हाईकोर्ट का फैसला, द्विविवाह के मामले में समझौते के आधार पर सजा की जा सकती है रद

नरेन्‍द्र सहारण, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने द्विविवाह (दो विवाह) करने के मामले में पति को सुनाई गई तीन साल की सजा को उसकी पत्नी के साथ समझौते के आधार पर रद कर दिया है। हाईकोर्ट ने एफआइआर और दोष सिद्धि को रद करते हुए कहा कि यह मामला निजी है और दोषी करार देने के आदेश को रद करके ही न्याय तक पहुंचा जा सकता है।

सीजेएम ने दो विवाह करने पर सुनाई थी तीन साल की सजा

इस मामले में कैथल निवासी महिला के पति ने एडवोकेट प्रियव्रत पराशर के माध्यम से याचिका दाखिल करते हुए कैथल के सीजेएम के 27 जुलाई 2006 के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में सीजेएम ने द्विविवाह के लिए उसे दोषी मानकर तीन साल की सजा सुनाई थी। सजा के खिलाफ याची ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। अपील के लंबित रहते पक्षों ने समझौता किया और समझौते के आधार पर इस अपील को मंजूर करने का निवेदन किया। सभी दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि यदि पक्षों ने अपने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है तथा पीड़ित ने आपराधिक कार्रवाई को निरस्त करने के लिए स्वेच्छा से सहमति दे दी है, तो सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए हाई कोर्ट कार्यवाही को निरस्त कर सकता है, फिर भले ही अपराध गैर-समझौता योग्य हो।

दोष सिद्धि को निरस्त करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है कोर्ट

हाईकोर्ट ने कहा कि जब विवाद व्यक्तिगत प्रकृति का होता है तथा वास्तविक समझौता हो जाता है, तो उच्च न्यायालय दोष सिद्धि को निरस्त करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है। ऐसे मामलों में कार्यवाही जारी रखना अनुत्पादक तथा अन्यायपूर्ण होगा। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए हाई कोर्ट के पास असीमित शक्तियां हैं। यह शक्तियां कानून द्वारा स्पष्ट रूप से प्रदान नहीं की गई हैं, लेकिन कानून तथा न्यायालयों की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए इसका प्रयोग आवश्यक है। हाई कोर्ट ने कहा कि बीएनएसएस 2023 की धारा 528 अद्वितीय शक्तियों को दर्शाती है, जिसका उपयोग हाई कोर्ट तब कर सकता है, जब ऐसा करना न्यायसंगत और समतापूर्ण हो।

 

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