हाई कोर्ट ने कहा, शादी का वादा पूरा न करने पर दुष्कर्म का अपराध स्वत: नहीं होता

नरेन्द्र सहारण, चंडीगढ़। पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपित एक व्यक्ति को कथित पीड़िता से शादी करने का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने के आरोप में बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वादे पूरे करने में आरोपी की विफलता का मतलब यह नहीं लगाया जा सकता कि वादा ही झूठा था। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा गवाही या पीड़िता के बयान में कोई आरोप नहीं है कि जब अपीलकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था। इसके अतिरिक्त, पीड़िता की गवाही के अनुसार, वह अपीलकर्ता से केवल एक बार पहले मिली थी। उसी दिन उसने उसके साथ भागने का फैसला किया था।

अपीलकर्ता अपने वादे को पूरा करने में विफल रहा

अदालत ने कहा कि इस तरह के मामले में, इस अदालत को यह बेहद असंभव लगता है कि अपीलकर्ता ने पीड़िता से दूसरी बार मिलने के बाद ही उससे शादी करने का झूठा वादा किया होगा। कोर्ट ने कहा, अगर यह मान भी लिया जाए कि ऐसा वादा किया गया था तो भी अपीलकर्ता अपने वादे को पूरा करने में विफल रहने का यह मतलब नहीं लगाया जा सकता कि वादा ही झूठा था। हाई कोर्ट अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश यमुनानगर द्वारा पारित सजा के फैसले और सजा के आदेश के खिलाफ एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपीलकर्ता को धारा 376 आईपीसी के तहत सात साल के सश्रम कारावास, धारा 363 आईपीसी के तहत दो साल और धारा 366 के तहत पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

अपनी मर्जी से उसके साथ भाग गई थी

एफआईआर के मुताबिक, कथित पीड़िता अपनी मर्जी से आरोपित के साथ अपना घर छोड़कर गई थी। वह उसे एक ट्यूबवेल में ले गया, जहां उसने शादी का झांसा देकर उसके साथ दुष्कर्म किया। कथित पीड़िता की मेडिको-लीगल जांच की गई और एफआईआर में दुष्कर्म के आरोप जोड़े गए। अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि महिला बालिग है और स्वेच्छा से और अपनी मर्जी से उसके साथ भाग गई थी। शिकायतकर्ता अपीलकर्ता के साथ तीन दिनों तक रही और उसके साथ मोटर साइकिल पर काफी लंबी दूरी तय की। उसकी ओर से किसी भी प्रकार का कोई विरोध नहीं हुआ। सभी परिस्थितियां साबित करती हैं कि शिकायतकर्ता सहमति से पक्ष में थी इसलिए अपीलकर्ता द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है। दलीलें सुनने के बाद, कोर्ट ने कहा कि कथित पीड़िता 18 साल से ऊपर की है और कोई सबूत नहीं है कि आरोपित के साथ अपने पूरे समय में, पीड़िता ने कोई विरोध किया।

सहमति न होना दुष्कर्म को साबित करने के लिए अनिवार्य

कोर्ट ने कहा, ‘पीड़िता की गवाही से पता चलता है कि आरोपित ने उसकी मर्जी के खिलाफ उसका अपहरण नहीं किया था। वह बाइक पर उसके पीछे बैठी। उसे अपीलकर्ता काला अम्ब के पास ले गया और वे कई दिनों तक वहां रहे। कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या आरोपी की ओर से पीड़िता से शादी करने का झूठा वादा किया गया था। जस्टिस बराड़ ने कहा कि महिला की ओर से सहमति न होना दुष्कर्म के अपराध को साबित करने के लिए अनिवार्य है। वर्तमान मामले में, कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान में कोई आरोप नहीं है कि अपीलकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था। नतीजतन, कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए सजा को रद कर अपीलकर्ता को आरोपों से बरी कर दिया।

 

 

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