Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा में भाजपा के विजय रथ को थामने की कोशिश में कांग्रेस, जानें भगवा पार्टी सामने क्या हैं चुनौतियां

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए आतुर भाजपा के सामने इस बार चुनौतियां कम नहीं हैं। भाजपा को जहां सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, वहीं 10 साल से सत्ता से दूर चल रही कांग्रेस उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रही है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन से पार्टी के रणनीतिकारों में निराशा है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मनोहर लाल के स्थान पर ओबीसी वर्ग के नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता विरोधी लहर को कम करने की कोशिश की थी, लेकिन भाजपा जिस तरह आधी सीटों पर खिसक गई, उससे विधानसभा चुनाव में भाजपा की राह बिल्कुल भी आसान नहीं है। कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा अगर भाजपा उठा ले जाए तो यह उसकी बड़ी रणनीतिक कामयाबी हो सकती है।

कांग्रेस से मिलेगी कड़ी चुनौती

 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। इसके विपरीत साल 2024 में मई में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा 10 सीटों में से मात्र पांच लोकसभा सीटें जीत पाई। पांच लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने न केवल जीत हासिल की, बल्कि अपने मत प्रतिशत में भी काफी बढ़ोतरी दर्ज कराई है। स्पष्ट है कि भाजपा को एक अक्टूबर को राज्य में हो रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिलने वाली है।

लोकसभा चुनाव में हासिल किए ज्यादा वोट प्रतिशत

 

हरियाणा में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 46.11 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 43.67 रहा था। कांग्रेस ने राज्य की नौ लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि कुरुक्षेत्र सीट उसने अपने सहयोगी दल आम आदमी पार्टी को दी थी। हालांकि आम आदमी पार्टी कुरुक्षेत्र सीट जीत नहीं पाई, लेकिन उसने कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र की चार विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करते हुए पूरे राज्य में 3.94 प्रतिशत मत हासिल किए थे। कांग्रेस और आप के इन मतों को जोड़ दिया जाए तो यह 47.61 प्रतिशत बनता है, जो कि भाजपा के 46.11 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है।

भाजपा की राह इतनी आसान नहीं

 

लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 44 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई थी, जबकि पांच ही लोकसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस को 42 सीटों पर बढ़त मिली थी। आम आदमी पार्टी की चार विधानसभा सीटों को जोड़ लिया जाए तो आइएनडीआइए गठबंधन के नाते कांग्रेस 46 सीटों पर अपनी बढ़त का दावा कर रही है। इस स्थिति में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा की राह इतनी आसान नहीं है, जितना उसके नेता दावा कर रहे हैं। कांग्रेस हालांकि राज्य में पूरी तरह से गुटों में बंटी है और भाजपा को उसका फायदा मिलने की उम्मीद हो सकती है, लेकिन दो दिन पहले कांग्रेस की प्रदेश चुनाव समिति की नई दिल्ली में हुई बैठक में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ रणदीप सुरजेवाला, कुमारी सैलजा, कैप्टन अजय यादव और बीरेंद्र सिंह ने भागीदारी करते हुए यह संदेश देने की कोशिश की है कि भले ही उनके बीच मुख्यमंत्री पद की लड़ाई है, लेकिन सबसे पहले जीत के लिए वह एकजुट होंगे।

परेशानी का सबब बन रहे ये मुद्दे

भाजपा के लिए सबसे अधिक परेशानी का कारण सरकारी पोर्टल बन रहे हैं। राज्य की करीब डेढ़ सौ सरकारी योजनाओं का लाभ पोर्टल के माध्यम से मिल रहा है। पोर्टल पर सरकारी योजनाओं के आने से हालांकि भ्रष्टाचार व घपले कम हुए हैं, लेकिन आम लोगों की तकलीफ भी बढ़ी है। प्रॉपर्टी आइडी और परिवार पहचान पत्र की गलतियों को ठीक कराने में लोगों के पसीने छूट गए। नई पेंशन का लाभ लेने में भी सरकारी बाबुओं ने लोगों को खूब चक्कर कटवाए। मनोहर लाल के बाद सत्ता संभालने वाले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने इन खामियों को ठीक कराने के लिए पूरे राज्य में विशेष शिविर लगाए और लोगों ने उनका फायदा भी उठाया, लेकिन तब तक भाजपा के लिए काफी देर हो चुकी थी।

भाजपा को राज्य में बेरोजगारी, बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति, नये उद्योगों की स्थापना में कमी तथा किसानों की फसलों की एमएसपी पर खरीद की गारंटी के साथ महंगाई के मुद्दे पर भी लोगों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार पर वार भाजपा सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है, लेकिन कांग्रेस हरियाणा कौशल रोजगार निगम के माध्यम से दी जा रही कच्ची (अनुबंधित) नौकरियों के विरोध के माध्यम से लोगों का भरोसा जीतने की रणनीति में आगे निकलती दिखाई दे रही है।

 

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