़ता है। बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार के कारण किसानों को महँगे बीज और कीटनाशक उनसे खरीदने पड़ते हैं। इस समय हाइब्रिड बीजों पर ज़ोर दिया जा रहा है और अधिकांश हाइब्रिड बीज, चाहे जीएम हों अथवा नहीं, या तो दोबारा इस्तेमाल लायक नहीं होते; और अगर होते भी हैं तो पहली बार के बाद उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं होता। इसे स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा जैव विविधता के लिये हानिकारक माना जाता है। भारत में इस प्रौद्योगिकी का विरोध करने वालों का कहना है कि हमारे देश में कृषि में इतनी जैव-विविधता है, जो जीएम प्रौद्योगिकी को अपनाने से खत्म हो जाएगी। इसके अलावा इसका विरोध करने वाले कहते हैं कि जीएम खाद्य का मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। एक तो उसे खाने से, दूसरा उन पशुओं के दूध और माँस के ज़रिये जो जीएम चारे पर पले हों। भारत में केवल बीटी कॉटन की फसल लेने की अनुमति है। देश के कपास उत्पादक किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा, इसको लेकर संसद की कृषि मामलों की स्थायी समिति ने पिछले वर्ष अपनी ‘कल्टीवेशन ऑफ जेनेटिक मोडिफाइड फूड क्रॉप-संभावना और प्रभाव’नामक 37वीं रिपोर्ट में बताया था कि बीटी कपास की व्यावसायिक खेती करने से कपास उत्पादक किसानों की आर्थिक हालत सुधरने के बजाय बिगड़ गई। बीटी कपास में कीटनाशकों का अधिक प्रयोग करना पड़ा।

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