Haryana News: हरियाणा के सरकारी कर्मचारियों को एकीकृत पेंशन योजना का लाभ, पुरानी पेंशन योजना नहीं होगी लागू

मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी। फाइल

नरेन्‍द्र सहारण, चंडीगढ़ : Haryana News:  हाल के वर्षों में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करने की मांग विभिन्न राज्यों में जोर पकड़ रही है, जबकि सरकारें नई, अधिक स्थायी पेंशन प्रणालियों को लागू करने की दिशा में प्रयासरत हैं। इसी संदर्भ में, हरियाणा सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए एकीकृत पेंशन योजना (यूनिफाइड पेंशन स्कीम – यूपीएस) को लागू करने का निर्णय लिया है, जो केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित एक मॉडल पर आधारित है। यह कदम राज्य के कर्मचारी संगठनों के कड़े प्रतिरोध के बावजूद उठाया गया है, जो लंबे समय से ओपीएस की बहाली के लिए आंदोलनरत हैं। यह लेख हरियाणा में लागू की जा रही एकीकृत पेंशन योजना की विशेषताओं, पुरानी पेंशन योजना के साथ इसके अंतरों, कर्मचारी संगठनों की प्रतिक्रियाओं और इस निर्णय के संभावित दूरगामी प्रभावों का एक व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करेगा।

पेंशन योजनाओं का विकास और विवाद

 

भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन का इतिहास काफी पुराना है। स्वतंत्रता के पश्चात सरकार ने अपने कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद एक सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विभिन्न पेंशन योजनाओं को लागू किया।

पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस)

ओपीएस, जिसे परिभाषित लाभ पेंशन प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है, सरकारी कर्मचारियों के बीच अपनी सुनिश्चितता और लाभों के कारण अत्यधिक लोकप्रिय थी। इस योजना के तहत कर्मचारियों को उनके अंतिम आहरित वेतन (आमतौर पर मूल वेतन और महंगाई भत्ता मिलाकर) के 50% के बराबर पेंशन की गारंटी दी जाती थी। इसके अतिरिक्त, पेंशन की राशि को समय-समय पर घोषित महंगाई भत्ते (डीए) के अनुसार संशोधित किया जाता था, जिससे सेवानिवृत्त कर्मचारियों की क्रय शक्ति मुद्रास्फीति के प्रभाव से काफी हद तक सुरक्षित रहती थी। ओपीएस की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसके लिए कर्मचारियों के वेतन से कोई अंशदान नहीं काटा जाता था; इसका पूरा वित्तीय भार सरकार वहन करती थी। इस योजना ने लाखों सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद एक निश्चित आय का आश्वासन दिया, जिससे वे वित्तीय चिंताओं से मुक्त होकर अपना जीवनयापन कर सकें। सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से, ओपीएस को एक आदर्श योजना माना जाता था।

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) का उदय

समय के साथ, विशेष रूप से 1990 के दशक के आर्थिक उदारीकरण के बाद, ओपीएस सरकार के वित्तीय संसाधनों पर एक बढ़ता हुआ बोझ साबित होने लगी। पेंशन देनदारियों की दीर्घकालिक स्थिरता और राजकोषीय घाटे पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएं व्यक्त की जाने लगीं। इसी पृष्ठभूमि में, केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 से ओपीएस को समाप्त कर दिया (सशस्त्र बलों को छोड़कर) और इसके स्थान पर एक नई अंशदान-आधारित पेंशन योजना, जिसे राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) कहा जाता है, को लागू किया। एनपीएस एक परिभाषित अंशदान योजना है, जिसमें कर्मचारी और सरकार दोनों एक निश्चित राशि का योगदान करते हैं, जिसे पेंशन फंड मैनेजरों द्वारा विभिन्न बाजार-आधारित योजनाओं में निवेश किया जाता है। सेवानिवृत्ति पर मिलने वाली पेंशन बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करती है, और इसमें किसी भी प्रकार की सुनिश्चित पेंशन की गारंटी नहीं होती है।

एनपीएस के प्रति कर्मचारी संगठनों का विरोध

 

