International Gita Festival: कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में संतों ने दिया नया नारा, घटोगे तो कटोगे

नरेन्‍द्र सहारण, कुरुक्षेत्र : International Gita Festival: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया नारा ‘एक रहोगे तो सेफ रहोगे’, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नारा ‘बटोगे तो कटोगे’ के बाद, अब संत समाज ने एक और नारा दिया है: ‘घटोगे तो कटोगे’। यह नारा मंगलवार को कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के तहत अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन में संतों द्वारा दिया गया। इस नारे के माध्यम से संतों ने देशभर में घट रही हिंदू आबादी और संस्कृति के क्षरण पर गहरी चिंता व्यक्त की।

सनातन संस्कृति और घटती जनसंख्या पर संतों की चिंता

 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में आयोजित इस सम्मेलन में देशभर से आए संतों ने भारतीय संस्कृति, संस्कारों और सनातन धर्म की रक्षा पर खुलकर चर्चा की। कार्यक्रम का आयोजन गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज के प्रयासों और कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड (केडीबी) के तत्वावधान में किया गया।

संतों ने इस बात पर गहरी चिंता जाहिर की कि देश के विभिन्न हिस्सों में हिंदू आबादी तेजी से घट रही है। इस कारण सनातन धर्म और उससे जुड़े रीति-रिवाजों को खतरा उत्पन्न हो रहा है। संतों का मानना है कि यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वर्ष 2050 तक हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक हो सकता है। उन्होंने इस मुद्दे को हल करने के लिए युवाओं को भारतीय संस्कृति और धर्म से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया।

मंदिरों की स्थिति पर मंथन

 

हिंदू आचार्य महासभा के महासचिव और राजकोट स्थित आर्ष विद्या केंद्र के संत परमात्मानंद महाराज ने सम्मेलन में कहा कि प्राचीन काल से ही मंदिर भारतीय संस्कृति और समाज का केंद्र रहे हैं। मंदिरों में कला, साहित्य, और न्याय प्रणाली का संवर्धन होता था। आठवीं और बारहवीं सदी के शिलालेखों में इसका विवरण मिलता है।

उन्होंने कहा कि गुलामी के कालखंड में मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया और उनकी परंपराओं को खत्म करने का प्रयास किया गया। आज स्थिति यह है कि मंदिर केवल पूजा-अर्चना का केंद्र बनकर रह गए हैं। अव्यवस्था और अन्य कारणों से युवा पीढ़ी मंदिरों और धर्म से विमुख हो रही है।

परमात्मानंद महाराज ने कहा कि मंदिरों को केवल दर्शनीय स्थल बनाने के बजाय वहां स्वच्छता और उचित व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने संत समाज से अपील की कि वे परंपराओं में समानता लाने के लिए गंभीर चर्चा करें। उन्होंने कहा, “यदि हम समय पर इस दिशा में कदम नहीं उठाएंगे, तो हमारी संस्कृति और धर्म पर बड़ा संकट आ सकता है।”

सनातन धर्म की रक्षा के लिए युवाओं को जोड़ने की अपील

 

स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि वर्तमान समय में युवाओं को भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से जोड़ना बहुत जरूरी हो गया है। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं और मंदिरों पर हो रहे हमलों को सनातन धर्म पर हमला करार दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले में संत समाज को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि “हमें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए युवाओं को जागरूक करना होगा। अगर हमारी नई पीढ़ी धर्म और परंपराओं से कट गई, तो हमारी विरासत समाप्त हो जाएगी।” उन्होंने युवाओं को धर्म से जोड़ने के लिए आधुनिक तकनीकों और सोशल मीडिया का उपयोग करने पर भी जोर दिया।

मंदिरों और तीर्थों के विकास का महत्व

 

श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि भारत का विकास तभी संभव है जब मंदिरों और तीर्थ स्थलों का विकास होगा। उन्होंने श्रीराम मंदिर के निर्माण का उदाहरण देते हुए कहा कि रामलला का भव्य मंदिर केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है।

चंपत राय ने कहा, “भारत की आत्मा तीर्थ स्थलों और मंदिरों में बसती है। देश को जीवंत और परंपराओं से संपन्न बनाए रखने के लिए इन धार्मिक स्थलों का संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है।”

बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा पर विचार

 

इस सम्मेलन में केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र शेखावत ने बांग्लादेश में हिंदुओं और मंदिरों की सुरक्षा के विषय पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि “बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं।”

शेखावत ने कहा कि संत समाज को इस दिशा में नेतृत्व करना चाहिए और बिना किसी हिंसा के प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी संत और मंदिरों के संचालक प्रतिदिन प्रार्थना करें ताकि बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं का मनोबल और धीरज बढ़ सके।

सम्मेलन का निष्कर्ष

 

अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन में संतों ने एकमत से निर्णय लिया कि सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि मंदिरों की स्थिति सुधारने, युवाओं को धर्म से जोड़ने, और धार्मिक स्थलों का संरक्षण करने के लिए संत समाज को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

सम्मेलन में आए संतों ने इस बात पर जोर दिया कि धर्म की रक्षा केवल भाषणों और नारों से नहीं होगी, बल्कि इसके लिए ठोस कदम उठाने होंगे। उन्होंने सभी संतों से आग्रह किया कि वे समाज में जागरूकता फैलाएं और युवाओं को सनातन धर्म और परंपराओं से जोड़ने के लिए प्रयास करें।

 

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