Haryana News: छेड़खानी और अपहरण के प्रयास के आरोपित व राज्यसभा सदस्य सुभाष बराला के बेटे को सहायक महाधिवक्ता बनाने पर विवाद

बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुभाष बराला के बेटे विकास बराला।
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़: Haryana News: हरियाणा में हाल ही में हुई सहायक महाधिवक्ता, उप महाधिवक्ता, वरिष्ठ उप महाधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्तियों ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीव्र प्रतिक्रिया और बहस को जन्म दे दिया है। इनमें से एक नाम, विकास बराला का जो पहले से ही अपने खिलाफ गंभीर आरोपों के कारण सुर्खियों में हैं।
विकास बराला की नियुक्ति: एक विवादास्पद फैसला
हरियाणा सरकार ने हाल ही में 97 पदों पर नियुक्तियां की हैं, जिनमें से एक हैं विकास बराला। विकास बराला, जो राज्यसभा सदस्य और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला के बेटे हैं को सहायक महाधिवक्ता के पद पर नियुक्त किया गया है। इस फैसले ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है, खासकर उन आरोपों को लेकर जिनमें विकास पर 2017 में एक महिला आइएएस अधिकारी की बेटी से छेड़छाड़, पीछा करने और अपहरण की कोशिश के गंभीर आरोप लगे हैं।
आरोप और मुकदमा
विकास बराला पर आरोप हैं कि उन्होंने 5 अगस्त 2017 की रात को चंडीगढ़ की सड़कों पर एक आइएएस अधिकारी की बेटी का पीछा किया और उसकी जबरदस्ती गाड़ी में घुसने का प्रयास किया। इस संबंध में मुकदमा दर्ज हुआ और विकास को गिरफ्तार किया गया था। आरोप तय होने के बाद अक्टूबर 2017 में उन्हें जमानत मिली और तब से वे मुकदमे का सामना कर रहे हैं। आगामी 2 अगस्त को उनकी सुनवाई होनी है, जिसमें उनके बचाव पक्ष की गवाही दर्ज की जाएगी। यह मामला न केवल कानून और न्याय व्यवस्था का विषय है बल्कि इससे जुड़ी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों का भी प्रश्न है। आरोपित पर लगे इन गंभीर आरोपों के बावजूद, उन्हें सरकारी पद पर नियुक्ति देना राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
कांग्रेस, इनेलो और विपक्ष की आलोचना
विपक्षी दलों ने इस नियुक्ति को लेकर सरकार पर तीखे आरोप लगाए हैं। कांग्रेस महासचिव और सांसद रणदीप सुरजेवाला ने इस फैसले को कानून का उल्लंघन बताते हुए कहा कि “कानून से खेलने वाला अब सरकार की तरफ से वकालत करेगा।” सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि, “सरकार ने छेड़खानी और अपहरण के आरोपित को सहायक अधिवक्ता बना दिया है, जो युवती से अश्लील हरकत करने का आरोपित है। यह कानून का मजाक उड़ाने जैसा है।”
इनेलो विधायक आदित्य देवीलाल चौटाला ने भी इस नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा नेताओं के 35 रिश्तेदारों को विधि विभाग में नियुक्ति दी गई है। उन्होंने पूछा कि क्या योग्यताओं और मानकों का पालन किया गया है। चौटाला ने आरोप लगाया कि इन नियुक्तियों में बाहरी प्रदेशों के लोगों को प्राथमिकता दी गई है और पारदर्शिता का अभाव है। उन्होंने मांग की कि इन नियुक्तियों को रद्द कर योग्य और अनुभव वाले उम्मीदवारों की पारदर्शी प्रक्रिया से नियुक्ति की जाए।
भाजपा नेतृत्व और सरकार की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों के आरोपों के बाद, भाजपा और सरकार की ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है। हालांकि, यह चर्चा तेज हो गई है कि नियुक्तियों में किस तरह की प्रक्रिया अपनाई गई और किन मानदंडों का पालन किया गया। सरकार का तर्क हो सकता है कि इन पदों पर नियुक्तियां योग्यता और अनुभव के आधार पर हुई हैं, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह सब राजनीतिक द्वेष और चहेतों को लाभ पहुंचाने की कोशिश है।
पारदर्शिता और नियमों का सवाल
वर्तमान विवाद का मुख्य बिंदु नियुक्तियों की प्रक्रिया और पारदर्शिता का है। रिटायर कर्मचारियों, राजनीतिक रिश्तेदारों और बाहरी प्रदेशों के लोगों को नियुक्ति देने का आरोप है कि इससे नियुक्तियों की योग्यता और मेरिट का सम्मान नहीं हो रहा है। यह स्थिति न केवल सरकारी व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करती है बल्कि यह भी दर्शाती है कि नियमों का कितना उल्लंघन किया गया है।
आदित्य देवीलाल चौटाला ने मांग की है कि इन नियुक्तियों की प्रक्रिया का विस्तृत विवरण सार्वजनिक किया जाए, ताकि जनता और नीति निर्धारक यह जान सकें कि नियुक्तियों में योग्यता, अनुभव और पारदर्शिता का पालन हुआ या नहीं। यदि इन मानदंडों का उल्लंघन हुआ है, तो इन नियुक्तियों को रद्द कर देना चाहिए और पारदर्शी प्रक्रिया से योग्य उम्मीदवारों को मौका देना चाहिए।
कानून, नैतिकता और राजनीति का संघर्ष
विकास बराला का मामला केवल एक नियुक्ति का विवाद नहीं है बल्कि यह कानून, नैतिकता और राजनीति के बीच चल रहे संघर्ष का प्रतीक है। एक ओर, कानून का सम्मान और नैतिक जिम्मेदारी जरूरी है, तो दूसरी ओर राजनीतिक हित और चहेतों को संरक्षण देना भी सत्ता की मजबूरी बन जाती है।
यह मामला इस बात को भी रेखांकित करता है कि राजनीतिक परिवारों और प्रभावशाली व्यक्तियों का न्यायपालिका और सरकारी पदों में किस तरह प्रभाव पड़ता है। सवाल यह है कि क्या नियम और कानून सभी के लिए समान रूप से लागू होते हैं या फिर प्रभावशाली परिवार और नेताओं के लिए विशेष छूट दी जाती है?
नियुक्ति को लेकर विवाद
हरियाणा में विकास बराला की नियुक्ति को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, वह देश के लोकतांत्रिक तंत्र, न्याय व्यवस्था और पारदर्शिता के सिद्धांतों के लिए एक चुनौती है। इस स्थिति में आवश्यक है कि सरकार कार्यवाही पारदर्शी, योग्यता पर आधारित और नैतिक मानदंडों के अनुरूप करे। साथ ही, विपक्ष और जनता को भी चाहिए कि वे इन कदमों पर निगरानी रखें और पारदर्शिता सुनिश्चित करें। सामाजिक न्याय, नैतिकता और कानून का सम्मान हर लोकतंत्र की बुनियादी नींव हैं। केवल तभी हम एक मजबूत, पारदर्शी और जिम्मेदार सरकार का निर्माण कर सकते हैं, जो सभी नागरिकों के हित में कार्य करे।
अंतिम शब्द
यह विवाद एक चेतावनी है कि नैतिकता और कानून का उल्लंघन करने वालों को जवाबदेह बनाना आवश्यक है। सरकार और राजनीति में पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना, जनता का भरोसा कमजोर होता जाएगा। हमें चाहिए कि हम ऐसी घटनाओं से सीख लें और अपने लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए संकल्पित हों।