एनपीएस की शुरुआत से ही सरकारी कर्मचारी संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध किया। उनकी मुख्य चिंताएं पेंशन की अनिश्चितता, बाजार जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता, और ओपीएस की तुलना में कम लाभ की संभावना थीं। कर्मचारियों का तर्क था कि जीवन भर सरकार की सेवा करने के बाद, उन्हें सेवानिवृत्ति पर एक सुनिश्चित और सम्मानजनक पेंशन मिलनी चाहिए, जो एनपीएस प्रदान करने में सक्षम नहीं दिख रही थी। इसके अलावा, एनपीएस के तहत कर्मचारी अंशदान की अनिवार्यता भी विरोध का एक कारण बनी। विभिन्न राज्यों में कर्मचारी संगठन लगातार ओपीएस की बहाली की मांग करते रहे हैं, और यह मुद्दा अक्सर चुनावी बहसों और राजनीतिक आंदोलनों का हिस्सा रहा है।

एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) का कार्यान्वयन

 

देशव्यापी बहसों और कर्मचारी संगठनों के दबाव के बीच, हरियाणा सरकार ने एक मध्य मार्ग अपनाने का प्रयास करते हुए एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) को लागू करने का निर्णय लिया है। यह योजना केंद्र सरकार द्वारा लाई गई एक पहल है और इसका उद्देश्य एनपीएस की कुछ कमियों को दूर करते हुए एक अधिक आकर्षक, फिर भी वित्तीय रूप से टिकाऊ पेंशन प्रणाली प्रदान करना है। हरियाणा सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ओपीएस को बहाल करने के मूड में नहीं है और राज्य के बजट में यूपीएस को लागू करने के लिए वित्तीय प्रावधान भी किए गए हैं।

एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) की मुख्य विशेषताएं

हरियाणा में लागू की जा रही यूपीएस कई मायनों में एनपीएस से भिन्न है और इसमें ओपीएस के कुछ तत्वों को शामिल करने का प्रयास किया गया है:

सुनिश्चित पेंशन भुगतान: यूपीएस की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक यह है कि यह सुनिश्चित पेंशन भुगतान की गारंटी देती है। यह एनपीएस के बाजार-आधारित अनिश्चित रिटर्न के विपरीत है।
एनपीएस का प्रतिस्थापन: यह योजना राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए मौजूदा राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की जगह लेगी।
पेंशन गणना का फार्मूला: यूपीएस के तहत, कर्मचारियों को 25 साल की सेवा पूरी करने के बाद उनके अंतिम 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50% पेंशन के रूप में मिलेगा। यह ओपीएस से थोड़ा भिन्न है, जहां पेंशन की गणना आमतौर पर अंतिम आहरित वेतन (मूल वेतन + महंगाई भत्ता) के आधार पर की जाती थी।
न्यूनतम पेंशन और पारिवारिक पेंशन: यूपीएस के तहत कम से कम ₹10,000 प्रति माह पेंशन का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त, कर्मचारी की मृत्यु की स्थिति में परिवार को 30% पारिवारिक पेंशन के रूप में दिया जाएगा।
न्यूनतम सेवा अवधि: उपरोक्त दोनों लाभ (न्यूनतम पेंशन और पारिवारिक पेंशन) 10 वर्ष की न्यूनतम सेवा पूरी करने वाले राज्य कर्मचारियों को मिल सकेंगे। हालांकि, सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन का पूरा लाभ (औसत मूल वेतन का 50%) 25 साल की सेवा पूरी करने के उपरांत ही मिलेगा।
कर्मचारी अंशदान: ओपीएस के विपरीत, जहां कोई कर्मचारी अंशदान नहीं था, यूपीएस में कर्मचारी के वेतन से 10% अंशदान काटने का प्रावधान है। यह एनपीएस के समान है, जहां कर्मचारी और सरकार दोनों योगदान करते हैं।
महंगाई राहत: ओपीएस में पेंशन आमतौर पर साल में दो बार महंगाई भत्ते के हिसाब से संशोधित होती थी। यूपीएस में पेंशन को महंगाई राहत (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक – सीपीआई) के साथ जोड़ा गया है। इसका अर्थ है कि पेंशन में वृद्धि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर की जाएगी।

