Karni Mata Temple : दुनिया का एकमात्र मंदिर जहां देवी पूजा के दौरान चूहों को लगाया जाता है विशेष भोग

बीकानेर, बीएनएम न्यूजः karni mata mandir bikaner शक्ति के महापर्व पर इन दिनों देश के कोने-कोने में स्थित पावन माता के पावन शक्तिपीठों एवं सिद्धपीठों पर भक्तगण देवी दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। देवी के तमाम चमत्कारी मंदिरों में से एक है बीकानेर शहर में स्थित करणी माता का मंदिर। चमत्कारों से भरा लोगों की आपार श्रद्धा का यह शक्तिपीठ बीकानेर शहर से 32 किलोमीटर दूर देशनोक गांव में है। माता करणी के पावन धाम की बात करें, तो यह विश्व की एकमात्र जगह है, जहां बड़ी मात्रा में चूहे पाए जाते हैं।
देवी के सेवक माने जाते हैं चूहे
सनातन परंपरा में चूहे को भले ही गणपति की सवारी माना जाता है, लेकिन यह विश्व का एकमात्र देवी मंदिर है, जहां पर चूहों का संबंध देवी से जुड़ा हुआ है। इन चूहों को करणी माता के सेवक के रूप में जाना जाता है।
#WATCH राजस्थान: चैत्र नवरात्रि के पहले दिन बीकानेर के करणी माता मंदिर में भक्तों ने पूजा-अर्चना की।
बीकानेर के करणी माता मंदिर में चूहों को भोग लगाने की मान्यता है। pic.twitter.com/BijVjsMF2d
— ANI_HindiNews (@AHindinews) April 9, 2024
चूहों को काबा कहकर बुलाते हैं लोग
देश-दुनिया में यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर में पाए जाने वाले हजारों हजार चूहों को स्थानीय लोग काबा कहकर बुलाते हैं। पूरे मंदिर प्रांगण में तकरीबन 20-25 हजार से ज्यादा चूहे रहते हैं। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ये किसी भी श्रद्धालु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। इन चूहों के बीच में यदि किसी को सफेद चूहे दिख जाता है तो मान्यता है कि उसकी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी।
माता करणी के मंदिर में चूहे लगाते हैं भोग
माता को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को यहां पर चूहे भोग लगाते हैं और लोग उसे प्रसाद मान ग्रहण करते हैं। चूहों के लिए लोग यहां पर एक बड़ी सी परात में खाने के लिए मूंगफली और दूध आदि देते हैं। माता को चढ़ने वाले प्रसाद पर पहला अधिकार इन्हीं चूहों को होता है।
कुछ ऐसे हुआ करणी माता का अवतरण
करणी माता के अवतरण के बारे में लोगों की मान्यता है कि लगभग साढ़े छः सौ साल पहले माता ने एक चारण परिवार में बालिका रिधु बाई के रूप में जन्म लिया था। माता के मंदिर में पूजा अर्चना भी चारण लोगों द्वारा ही की जाती है। मान्यता है कि किसी भी चारण की मृत्यु के पश्चात उसका पुर्नजन्म काबा यानी चूहे के रूप में होता है। फिर बाद में वही काबा अपनी मृत्यु के बाद किसी चारण परिवार में जन्म लेता है। यही कारण है कि काबा या फिर कहें चूहों को मंदिर के भीतर काफी आदर के साथ देखा जाता है।
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