Haryana News: गोतस्करी में बदनाम नूंह गायों की सेवा के मामले में भी है नहीं पीछे, जानें इसकी खासियत

नरेन्द्र सहारण, नूंह: Haryana News: गोतस्करी में बदनाम नूंह गायों की सेवा के मामले भी पीछे नहीं है। नूंह शहर में 54 वर्ष से चली आ रही श्री गोपाल गोशाला गोसेवा के मामले में एक मिसाल बनी हुई है। 300 वर्ग गज में बनी इस गोशाला में फिलहाल 151 गायें है। गोशाला प्रबंधन की तरफ से यहां पर गायों के लिए बिजली, पानी, चारे व रहने की व्यवस्था अपने आप में गजब की है। इस गोशाला की क्षमता 250 गायों की है।

बगैर सहायता के चलाई जा रही गोशाला

 

अहम बात यह है कि गोसेवा आयोग की तरफ से बगैर सहायता के चलाई जा रही है। इसमें गोशाला के संस्थापक धींगडा परिवार का विशेष योगदान रहा है, इसके अलावा स्थानीय स्तर पर दान के रूप में आई राशि से गोशाला का बेहतर ढंग से संचालन हो रहा है। जिसकी तारीफ हर वर्ग के लोग करते हैं। वहीं मेवात का ऐसा कोई गांव नहीं जिसमें गोपालन नहीं हो रहा हो।

कई प्रकार की प्रजाति की गायें

शहर के पुराने बस अड्डे के समीप 1970 में शहर के धींगड़ा परिवार की तरफ से डीजीएफसी संस्था के माध्यम से गोशाला शुरू की गई थी। शुरुआत में यहां पर चंद गायें रखे गए। बाद में धीरे -धीरे गायों की तादात बढ़ती गई। फिलहाल यहां पर 151 गायें हैं, जिनमें देशी गाय, अमेरिकन, मारवाड़ी, साइवाल नस्ल के अलावा कई प्रकार की प्रजाति की गायें है। गोशाला में गायें के रहने के लिए अलग-अलग चार ऊंचे शेड बनाए हुए हैं, ताकि धूप से बचाव हो सके। सभी शेड़ में गोवंशियों के शेड़ में तीन बार सफाई की जाती है। यह नियमित रूप से की जाती है, जिससे यह नहीं लगता कि यहां पर कोई पशु रहते हों।

दो -दो बड़े -बड़े कूलर भी लगाए

इसके अलावा सभी शेड में बिजली के पंखे लगाए हुए हैं। गायों को गर्मी से बचाने के लिए स्पेशल तौर पर एक-एक शेड में प्रबंधन की तरफ से दो -दो बड़े -बड़े कूलर भी लगाए हुए हैं। चूंकि शहर में बिजली की सप्लाई ठीक रहती है, इसलिए गर्मी में गायों को कोई दिक्कत नहीं होती। सुबह के वक्त चारा खिलाने के बाद गायो को दूसरे बाड़े में शिफ्ट किया जाता है, ताकि शेड की सफाई की जा सके। बाड़े में कई घंटे रखने के बाद गोवंशी को जब दोपहर के चारे लिए शेड में लाया जाता है तो गोवंशी अपने-अपने शेड़ में जाकर चारा लेती हैं। सभी शेड़ में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिससे हर वक्त गोवंशी की हलचल पर नजर रखी जा सके।

धींगडा परिवार करता है गोशाला के संचालन

अहम बात यह है कि इस गोशाला को हरियाणा गोसेवा आयोग की तरफ से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती। गोशाला के प्रबंधक राकेश मनोचा की मानें तो अभी भी धींगडा परिवार गोशाला के संचालन करता है। अधिकांश खर्चा यह परिवार ही उठाता है, कुछ दान दानियों की मदद भी होती है। हमारी कोशिश है कि गोवंशी को पूरी सहूलियत प्रदान की जाए। जिसमें हम कामयाब भी हो रहे हैं।

सैकड़ों गांवों में पाली जाती हैं गायें

नूंह जिले में गाय पालन का एक शौक है। अरवाली पहाडी की तलहटी में बसे सभी गांवों में गायों का पालन होता है। मुख्य रूप से मेवली, लुहिंगा, मालब, चांदनकी, पाट, खोरी, नगीना, खानपुर, महूं, तिगांव, ढाना, बुबलहेड़ी के अलावा अरावली की पहाड़ियों के तलहटी में बसे सभी गांवों में गोपालन हो रहा है। यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेतीबाड़ी और पशु पालन है।

गायों की देखभाल के लिए पुख्ता व्यवस्था

नूंह की गोपाला गोशाला के प्रबंधक राकेश मनोचा ने कहा कि गोवंशियों को गर्मी से बचने के लिए कूलर, बिजली के पंखे तथा पानी व चारे की पुख्ता व्यवस्था की हुर्इ है। गायों की देखभाल के लिए पुख्ता व्यवस्था कराई गई है।

हरियाणा गोसेवा आयोग के सदस्य आस मोहम्मद ने कहा कि मेवात के हर गांव में गायों का पालन हो रहा है, गोपालकों की सूची तैयार की जा रही है। मेरा प्रयास रहेगा ऐसे गोपालकों को भी आयोग की तरफ से प्रोत्साहन राशि दिलाई जाए, ताकि गोपालन को बढ़ावा दिलाया जा सके। हालांकि गोसेवा आयोग गोपालन को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है।

 

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