पुत्रवधू का यौन उत्पीड़न करने के आरोपित व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से हाई कोर्ट का इन्कार, कही यह बात
नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। Haryana News: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। यह मामला यमुनानगर निवासी एक व्यक्ति का है, जिस पर उसकी पुत्रवधू ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए टिप्पणी की कि आरोपी को सुरक्षात्मक आदेश देने से जांच प्रक्रिया बाधित हो सकती है और सच्चाई सामने लाने में मुश्किलें आ सकती हैं।
आरोपों की गंभीरता पर कोर्ट की टिप्पणी
हाई कोर्ट के जस्टिस सुमित गोयल ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ससुर और पुत्रवधू के रिश्ते की मर्यादा बहुत उच्च स्तर के विश्वास, सम्मान और गरिमा पर आधारित होती है। यह एक ऐसा संबंध है, जिसे बेहद संरक्षक और स्नेहिल भाव से निभाया जाता है। कोर्ट ने कहा कि यदि इस रिश्ते में किसी प्रकार का अनुचित कृत्य होता है, तो यह अत्यंत गंभीर और भ्रष्ट आचरण का प्रतीक है। यहां तक कि अनजाने में किया गया अनुचित व्यवहार भी रिश्ते की पवित्रता को नष्ट कर सकता है।
घटना का विवरण
आरोपों के अनुसार, पीड़िता ने पुलिस को बताया कि उसका ससुर उसे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने की कोशिश करता था। आरोप यह भी है कि उसका पति उसके साथ दुर्व्यवहार करता था, नशे की हालत में मारपीट करता था और उसके परिवार से अधिक दहेज लाने का दबाव बनाता था। पीड़िता ने कहा कि उसके पति ने न केवल उसकी मदद करने से इनकार कर दिया, बल्कि ससुर के अनुचित व्यवहार का समर्थन भी किया। पति ने धमकी दी कि यदि उसने इसका विरोध किया, तो उसे तलाक दे दिया जाएगा।
सबूत और अभियोजन पक्ष की सामग्री
हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए गए रिकॉर्ड और सबूतों की जांच की। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता ने आरोपी ससुर की अनुचित टिप्पणियों को रिकॉर्ड किया था। यह रिकॉर्डिंग एक पेन-ड्राइव में थी, जिसे अभियोजन पक्ष ने अपने कब्जे में ले लिया। इस वॉयस रिकॉर्डिंग ने ससुर के अपराध में संलिप्त होने के पर्याप्त संकेत दिए।
जस्टिस गोयल ने स्पष्ट किया कि पिता और बेटी जैसा पवित्र रिश्ता ससुर और पुत्रवधू के बीच होना चाहिए। इस रिश्ते में किसी भी तरह की अनुचित टिप्पणी या यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं बेहद निंदनीय और घृणास्पद हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे कृत्य पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक मर्यादाओं के विरुद्ध हैं, जो न केवल इस विशेष रिश्ते को बल्कि पूरे समाज को झकझोर सकते हैं।
जांच में बाधा की संभावना
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आरोपी को अग्रिम जमानत देने से जांच एजेंसी के निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से जांच करने की क्षमता में बाधा आ सकती है। न्यायाधीश ने कहा कि इस प्रकार की राहत से जांच एजेंसी के प्रयास कमजोर हो सकते हैं, जिससे सच्चाई सामने लाने में कठिनाई होगी। इसलिए, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि आरोपी को न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना होगा।
कोर्ट का निष्कर्ष
जस्टिस गोयल ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि आरोपी और पीड़िता के बीच के रिश्ते में स्नेह और विश्वास का होना अत्यंत आवश्यक है। ऐसे रिश्ते में विश्वासघात की संभावना बेहद दुखद है और इससे पूरे परिवार की प्रतिष्ठा और संरचना पर गहरा असर पड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में प्रस्तुत की गई सामग्री से यह स्पष्ट होता है कि आरोप गंभीर हैं और इनमें निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है।
इस तरह, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि इस मामले में सख्ती से जांच होनी चाहिए ताकि पीड़िता को न्याय मिल सके और दोषियों को सजा। कोर्ट ने इस मामले को समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी के रूप में देखा और कहा कि इस प्रकार के कृत्य न केवल पारिवारिक रिश्तों को अपमानित करते हैं, बल्कि सामाजिक संरचना को भी हानि पहुंचाते हैं।
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