Haryana News: हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रहा व्यक्ति 20 साल बाद बरी, हाई कोर्ट ने कही यह बात

नरेन्‍द्र सहारण, चंडीगढ़: Haryana News: हरियाणा के सोनीपत जिले के समचाना गांव का मामला जिसमें कृष्ण नामक व्यक्ति को लगभग 20 साल बाद हत्या के आरोप से बरी किया गया है, न्यायालय के समक्ष एक महत्वपूर्ण माइलस्टोन के रूप में उभरा है। यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली में उन जटिलताओं और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को उजागर करता है, जो समय-समय पर सामने आती हैं। इस केस ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के महत्व और उनके साथ सही न्याय की तलाश में उठने वाले पॉइंट्स को भी सामने रखा है।

मामले की शुरुआत

यह मामला वर्ष 2001 का है। 19 अगस्त को एक महिला बाला का शव सोनीपत के बख्तावरपुर गांव में एक पेड़ से लटका हुआ पाया गया था। शुरू में इसे आत्महत्या का मामला माना गया। लेकिन इस मामले में तब नया मोड़ आया जब चार दिन बाद बाला के भाई बिजेंद्र सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। बिजेंद्र ने आरोप लगाया कि कृष्ण और उसके परिवार के कुछ अन्य सदस्यों ने बाला की हत्या की थी, जिसके पीछे का कारण बाला और कृष्ण के बीच कथित अवैध संबंध थे।

गिरफ्तारी और प्राथमिक सुनवाई

 

बिजेंद्र की शिकायत के आधार पर मुरथल पुलिस स्टेशन में 23 अगस्त 2001 को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। इसी के तहत दिसंबर 2001 में कृष्ण को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने केवल कृष्ण को ही आरोपित बनाकर अदालत के समक्ष पेश किया, जबकि अन्य आरोपितों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह स्थिति उस समय के न्यायिक सिस्टम की एक खामी को उजागर करती है, जिसमें केवल एक व्यक्ति पर आरोप विशेष केंद्रित हो गया था।

अभियोजन पक्ष का मामला

 

अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को मजबूत करने के लिए एक कथित मौखिक स्वीकारोक्ति पर भरोसा किया। इस स्वीकारोक्ति में कहा गया था कि कृष्ण ने फतेह सिंह नामक व्यक्ति के सामने हत्या की बात कबूल की थी। यह स्वीकारोक्ति उसी दिन हुई थी, जब बाला का शव बरामद हुआ था। विशेष बात यह है कि फतेह सिंह को न्यायालय में कभी पेश नहीं किया गया, जिससे अभियोजन की कहानी में एक महत्वपूर्ण कमी आई।

निचली अदालत का निर्णय

 

19 अप्रैल 2005 को निचली अदालत ने कृष्ण को दोषी ठहराते हुए उसे उम्रकैद की सजा और 5,000 रुपये का जुर्माना देने का आदेश दिया। यह निर्णय उस समय के साक्ष्यों और गवाहों की प्रस्तुतियों पर आधारित था, लेकिन यह भी स्पष्ट था कि कई अन्य संभावित गवाहों की गैर-मौजूदगी ने अभियोजन के पक्ष को नुकसान पहुँचाया।

उच्च न्यायालय में अपील

कृष्ण ने इस निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए दावा किया कि उसे गलत फंसाया गया है और अभियोजन पक्ष की कहानी में कई कमजोरियां हैं। उनके बचाव पक्ष ने तर्क किया कि किसी भी निश्चित सबूत के बिना उन्हें सजा देना न्याय नहीं है। उच्च न्यायालय ने इस अपील की गहराई में जाकर पूरे मामले का हर पहलू देखा।

उच्च न्यायालय का निर्णय

 

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कृष्ण को दोषमुक्त करार देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे प्रमाणित करने में असफल रहा है। अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि सिद्धांतों की गलतियों के कारण यह पता लगाने में असमर्थता है कि हत्या वास्तव में कृष्ण द्वारा की गई थी। अदालत ने कहा कि पूरे मामले का आधार परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर था, और उन साक्ष्यों की मजबूती को चुनौती दी।

विश्लेषण और निष्कर्ष

 

इस मामले से यही सीख मिलती है कि न्याय प्रणाली में सभी साक्ष्यों का महत्व होता है। केवल मौखिक स्वीकारोक्तियों पर निर्भर रहकर किसी को दोषी ठहराना न्यायिक व्यवस्था के प्रति एक गंभीर चुनौती है। यह मामला विभिन्न सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और कानूनी तत्वों को उजागर करता है, जिसमें किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण होता है।

कृष्ण के मामले ने न्यायालय के प्रति लोगों के विश्वास को एक नई दिशा दी है। यह मामला यह भी दर्शाता है कि न्यायालय की भूमिका केवल सजाएं सुनाना नहीं होती, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी होता है कि कोई निर्दोष व्यक्ति दंडित न हो। 20 वर्षों की न्यायिक प्रक्रिया के बाद कृष्ण को जब बरी किया गया, तब यह केवल उसके लिए जीत नहीं थी बल्क‍ि न्याय के औचित्य और सच्चाई की भी जीत थी।

कुल मिलाकर हरियाणा के सोनीपत जिले के इस मामले ने न केवल एक व्यक्ति के न्याय की कहानी सुनाई है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि न्याय के प्रति हमारी जिम्मेदारी क्या होनी चाहिए। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने समाज में सही तरीके से न्याय दे रहे हैं या नहीं। यह एक ऐसा मामला है जो हमेशा हमारे दिलों और दिमागों में रहेगा।

 

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