मृत कर्मचारी के परिवार को पेंशन दी जा रही तो भी अनुकंपा नियुक्ति से नहीं किया जा सकता इन्कार : हाईकोर्ट

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट कर दिया कि किसी मृत कर्मचारी के परिवार को पारिवारिक पेंशन की प्राप्ति अनुकंपा नियुक्ति से इन्कार करने का आधार नहीं हो सकती है। अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार कर्मचारी के निधन के कारण प्राप्त सेवानिवृत्ति या अन्य लाभों से अलग है। हाई कोर्ट ने पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) को अपने मृत कर्मचारी की विधवा को अनुकंपा नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश देते हुए यह आदेश पारित किए हैं। बैंक ने विधवा को इस आधार पर नौकरी देने से इन्कार कर दिया था कि उसे बीमा राशि दी गई थी और उसे पारिवारिक पेंशन मिल रही थी।

हाई कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति या अनुग्रह भुगतान का उद्देश्य मृत कर्मचारी के परिवार को गरीबी और भुखमरी से बचाता है। प्रतिवादी बैंक की नीति के उद्देश्य में यह विशेष रूप से देखा गया है कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का उद्देश्य मृत कर्मचारी के परिवार के किसी सदस्य को कोई पद देना नहीं है। यह एक मृत कर्मचारी के परिवार को उसकी असामयिक मृत्यु के कारण आए अचानक संकट से निपटने के लिए राहत प्रदान करने के लिए है।

यह है मामला

हाई कोर्ट के जस्टिस जगमोहन बंसल ने हिसार निवासी रेखा शर्मा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किए हैं। उसके पति जगदीश चंद्र शर्मा पीएनबी में कार्यरत थे। 25 दिसंबर 2015 को उनका निधन हो गया। उस समय वह 49 वर्ष के थे। उनके परिवार में तीन बच्चे, पत्नी और बूढ़ी मां हैं। याचिकाकर्ता बैंक की 25 सितंबर 2014 की अनुकंपा योजना के तहत अनुकंपा नियुक्ति का हकदार थी। याचिकाकर्ता ने 23 अगस्त 2016 को आवेदन के माध्यम से प्रतिवादी बैंक से अनुकंपा नियुक्ति के लिए उस पर विचार करने का अनुरोध किया। हालांकि बैंक ने 26 अक्टूबर 2016 के आदेश द्वारा उसके दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसे जीवन बीमा निगम से 45 लाख रुपये की राशि प्राप्त हुई है और उसे प्रति माह 17,539 रुपये की पारिवारिक पेंशन भी मिल रही है। उसकी याचिका सुनने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि बैंक की नीति के अनुसार यह योजना मृतक के परिवार को गरीबी से बचाने के लिए है। इसलिए इस अदालत की राय है कि 26 अक्टूबर 2016 का आदेश रद किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने बैंक को 25 सितंबर 2014 की अपनी नीति के आलोक में याचिकाकर्ता के मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश भी दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया गया है कि प्रतिवादी बैंक प्रामाणिक और ईमानदार तरीके से कार्य करेगा और किसी भी आधार पर पर्याप्त लाभ से इन्कार करने का कोई प्रयास नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने यह आवश्यक कार्रवाई तीन महीने के भीतर पूरी करने का भी आदेश दिया।

 

 

 

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