Kaithal News: अपने स्थान पर रखा किराये का शिक्षक, विधायक के निरीक्षण में हुआ खुलासा

नरेन्द्र सहारण, कैथल। Kaithal News: कैथल जिले में राजकीय प्राथमिक स्कूल जटहेड़ी के शिक्षक जगबीर सिंह को जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सरोज दहिया ने निलंबित कर दिया है। उन पर गंभीर आरोप है कि वे अपनी अनुपस्थिति में स्कूल में पढ़ाई कराने के लिए किसी महिला को अनधिकृत रूप से नियुक्त कर बच्चों को पढ़ा रहे थे। यह मामला तब सामने आया जब पूंडरी के विधायक सतपाल जांबा ने अचानक स्कूल का दौरा किया और स्थिति का निरीक्षण किया।
विधायक की छापेमारी में खुलासा
17 नवंबर को विधायक सतपाल जांबा को सूचना मिली थी कि जटहेड़ी के सरकारी स्कूल में बच्चों की पढ़ाई नियमित शिक्षक के बजाय कोई और करवा रहा है। इसी सूचना के आधार पर उन्होंने स्कूल में औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान उन्होंने पाया कि बच्चों को एक महिला अध्यापिका पढ़ा रही थी। जब विधायक ने उससे पूछताछ की तो महिला ने बताया कि वह स्थायी अध्यापक नहीं है और उसे पंचायत ने अस्थायी रूप से छह हजार रुपये मासिक वेतन पर काम पर रखा है।
इससे हैरान होकर विधायक जांबा ने बच्चों से भी सवाल किए। बच्चों ने बताया कि उन्हें नियमित रूप से वही महिला अध्यापिका पढ़ाती हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए विधायक ने तुरंत जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय से संपर्क किया और वहां के प्रिंसिपल को मौके पर बुलाकर जांच शुरू करने का निर्देश दिया।
जगबीर सिंह की सफाई
थोड़ी देर बाद प्राथमिक अध्यापक जगबीर सिंह भी स्कूल पहुंचे। उन्होंने स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए कहा कि वे स्कूल में अकेले अध्यापक हैं और स्कूल के आठ छोटे बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी पूरी तरह से उन पर है। उन्होंने कहा कि उन्हें विभागीय कार्यों के लिए अक्सर स्कूल से बाहर जाना पड़ता है। बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, इसलिए उन्होंने पंचायत की सहमति और बीईओ (ब्लॉक शिक्षा अधिकारी) के मौखिक आदेश के आधार पर एक अस्थायी महिला अध्यापिका को नियुक्त किया था। इस महिला अध्यापिका को वे अपने निजी वेतन से छह हजार रुपये मासिक भुगतान करते थे। उन्होंने दावा किया कि यह कदम बच्चों की शिक्षा के हित में उठाया गया था ताकि वे पढ़ाई से वंचित न रह जाएं।
विधायक जांबा की प्रतिक्रिया
विधायक सतपाल जांबा ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि सरकारी शिक्षक के कर्तव्यों में लापरवाही और अपने स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति से बच्चों को पढ़वाना न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह बच्चों के शैक्षिक अधिकारों का भी हनन है। उन्होंने तत्काल जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी को पूरे मामले की विभागीय जांच करने के आदेश दिए। विधायक ने यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इस तरह की लापरवाही भविष्य में फिर से न हो।
जांच के निष्कर्ष और निलंबन
जांच के दौरान पाया गया कि जगबीर सिंह ने अपने स्थान पर अस्थायी रूप से एक महिला अध्यापिका को रखकर बच्चों को पढ़वाया। जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सरोज दहिया ने पुष्टि की कि शिक्षक जगबीर सिंह ने पंचायत की अनुमति लेकर और बीईओ के मौखिक आदेश का हवाला देकर यह व्यवस्था की थी, लेकिन यह विभागीय नियमों का उल्लंघन था। इसके परिणामस्वरूप उन्हें निलंबित कर दिया गया है।
जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी का बयान
जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सरोज दहिया ने कहा, “जांच में यह स्पष्ट हो गया है कि जगबीर सिंह ने अपने स्थान पर एक महिला को अध्यापन कार्य के लिए रखा हुआ था, जो नियमों के खिलाफ है। सरकारी शिक्षक होने के नाते उन्हें यह अधिकार नहीं है कि वे किसी और को अपनी जिम्मेदारी सौंपें। इस तरह की लापरवाही के लिए विभागीय कार्रवाई जरूरी है।”
जगबीर सिंह का पक्ष
अपनी सफाई में जगबीर सिंह ने कहा, “मैं स्कूल में अकेला अध्यापक हूं। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो, इसलिए मैंने पंचायत की सहमति से एक महिला टीचर को रखा था। इसका वेतन मैं अपनी जेब से देता था। कई बार विभागीय कार्यों के लिए मुझे बाहर जाना पड़ता है, ऐसे में छोटे बच्चों को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता। यह कदम मैंने बच्चों के हित में उठाया था।”
शिक्षा विभाग की सख्ती और आगे की कार्रवाई
इस प्रकरण ने शिक्षा विभाग को सतर्क कर दिया है। अधिकारियों ने कहा है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई से संबंधित ऐसी लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और सभी शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे अपने कर्तव्यों का पालन पूरी ईमानदारी और अनुशासन के साथ करें।
वहीं, इस घटना ने शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत को भी उजागर किया है। जहां एक ओर शिक्षकों की कमी और जिम्मेदारियों का बोझ स्पष्ट होता है, वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बच्चों की शिक्षा में कोई बाधा न आए।
समाज में उठे सवाल
इस घटना ने ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों की स्थिति और शिक्षकों की जिम्मेदारियों को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या वास्तव में शिक्षकों पर इतना बोझ है कि उन्हें इस तरह के कदम उठाने पड़ते हैं? या फिर यह पूरी तरह से एक लापरवाही का मामला है? शिक्षा विभाग को इन सवालों के जवाब ढूंढने होंगे और सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों।
इस पूरे मामले से यह स्पष्ट हो गया है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति और बच्चों की पढ़ाई सुनिश्चित करने के लिए और अधिक सख्ती और निगरानी की जरूरत है। विधायक द्वारा उठाया गया यह कदम भविष्य में शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी साबित हो सकता है।
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