लाभार्थियों की संख्या और सरकार का दावा

 

हरियाणा सरकार का दावा है कि इस योजना का लाभ राज्य के लगभग सवा दो लाख सेवारत कर्मचारियों को मिलेगा। सरकार इसे एक प्रगतिशील कदम के रूप में प्रस्तुत कर रही है, जो कर्मचारियों की पेंशन सुरक्षा और राज्य की वित्तीय स्थिरता के बीच संतुलन साधने का प्रयास है। यह निर्णय कर्मचारी संगठनों के साथ कई दौर की बातचीत के बाद लिया गया है, हालांकि ओपीएस बहाली के लिए राज्य में संघर्ष समिति का आंदोलन अभी भी जारी है।

यूपीएस बनाम ओपीएस: एक तुलनात्मक विश्लेषण

 

एकीकृत पेंशन योजना और पुरानी पेंशन योजना के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं, जो कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों और सरकार की वित्तीय देनदारियों को प्रभावित करते हैं:

विशेषता ओपीएस और यूपीएस की

पेंशन का आधार अंतिम आहरित वेतन (मूल वेतन + महंगाई भत्ता) का 50% अंतिम 12 माह के औसत मूल वेतन का 50% (25 वर्ष की सेवा पर)

कर्मचारी अंशदान शून्य 10% वेतन से कटौती

पेंशन की गारंटी हां, सरकार द्वारा पूर्णतः गारंटीड हां, सुनिश्चित पेंशन भुगतान की गारंटी

महंगाई राहत आमतौर पर साल में दो बार महंगाई भत्ते के अनुसार संशोधित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) से जुड़ी महंगाई राहत
वित्तीय भार पूर्णतः सरकार पर कर्मचारी और सरकार द्वारा साझा (अंशदान के माध्यम से फंड निर्माण)
बाजार जोखिम शून्य अंशदान आधारित प्रणाली होने के कारण, निवेश का पहलू देखना होगा (हालांकि गारंटीड रिटर्न का वादा है)
न्यूनतम पेंशन आमतौर पर अंतिम वेतन के आधार पर कोई निश्चित न्यूनतम राशि नहीं (परंपरागत रूप से) ₹10,000 प्रति माह
पारिवारिक पेंशन नियम अलग-अलग हो सकते हैं, आमतौर पर पेंशन का एक निश्चित प्रतिशत 30% पारिवारिक पेआउट
कार्यान्वयन 2003 तक लागू, बाद में बंद हरियाणा सरकार द्वारा अब लागू

विश्लेषण

उपरोक्त तुलना से स्पष्ट है कि यूपीएस, ओपीएस और एनपीएस के बीच एक मध्य मार्ग खोजने का प्रयास करती है। यह ओपीएस की तरह एक सुनिश्चित पेंशन का वादा करती है, जो एनपीएस में नहीं था, लेकिन ओपीएस के विपरीत इसमें कर्मचारी अंशदान का प्रावधान है। पेंशन गणना का फार्मूला भी ओपीएस से थोड़ा अलग है; “अंतिम वेतन” के बजाय “अंतिम 12 माह के औसत मूल वेतन” का उपयोग करने से पेंशन की राशि में मामूली कमी आ सकती है, खासकर यदि अंतिम महीनों में वेतन वृद्धि महत्वपूर्ण रही हो। महंगाई राहत को सीपीआई से जोड़ना एक मानक तरीका है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता डीए-आधारित संशोधनों की तुलना में भिन्न हो सकती है, जो वेतन आयोग की सिफारिशों से भी प्रभावित होते हैं।

कर्मचारी संगठनों की प्रतिक्रिया और चिंताएं

 

हरियाणा सरकार द्वारा यूपीएस को लागू करने के निर्णय पर कर्मचारी संगठनों की प्रतिक्रिया मिश्रित रही है। जबकि कुछ संगठन इसे एनपीएस से बेहतर विकल्प के रूप में देख सकते हैं, अधिकांश प्रमुख कर्मचारी संगठन अभी भी ओपीएस की बहाली की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं।

