Kaithal News: बासमती धान के भाव में हो रहे उतार-चढ़ाव से किसान असमंजस में - Bharat New Media

Kaithal News: बासमती धान के भाव में हो रहे उतार-चढ़ाव से किसान असमंजस में

नरेन्‍द्र सहारण, कैथल । Kaithal News: बासमती धान के भाव में हो रहे अचानक उतार-चढ़ाव ने किसानों को गहरी चिंता में डाल दिया है। इस साल दीपावली के आसपास बासमती धान का रेट 6,300 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिली, जिससे बासमती धान का रेट घटकर 5,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। यह 1,100 रुपये की कमी किसानों के लिए बड़े आर्थिक झटके से कम नहीं है, और इस गिरावट ने उनके लिए स्थिति को बेहद कठिन बना दिया है। किसानों को अब समझ नहीं आ रहा है कि वे आगे क्या कदम उठाएं।

गांव के किसान सुरेश कुमार, दिलबाग सिंह, सतपाल और सुशील कुमार ने अपनी स्थिति बयां करते हुए बताया कि बासमती धान की इस साल पैदावार भी कम रही है। मौसम के अनिश्चित बदलाव और अन्य खेती से जुड़ी समस्याओं ने फसलों की उपज को प्रभावित किया है। पहले से ही कम पैदावार के कारण किसानों की उम्मीदें बाजार में बेहतर भाव मिलने की थीं, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब जब मंडियों में बासमती धान के दाम उम्मीद से काफी नीचे चल रहे हैं, तो किसानों के सामने एक गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।

महंगे ठेके और खर्च ने बढ़ाई समस्या

 

किसानों ने बताया कि बासमती धान की खेती के लिए उन्होंने इस साल महंगे दामों पर जमीन को ठेके पर लिया था। इसके अलावा, खेती में भारी खर्च भी करना पड़ा, जिसमें बीज, खाद, कीटनाशक और सिंचाई पर बड़ा निवेश शामिल था। किसान सुशील कुमार ने बताया, “जमीन का ठेका, महंगे इनपुट और मजदूरी की लागत सब मिलाकर हमें उम्मीद थी कि बाजार में अच्छे भाव मिलेंगे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है।” उन्होंने कहा कि अगर ऐसे ही हालात बने रहे, तो खेती उनके लिए फायदे की बजाय घाटे का सौदा बन जाएगी।

किसान सुरेश कुमार ने कहा, “हमने इतनी मेहनत और पैसे खर्च करके फसल तैयार की, लेकिन मंडियों में उचित भाव न मिलने से हम आर्थिक संकट में पड़ गए हैं। हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि फसल की लागत भी नहीं निकल रही।” किसानों का कहना है कि उनके पास फसल बेचने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, क्योंकि कर्ज और खर्चे बढ़ते जा रहे हैं।

हैफेड की खरीद बंद होने से बढ़ी समस्या

बासमती धान के भाव में गिरावट का मुख्य कारण किसानों ने हैफेड (हरियाणा स्टेट को-ऑपरेटिव सप्लाई एंड मार्केटिंग फेडरेशन) द्वारा इस साल खरीद न किए जाने को बताया है। पिछले वर्ष हैफेड ने बासमती धान की बड़ी मात्रा में खरीदारी की थी, जिससे बाजार में प्राइवेट खरीदारों को भी ऊंचे दाम देने पड़े थे। प्राइवेट खरीदारों और हैफेड के बीच प्रतिस्पर्धा ने धान की कीमतों को स्थिर और संतोषजनक बनाए रखा था। लेकिन इस वर्ष हैफेड की अनुपस्थिति के कारण प्राइवेट खरीदार अपनी शर्तों पर धान खरीद रहे हैं और किसानों को कम भाव मिल रहे हैं।

किसान दिलबाग सिंह ने कहा, “पिछले साल जब हैफेड ने खरीद की थी, तो हमें अच्छे दाम मिले थे। इस बार हैफेड की खरीदारी बंद है, जिससे बाजार में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं बची। प्राइवेट खरीदार मनमानी कर रहे हैं और हमारी मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं।” किसानों ने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करके इस समस्या का समाधान करना चाहिए।

सरकार से उम्मीदें और मांगें

किसानों का मानना है कि अगर सरकार समय रहते कदम नहीं उठाती है, तो उनकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। कई किसानों ने सुझाव दिया कि सरकार को हैफेड को फिर से बासमती धान की खरीद शुरू करने का निर्देश देना चाहिए, ताकि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ सके और उन्हें उचित भाव मिल सके। किसान सतपाल ने कहा, “हमें उम्मीद है कि सरकार हमारी परेशानी को समझेगी और हमारे लिए राहत के कदम उठाएगी। नहीं तो हमारी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो जाएगी।”

किसानों ने यह भी बताया कि बासमती धान की खेती केवल एक आमदनी का साधन नहीं है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति का आधार भी है। अगर धान के दामों में सुधार नहीं होता है, तो अगली फसल की तैयारी के लिए उनके पास पैसे नहीं बचेंगे। इससे उनकी पूरी खेती व्यवस्था पर असर पड़ेगा।

अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति

धान के भाव में उतार-चढ़ाव के पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार की भी भूमिका है। बासमती धान एक प्रमुख निर्यात उत्पाद है, और इसके दाम अंतरराष्ट्रीय मांग और आपूर्ति से प्रभावित होते हैं। हालांकि, किसानों का कहना है कि वे इन परिस्थितियों पर कोई नियंत्रण नहीं रखते और सरकार से उनके हितों की रक्षा की उम्मीद करते हैं।

भविष्य की चुनौतियां

किसानों के सामने अब भविष्य की चुनौतियां हैं। वे सोच में पड़े हैं कि क्या वे बासमती धान की खेती जारी रखें या किसी अन्य फसल की ओर रुख करें। कुछ किसानों का मानना है कि अगर यही हाल रहा, तो उन्हें अपनी खेती की योजना बदलनी पड़ेगी। लेकिन बासमती धान की खेती का वर्षों पुराना अनुभव होने के कारण वे इसे छोड़ने में भी संकोच कर रहे हैं।

सुरेश कुमार ने कहा, “हम बासमती की खेती इसलिए करते हैं क्योंकि इसकी मांग अधिक है और इसका मूल्य भी अच्छा मिलता था। लेकिन अब यह एक जोखिम बनता जा रहा है। हमें नहीं पता कि आगे क्या करना होगा।”

कुल मिलाकर बासमती धान के भाव में गिरावट ने किसानों को गहरे संकट में डाल दिया है। उनकी चिंताएं जायज हैं, क्योंकि उनके लिए यह केवल फसल का मामला नहीं है, बल्कि उनके जीवनयापन और भविष्य की योजनाओं का सवाल भी है। सरकार और संबंधित एजेंसियों को किसानों की समस्याओं पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। अगर तुरंत कोई कदम नहीं उठाया गया, तो यह संकट और भी गंभीर हो सकता है, जिससे कृषि क्षेत्र में व्यापक असंतोष फैलने की आशंका है।

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