Atala Temple Case: जौनपुर के अटाला मंदिर केस की 20 दिसंबर को होगी सुनवाई, कोर्ट के आदेश पर पत्रावली दाखिल

जौनपुर, बीएनएम न्यूजः जौनपुर के अटाला मंदिर (Atala Temple Case Jaunpur)मामले में सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट ने आगामी सुनवाई के लिए 20 दिसंबर की तारीख निर्धारित की है। कोर्ट के आदेशानुसार वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने मुनादी कराकर पत्रावली दाखिल की। इस दौरान, कोर्ट ने क्षेत्रीय लोगों को सूचित करने के लिए प्रकाशन और मुनादी का निर्देश दिया था, ताकि संबंधित पक्ष अपना पक्ष रख सकें।
अटाला मस्जिद के ऐतिहासिक पहलुओं पर दावे
वादी पक्ष का दावा है कि अटाला मस्जिद मूल रूप से अटाला देवी मंदिर थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने कहा कि इस मंदिर का निर्माण कन्नौज के राजा जयचंद राठौर ने करवाया था। इसके साथ ही, अंग्रेज अधिकारी जेपी हेविट और ईबी हावेल ने भी अटाला मस्जिद की शिल्प कला को हिंदू स्थापत्य शैली से संबंधित बताया है।
शिल्पकला और अभिलेखों का उल्लेख
एएसआई की रिपोर्ट में अटाला देवी मंदिर से जुड़े कई फोटोग्राफ्स शामिल हैं, जिनमें शंख, त्रिशूल, षटदल कमल, गुड़हल के फूल और बंधन बार जैसी हिंदू शिल्पकला के प्रतीक स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। वादी ने यह भी कहा कि राजस्व अभिलेखों में अटाला मस्जिद की जमीन “जामा मस्जिद” के नाम से दर्ज है, जिसकी वर्तमान मालिक केंद्र सरकार है।
वक्फ कानून और पूजा स्थल अधिनियम पर तर्क
वादी का कहना है कि अटाला मस्जिद का वक्फ एक्ट 1995 की धारा 4 के तहत कभी सर्वेक्षण नहीं हुआ, इसलिए वक्फ कानून इस मामले में लागू नहीं होता। इसके अलावा, चूंकि यह स्मारक एएसआई के संरक्षण में है, इसलिए इस पर पूजा स्थल अधिनियम 1991 भी लागू नहीं होता।
आगामी सुनवाई का महत्व
पिछली सुनवाई में पोषणीयता और क्षेत्राधिकार के मुद्दों पर फैसला होना था, लेकिन यह टल गया। अब 20 दिसंबर को इस मामले पर महत्वपूर्ण सुनवाई होने की संभावना है। इस केस ने क्षेत्रीय और ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ी रुचि और विवाद खड़ा कर दिया है।
यह मामला ऐतिहासिक धरोहर, धार्मिक आस्था, और कानूनी प्रावधानों के जटिल मिश्रण का उदाहरण है, जिसकी गूंज न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी सुनाई दे रही है।
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