ओपीएस की मांग पर अडिग: कई कर्मचारी संगठनों का मानना है कि यूपीएस, ओपीएस का एक कमजोर विकल्प है। उनकी मुख्य चिंताएं हैं:

कर्मचारी अंशदान: ओपीएस में कोई अंशदान नहीं था, जबकि यूपीएस में 10% की कटौती एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ के रूप में देखी जा रही है।
पेंशन गणना: अंतिम वेतन के बजाय औसत मूल वेतन पर गणना से पेंशन राशि कम हो सकती है।
महंगाई राहत: सीपीआई-आधारित महंगाई राहत की तुलना में डीए-आधारित संशोधन अधिक फायदेमंद माने जाते हैं।
विश्वास की कमी: एनपीएस के अनुभव के बाद  कर्मचारी नई योजनाओं के प्रति आशंकित हैं और उन्हें डर है कि भविष्य में यूपीएस के प्रावधानों में भी प्रतिकूल बदलाव किए जा सकते हैं।
आंदोलन और संघर्ष: ओपीएस की बहाली के लिए गठित संघर्ष समिति ने सरकार के इस फैसले के बावजूद अपना आंदोलन जारी रखने का संकल्प लिया है। उनका तर्क है कि जब कई अन्य राज्य ओपीएस को बहाल करने पर विचार कर रहे हैं या कर चुके हैं, तो हरियाणा सरकार को भी ऐसा ही करना चाहिए। ये संगठन रैलियों, प्रदर्शनों और अन्य माध्यमों से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

समर्थन के स्वर (संभावित): हालांकि पाठ में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, लेकिन यह संभव है कि कुछ कर्मचारी या संगठन जो एनपीएस की अनिश्चितताओं से चिंतित थे, वे यूपीएस को एक सकारात्मक कदम के रूप में देख सकते हैं क्योंकि यह कम से कम एक “सुनिश्चित” पेंशन का वादा करती है, भले ही वह ओपीएस के बराबर न हो। उनके लिए, “कुछ नहीं से कुछ बेहतर” वाली स्थिति हो सकती है।

सरकार का दृष्टिकोण और तर्क

 

हरियाणा सरकार का यूपीएस लागू करने का निर्णय कई कारकों पर आधारित प्रतीत होता है:

वित्तीय विवेक: ओपीएस की बहाली से राज्य सरकार पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, जिससे विकास कार्यों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन की कमी हो सकती है। यूपीएस, जिसमें कर्मचारी अंशदान भी शामिल है और पेंशन गणना का फार्मूला थोड़ा संशोधित है, वित्तीय रूप से अधिक टिकाऊ विकल्प माना जा रहा है।
कर्मचारियों को राहत: सरकार का तर्क है कि यूपीएस एनपीएस की तुलना में कर्मचारियों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करती है क्योंकि इसमें सुनिश्चित पेंशन का प्रावधान है। न्यूनतम ₹10,000 की पेंशन और पारिवारिक पेंशन भी इसे एनपीएस से अधिक आकर्षक बनाती है।
केंद्र सरकार की नीति: चूंकि यूपीएस केंद्र सरकार द्वारा लाई गई योजना है, राज्य सरकारें इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित हो सकती हैं ताकि राष्ट्रीय स्तर पर पेंशन नीतियों में एकरूपता लाई जा सके और केंद्र से संभावित वित्तीय सहायता या मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सके।
मध्य मार्ग: सरकार यूपीएस को ओपीएस की मांगों और एनपीएस की वित्तीय वास्तविकताओं के बीच एक व्यावहारिक समाधान के रूप में देख रही है।

संभावित प्रभाव और भविष्य की दिशा

 

हरियाणा में यूपीएस के कार्यान्वयन के कई अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं:

कर्मचारियों पर प्रभाव

सकारात्मक: एनपीएस के तहत आने वाले कर्मचारियों के लिए, यूपीएस एक निश्चित सुधार ला सकती है क्योंकि यह सुनिश्चित पेंशन प्रदान करती है।
नकारात्मक: जो कर्मचारी ओपीएस की उम्मीद कर रहे थे, वे निराश होंगे और उन्हें 10% अंशदान भी देना होगा। पेंशन की राशि भी ओपीएस की तुलना में थोड़ी कम हो सकती है।

