Indus Water Treaty: पस्त पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि पर भारत से पुनर्विचार की लगाई गुहार, आतंकवाद के मसले पर भारत का कठोर कदम

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज: Indus Water Treaty Suspended: आतंकवाद के मसले पर आपरेशन सिंदूर के भारत के पलटवार से लस्त-पस्त पाकिस्तान ने भारत से सिंधु जल संधि समझौते को स्थगित करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। पहलगाम में 22 अप्रैल को पर्यटकों पर बर्बर आतंकी हमले के तत्काल बाद अगले ही दिन भारत ने इस संधि को अपनी ओर से स्थगित कर पाकिस्तान को मौजूदा घटनाक्रम में पहला बड़ा संदेश दिया था। देश के सामने आतंकवाद की ज्वलंत समस्या का सामना करते हुए भारत ने अपने कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला किया है। यह निर्णय न केवल दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे जल साझा करने के मसले को नई दिशा देने का संकेत है, बल्कि पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ा संदेश है कि भारत अपनी राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा।
सिंधु जल संधि का संक्षिप्त इतिहास और परिप्रेक्ष्य
सिंधु जल संधि जो 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी दोनों देशों के बीच एक ऐतिहासिक जल समझौता है। इस संधि के तहत भारत और पाकिस्तान ने अपने-अपने हिस्से की छह नदियों सिंध, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और रवि के जल का बंटवारा तय किया। इस संधि के मुख्य प्रावधानों के अनुसार, पाकिस्तान को पश्चिम की तीन नदियों का लगभग पूरा पानी प्राप्त होता है, जबकि भारत इन नदियों से अपने घरेलू और कृषि आवश्यकताओं के लिए पानी का उपयोग करता है। वहीं, पूर्व की तीन नदियों झेलम, चिनाब और रावी का पानी दोनों देशों के बीच साझा होता है, मगर संधि के प्रविधानों के तहत भारत को पाकिस्तान को जाने वाले इन पानी को रोकने का अधिकार नहीं है।
यह संधि दोनों देशों के बीच सद्भाव और सहयोग का प्रतीक थी और इसकी स्थापना के समय दोनों पक्षों ने इसे स्थायी और निष्पक्ष समझौता माना था। परंतु समय के साथ-साथ बदलते जलवायु, बढ़ती जनसंख्या, तकनीकी बदलाव और कृषि व उद्योग की जरूरतों के चलते इस संधि की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिह्न लगने लगे हैं। विशेष रूप से भारत के लिए, यह संधि कुछ सीमा तक जल की उपलब्धता को सीमित करने वाली बाधा बन गई थी, जबकि पाकिस्तान के लिए यह एक जीवनरेखा की तरह थी।
भारत का कठोर कदम: सिंधु जल संधि का स्थगन
22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादी हमले के तुरंत बाद भारत ने अपने जल संसाधन मंत्रालय के माध्यम से यह संकेत दे दिया कि वह इस संधि को स्थगित कर रहा है। 23 अप्रैल को भारत ने पाकिस्तान को औपचारिक पत्र भेजकर यह स्पष्ट किया कि अब भारत इस संधि को नहीं मानता और अपने हिस्से का जल अपने हित में उपयोग करेगा। इस निर्णय का मकसद पाकिस्तान को यह संदेश देना था कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपने कदमों में कोई समझौता नहीं करेगा और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा।
पाकिस्तान का प्रतिक्रिया और उसकी चिंता
पाकिस्तान ने इस कदम का तीव्र विरोध किया है। उसने अपने विदेश मंत्रालय को भेजे पत्र में यह तर्क दिया है कि संधि के प्रावधानों के अनुसार, एक पक्ष अपने स्तर से इसे स्थगित नहीं कर सकता। पाकिस्तान ने भारत से अनुरोध किया है कि वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे। लेकिन सूत्रों का कहना है कि भारत ने इस फैसले को सोच-समझकर लिया है और अब इसे वापस लेने का कोई इरादा नहीं है। भारत का मानना है कि आतंकवाद को समर्थन देने और प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान ने इस संधि की मूल भावना का उल्लंघन किया है, और अब वक्त आ गया है कि जल संसाधनों का विवाद राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में देखा जाए।
