Haryana News : हाई कोर्ट का पूर्व सैनिक के आश्रित बेटे को आरक्षण का लाभ देने से इन्कार, जानें क्या है मामला

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़: Haryana News : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एचएसएससी) पर कड़ा रुख अपनाते हुए हरियाणा पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के पद पर चयन में एक सैनिक के आश्रित बेटे को आरक्षण का लाभ न देने पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने आयोग के इस रवैये को सैनिक के प्रति अनादर और असंवेदनशीलता का परिचायक बताया। जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु की अदालत ने आदेश में कहा कि आयोग ने एक सैनिक के बलिदान और उसके आश्रित की स्थिति का सम्मान नहीं किया और इस प्रकार की गलती न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि सैनिक के परिवार के प्रति भी अन्यायपूर्ण है।

मामला और याचिका का विवरण

 

चरखी दादरी के निवासी राहुल ने हरियाणा पुलिस में सब-इंस्पेक्टर पद के लिए जून 2021 में आवेदन किया था। वह दिल्ली विश्वविद्यालय से एमएससी (ऑपरेशनल रिसर्च) की पढ़ाई कर चुका है और उसने हरियाणा सरकार के नियमों के तहत 50 प्रतिशत से अधिक विकलांग भूतपूर्व सैनिक (ईएसएम-विकलांग) के आश्रितों के कोटे में आवेदन किया था। राहुल के पिता 1995 में श्रीलंका में हुए सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन पवन’ के दौरान रॉकेट लांचर से घायल हो गए थे, जिसके कारण उनके दोनों हाथ क्षतिग्रस्त हो गए थे। इस चोट के चलते उन्हें सेना से छुट्टी दे दी गई और उन्हें 90 प्रतिशत तक स्थायी विकलांगता हो गई। इस स्थिति के तहत राहुल ने विकलांग भूतपूर्व सैनिकों के आश्रितों के कोटे में आवेदन किया था।

चयन प्रक्रिया और विवाद

 

राहुल ने एचएसएससी द्वारा 26 सितंबर 2021 को आयोजित की गई लिखित परीक्षा में हिस्सा लिया और 57 अंक प्राप्त किए, जबकि अंतिम रूप से चयनित उम्मीदवार ने केवल 35.2 अंक प्राप्त किए थे। इसके बावजूद राहुल को चयन सूची से बाहर कर दिया गया और उसे सामान्य ईएसएम श्रेणी में डाल दिया गया। इसका कारण यह बताया गया कि आवेदन करते समय उसने विकलांग भूतपूर्व सैनिक (ईएसएम-विकलांग) श्रेणी का प्रमाण पत्र संलग्न नहीं किया था। इस वजह से उसे डीईएसएम (विकलांग) कोटे में विचार नहीं किया गया और उसकी दावेदारी को नजरअंदाज कर दिया गया।

कोर्ट का हस्तक्षेप

राहुल ने न्याय की उम्मीद में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके वकील जसबीर मोर ने अदालत को बताया कि राज्य सैनिक बोर्ड द्वारा जारी पात्रता प्रमाण पत्र वैध था और उसमें ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि विकलांग भूतपूर्व सैनिकों के आश्रितों के लिए अलग से कोई विशेष प्रमाण पत्र संलग्न करना होगा। कोर्ट ने पाया कि आवेदन प्रक्रिया में राहुल द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रमाण पत्र पूरी तरह से वैध था और उसे इस आधार पर चयन से वंचित करना न केवल गलत है, बल्कि अनुचित भी है।

हाई कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने एचएसएससी के इस कृत्य को गंभीर अनादर माना और इस पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि इस तरह की लापरवाही और असंवेदनशीलता सैनिकों के प्रति अनादर का परिचायक है, जो देश की सेवा में अपने शरीर और जीवन को दांव पर लगाते हैं। कोर्ट ने आयोग पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि वे तीन महीने के भीतर राहुल को सब-इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति पत्र जारी करें।

न्यायालय की नसीहत

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता को नवंबर 2021 से ही मुकदमेबाजी में उलझना पड़ा, जबकि इसी स्थिति वाले अन्य उम्मीदवार तीन साल से हरियाणा पुलिस में सेवा दे रहे हैं। कोर्ट ने इसे याचिकाकर्ता के लिए मानसिक और आर्थिक परेशानी का कारण बताया और कहा कि इस तरह की गलती भविष्य में न हो, इसलिए एचएसएससी पर यह जुर्माना लगाया गया है।

यह मामला न सिर्फ एक सैनिक के परिवार के साथ हुए अन्याय को उजागर करता है, बल्कि सरकारी संस्थाओं को अपने कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील होने की भी सीख देता है। हाई कोर्ट के इस फैसले से न केवल राहुल को न्याय मिला, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण संदेश भी है कि सैनिकों और उनके परिवारों के प्रति सम्मान और संवेदना दिखाना हर संस्था का दायित्व है।