राज्य के वित्त पर प्रभाव

 

ओपीएस की तुलना में यूपीएस राज्य सरकार के लिए कम वित्तीय बोझ वाली होगी। हालांकि, एनपीएस की तुलना में इसकी देनदारियां अधिक होंगी क्योंकि इसमें सुनिश्चित पेंशन का वादा है। सरकार को इसके लिए एक समर्पित फंड बनाने और उसका प्रबंधन करने की आवश्यकता होगी।

राजनीतिक प्रभाव

 

पेंशन का मुद्दा एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है। यूपीएस को लागू करने का निर्णय आगामी चुनावों में सरकार के लिए समर्थन और विरोध दोनों का कारण बन सकता है। कर्मचारी संगठनों की नाराजगी एक महत्वपूर्ण कारक हो सकती है।

अन्य राज्यों के लिए उदाहरण

यदि हरियाणा में यूपीएस का कार्यान्वयन सफल रहता है और यह कर्मचारियों के एक बड़े वर्ग को स्वीकार्य होता है, तो यह अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल बन सकता है जो ओपीएस की मांगों और वित्तीय बाधाओं के बीच जूझ रहे हैं।

चुनौतियां और आगे की राह

 

यूपीएस के सफल कार्यान्वयन के मार्ग में कई चुनौतियां हैं:

कर्मचारी संगठनों का विश्वास जीतना: सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती उन कर्मचारी संगठनों का विश्वास जीतना है जो अभी भी ओपीएस की मांग कर रहे हैं। इसके लिए निरंतर संवाद और योजना के लाभों को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करने की आवश्यकता होगी।
पारदर्शी और कुशल कार्यान्वयन: यूपीएस के तहत अंशदानों के संग्रह, फंड प्रबंधन और पेंशन वितरण की प्रक्रिया को पारदर्शी और कुशल बनाना होगा ताकि कर्मचारियों में इसके प्रति विश्वास पैदा हो सके।
दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता: सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि यूपीएस के तहत पेंशन देनदारियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध हों और यह योजना दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ बनी रहे।
महंगाई समायोजन: सीपीआई-आधारित महंगाई राहत की प्रभावशीलता पर निरंतर निगरानी रखनी होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों की क्रय शक्ति बनी रहे।

निष्कर्ष

हरियाणा सरकार द्वारा एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) को लागू करने का निर्णय राज्य में सरकारी कर्मचारियों की पेंशन प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। यह कदम पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली की मांग कर रहे कर्मचारी संगठनों के कड़े विरोध के बीच उठाया गया है। यूपीएस को एनपीएस के स्थान पर लाया गया है और यह 25 साल की सेवा के बाद औसत मूल वेतन का 50% पेंशन, न्यूनतम ₹10,000 मासिक पेंशन, 30% पारिवारिक पेंशन और 10% कर्मचारी अंशदान जैसे प्रावधानों के साथ एक सुनिश्चित पेंशन भुगतान की गारंटी देती है।

जहां सरकार इसे वित्तीय रूप से स्थायी और कर्मचारियों के लिए एनपीएस से बेहतर विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रही है, वहीं कई कर्मचारी संगठन इसे ओपीएस की तुलना में कमतर मानते हैं और अपनी पुरानी मांगों पर अड़े हुए हैं। इस योजना की सफलता इसके प्रभावी कार्यान्वयन, कर्मचारियों की स्वीकृति और राज्य की वित्तीय सेहत पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव पर निर्भर करेगी। आने वाला समय ही बताएगा कि क्या यूपीएस हरियाणा में सरकारी कर्मचारियों की पेंशन चिंताओं का एक स्थायी और संतोषजनक समाधान प्रदान कर पाएगी और क्या यह अन्य राज्यों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल बन सकेगी। फिलहाल, यह पेंशन सुधारों की जटिल और अक्सर विवादास्पद यात्रा में एक और महत्वपूर्ण अध्याय है।

 

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