Haryana Voting Analysis: पिछली बार से 5 प्रतिशत कम हुआ मतदान, जानें कैसे भाजपा को राहत तो कांग्रेस की टेंशन बढ़ी

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana Voting Analysis: हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर शनिवार (25 मई) को मतदान हुआ, जिसमें 65% वोट पड़े। यह मतदान 2019 के 70.34% के मुकाबले 5% कम है। देखा जाए तो जाटलैंड से लेकर जीटी रोड बेल्ट तक लगभग सभी इलाकों में मतदान का प्रतिशत गिरा। ऐसे में ग्रामीण एरिया में भाजपा का विरोध कर रहे किसान क्या कोई प्रभाव डाल पाएंगे? इसे लेकर दोनों पार्टियों और राजनीतिक समीक्षकों के अपने-अपने आंकलन हैं।

मतदान से भाजपा खुश, कांग्रेस मायूस

 

ऐेसे में कम मतदान से जहां भाजपा खुश नजर आ रही है वहीं कांग्रेस के भीतर मायूसी दिख रही है। इसकी वजह ये है कि जिस तरीके से ग्रामीण इलाकों में भाजपा नेताओं का विरोध हो रहा था, उससे कांग्रेस को बंपर वोटिंग की उम्मीद थी। ऐसा कुछ खास नजर नहीं आया। मतदान खत्म होने के 13 घंटे बाद, रविवार दोपहर 1 बजे तक चुनाव आयोग के आधिकारिक मतदाता टर्नआउट एप के अनुसार, राज्य के सिर्फ 4 विधानसभा हलके ऐसी रहे जहां 70% या उससे अधिक मतदान हुआ। इनमें अंबाला संसदीय हलके के दो (जगाधरी-साढौरा), एक कुरुक्षेत्र (लाडवा) और एक सिरसा संसदीय हलके का (ऐलनाबाद) शामिल रहा।

किसानों और जाटों की नाराजगी वाले क्षेत्र में कम मतदान

 

जीटीरोड बेल्ट में किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर रहा था। यहां कुरूक्षेत्र, अंबाला, करनाल और सोनीपत लोकसभा सीट है। कांग्रेस को उम्मीद थी कि यहां किसानों और जाटों की नाराजगी के कारण उसके पक्ष में मतदान प्रतिशत बढ़ेग। हालांकि, इसका असर सिर्फ 2 सीटों पर दिखा। यहां अंबाला सीट पर 66.90% और कुरूक्षेत्र में 66.20% यानी अच्छी मतदान हुई। इससे कांग्रेस खुश हो सकती है। वहीं करनाल में 63.20% और सोनीपत में 62.20% मतदान हुई। दक्षिण हरियाणा की गुरुग्राम और फरीदाबाद सीट पर मतदान 60% से कम रहा। यह भी कांग्रेस के लिए झटके जैसा है जबकि भाजपा इसे अपने पक्ष में मान रही है। सिरसा सीट पर ज्यादा मतदान से कांग्रेस खुश हो सकती है क्योंकि यहां किसान आंदोलन का पूरा जोर रहा और भाजपा नेताओं को हिंसक विरोध तक झेलना पड़ा। यहां अधिक मतदान कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है।

जाटलैंड में भी हुआ कम मतदान

जाटलैंड में सोनीपत, रोहतक, हिसार के अलावा भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट का भिवानी जिले वाला इलाका आता है। रोहतक में 64.6%, सोनीपत में 62.3%, भिवानी-महेंद्रगढ़ में 65.3% और हिसार में 64.07% वोटिंग हुई।

राजनीतिक विशेषज्ञ बोले- हरियाणा में लहर जैसा कुछ नहीं

 

राजनीतिक विशेषज्ञ की मानें तो कम मतदान से साफ हो गया है कि हरियाणा में किसी पार्टी के हक में लहर जैसा कुछ नहीं था। 4 जून को नतीजे मिले-जुले आ सकते हैं। इतना जरूर है कि जिन सीटों पर 2019 में BJP बड़े अंतर से जीती थी, वहां अंत कम हो सकता है। हां, जहां भाजपा कम वोटों से जीती थी, वहां उलटफेर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इन सीटों में रोहतक जैसी सीट भी शामिल है। खास बात यह है कि शहरी इलाकों के मुकाबले छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में मतदान ज्यादा हुआ। यह भाजपा के लिए चिंता की बात हो सकती है। पार्टी शहरों में मोदी लहर और राम मंदिर मुद्दे को और अच्छी तरह भुना सकती थी। हालांकि ग्रामीण एरिया में बंपर वोटिंग भी देखने को नहीं मि,ली इसलिए कांग्रेस में खास उत्साह नहीं है क्योंकि ग्रामीण वोट उसके अलावा इनेलो में बंट सकते हैं।

हरियाणा में भी बाकी राज्यों जैसा ट्रेंड

इस बार के आम चुनाव में जो ट्रेंड पूरे देश में था, वहीं हरियाणा में भी दिखा। इस बार राजस्थान में 64.56%, महाराष्ट्र में 54.33%, ओडिशा में 69.34% वोटिंग हुई, जो 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले कम है। हरियाणा में 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.34% वोट पड़े थे, लेकिन इस बार वोटिंग प्रतिशत तकरीबन 5% गिर गया।

गर्मी सबसे बड़ा फैक्टर

कम मतदान के पीछे गर्मी सबसे बड़ा फैक्टर रहा। सूबे के 15 से अधिक जिलों में 10 दिन से अधिकतम तापमान 46 डिग्री के आसपास बना हुआ है। तेज लू चल रही है। शायद इसके चलते बड़ा वर्ग और खासकर युवा घर ही बैठा रहा।

किरण चौधरी की नाराजगी का भिवानी में दिखा असर

कांग्रेस विधायक किरण चौधरी के गृह जिले भिवानी में कम मतदान कई सवाल खड़े कर रही है। भिवानी-दादरी जिलों की 5 विधानसभा सीटें भिवानी-महेंद्रगढ़ संसदीय हलके में आती हैं। इन पांचों सीटों पर 61.58% मतदान हुआ। सियासी जानकार इसकी वजह किरण चौधरी की नाराजगी को बता रहे हैं। भिवानी-महेंद्रगढ़ संसदीय सीट से किरण की बेटी व पूर्व सांसद श्रुति चौधरी टिकट की दावेदार थीं, लेकिन पार्टी ने कांग्रेस विधायक राव दान सिंह को उम्मीदवार बना दिया। किरण चौधरी ने महेंद्रगढ़ में पार्टी की चुनावी रैली में राहुल गांधी के सामने खुलकर विरोध जताया था।

जाटों ने भी मतदान से दूरी बनाई

केंद्र सरकार के साथ-साथ हरियाणा में 10 साल से भाजपा सत्ता पर काबिज है। आम चुनाव में राज्य सरकार के प्रति एंटी इनकंबेंसी थी। प्रचार के दौरान भाजपा प्रत्याशियों का विरोध भी हुआ लेकिन मतदान में लोगों का यह विरोध कम नजर नहीं आया। जानकारों का कहना है कि हरियाणा के सबसे बड़े वर्ग जाटों को इस चुनाव में भाजपा के विकल्प के तौर पर कांग्रेसी उम्मीदवार ज्यादा नहीं जमे इसलिए वह मतदान से दूर रहा।

 

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