भारत की स्थिति: जल सुरक्षा का नया दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में साफ कहा कि आतंकवाद और वार्ता-व्यापार साथ नहीं चल सकते, उसी तरह पानी और खून का मेल भी असंभव है। उन्होंने कहा कि भारत अब अपनी जल सुरक्षा को सर्वोपरि मानता है। जल शक्ति मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत ने 2022 में ही पाकिस्तान को यह सूचित कर दिया था कि बदलते जलवायु, जनसंख्या वृद्धि, तकनीकी बदलाव और जरूरतों के मद्देनजर संधि पर पुनर्विचार की जरूरत है। लेकिन पाकिस्तान ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और अब भारत ने अपने हितों की रक्षा के लिए यह कदम उठाया है।
भारत का दावा: पानी का प्रयोग अपने हित में
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि भारत ने अपने हिस्से का हर बूंद पानी भारत में ही रहने का निर्णय लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने पाकिस्तान के साथ जल डेटा साझा करना बंद कर दिया है और अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि भारत के हितों का कोई भी हिस्सा पाकिस्तान के हाथ न लगे। सरकार का मानना है कि इस कदम से पाकिस्तान को उसकी खाद्य सुरक्षा और कृषि पर बड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि पाकिस्तान अपनी 80 प्रतिशत कृषि के लिए इस पानी पर निर्भर है।
राष्ट्रीय सुरक्षा और जल संसाधनों का संरक्षण
यह कदम भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक निर्णायक मोड़ है। जल संसाधनों का अधिकार राष्ट्र की संप्रभुता का अभिन्न हिस्सा है। आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाते हुए, भारत ने यह भी संकेत दिया है कि वह अपने जल संसाधनों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएगा। यह कदम न केवल पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी है बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अपने हितों के प्रति प्रतिबद्ध है और किसी भी खतरे से निपटने के लिए तैयार है।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य और विश्व बैंक की भूमिका
सिंधु जल संधि का निर्माण विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था। इस संधि की प्रासंगिकता और विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं, खासकर जब दोनों पक्षों के बीच विश्वास की दीवार खड़ी हो गई है। भारत के इस कदम के बाद, विश्व बैंक को भी इस मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ सकती है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संधि अब समय के साथ अप्रासंगिक हो चुकी है और दोनों देशों के बीच जल विवाद का समाधान नई नीतियों और समझौतों के माध्यम से ही संभव हो सकता है।
जल संसाधनों का न्यायसंगत और स्थायी प्रबंधन
भारत का यह कदम जल संसाधनों का संरक्षण और न्यायसंगत प्रबंधन की दिशा में एक बड़ा कदम है। जल का उपयोग केवल राष्ट्रीय हितों के लिए ही किया जाएगा, और जल विवादों को विवादास्पद बनाने की बजाय, दोनों देशों को संवाद और सहयोग के नए रास्ते तलाशने चाहिए। जल संसाधनों का न्यायसंगत और स्थायी प्रबंधन ही स्थिरता और समृद्धि का आधार है, जिसे भारत अब अपनी नीति का केंद्रबिंदु बनाता है।
भारत का संकल्प और पाकिस्तान का भविष्य
भारत का यह कदम सिंधु जल संधि का स्थगन न केवल जल विवाद का समाधान है बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ भारत की दृढ़ता का प्रतीक भी है। यह संकेत है कि भारत अब अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएगा। पाकिस्तान के लिए यह एक चेतावनी है कि उसकी नीतियों का परिणाम दोनों देशों की साझा विरासत और संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। साथ ही, यह कदम दोनों देशों के बीच जल और सुरक्षा के मसलों पर नए सिरे से विचार-विमर्श की आवश्यकता को रेखांकित करता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देश आपसी संवाद और सहयोग से इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान खोजेंगे, ताकि क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि बनी रहे।
अंत में यह स्पष्ट है कि भारत का यह कदम, चाहे वह जल संधि का स्थगन हो या आतंकवाद के खिलाफ कठोर नीति, देश की संप्रभुता, सुरक्षा और हितों की रक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। आने वाले समय में इस स्थिति का परिणाम क्या होगा, यह क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण होगा।