कैथल में महंत का निधन: 35 साल से दूध पर जीवन यापन, अंतिम दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी

पंचगामा मंदिर के मुख्य महंत श्री राम गिरि महाराज।
नरेंद्र सहारण, कैथल/पूंडरी : Kaithal News: हरियाणा के कैथल जिले की पूंडरी तहसील के अंतर्गत ढांड कस्बे में स्थित ऐतिहासिक पंचगामा मंदिर के मुख्य महंत तपोनिष्ठ संत श्री राम गिरि जी महाराज सोमवार तड़के ब्रह्मलीन हो गए। वे श्री महंत आह्वान अवान अखाड़े के एक प्रतिष्ठित संत थे और पिछले 35 वर्षों से केवल दूध का सेवन कर जीवनयापन करने के कारण ‘दुधाधारी बाबा’ के रूप में संपूर्ण क्षेत्र में विख्यात थे। 87 वर्षीय महंत जी पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे और करनाल के एक निजी अस्पताल में उनका उपचार किया जा रहा था, जहां आज प्रातः लगभग 2 बजे उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके ब्रह्मलीन होने की खबर फैलते ही क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई और उनके अंतिम दर्शनों के लिए मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। दोपहर 12 बजे के बाद मंदिर परिसर में ही उन्हें भू-समाधि दी जाएगी, जिसकी तैयारियां पंचगांव के निवासियों और साधु समाज के सहयोग से चल रही हैं।
35 वर्षों की अनवरत दुग्ध-साधना
महंत श्री राम गिरि जी महाराज का जीवन त्याग, तपस्या और ईश्वर-भक्ति का अप्रतिम उदाहरण था। पिछले साढ़े तीन दशकों से अधिक समय से उन्होंने अन्न का त्याग कर केवल दूध को ही अपने आहार के रूप में ग्रहण किया था। यह कठोर साधना उनके आत्म-नियंत्रण, वैराग्य और आध्यात्मिक संकल्प शक्ति का परिचायक थी। उनकी इस असाधारण जीवनशैली के कारण ही भक्तगण उन्हें श्रद्धापूर्वक ‘दुधाधारी बाबा’ कहकर पुकारते थे। उनका मानना था कि सात्विक आहार, विशेषकर दूध, मन और शरीर को शुद्ध रखता है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति में सहायता मिलती है। उनकी यह कठिन तपस्या न केवल उनके अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत थी, बल्कि आमजन में भी उनके प्रति अगाध श्रद्धा और कौतूहल का भाव उत्पन्न करती थी। 87 वर्ष की आयु में भी उनकी दिनचर्या और आध्यात्मिक ऊर्जा देखने योग्य होती थी, हालांकि विगत कुछ महीनों से शारीरिक अस्वस्थता ने उन्हें घेर लिया था।
पंचगामा मंदिर: पांच गांवों की आस्था का केंद्र
पंचगामा मंदिर, जहां महंत श्री राम गिरि जी महाराज ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा सेवा और साधना में व्यतीत किया अपने आप में एक अनूठा देवस्थान है। यह मंदिर किसी एक गांव की संपत्ति न होकर, पांच गांवों – कौल, खेड़ी, साकरा, धेरडू और संगरोली – की साझा भूमि पर स्थित है। यह मंदिर मां भगवती को समर्पित है और इन पांचों गांवों के निवासियों की सामूहिक आस्था और एकता का प्रतीक है। महंत जी इस मंदिर के मुख्य अधिष्ठाता के रूप में न केवल पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करते थे, बल्कि इन पांचों गांवों के लोगों के बीच एक आध्यात्मिक सेतु का भी कार्य करते थे। उनके सान्निध्य में मंदिर परिसर एक जीवंत आध्यात्मिक केंद्र बन गया था, जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु शांति और मार्गदर्शन की तलाश में आते थे। मंदिर की व्यवस्थाओं और उसके विकास में महंत जी का योगदान अविस्मरणीय माना जाता है।
अंतिम सफर: बीमारी और महाप्रयाण
संगरोली गांव के सरपंच प्रतिनिधि श्री जितेंद्र ने महंत जी के स्वास्थ्य और अंतिम समय के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि महंत जी पिछले काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था। पहले उनका इलाज पटियाला के एक अस्पताल में चल रहा था, लेकिन जब स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ, तो उन्हें बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के लिए करनाल के प्रतिष्ठित अमृतधारा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां डॉक्टरों की एक टीम उनकी निरंतर देखभाल कर रही थी, लेकिन विधि के विधान को कौन टाल सकता है। रविवार और सोमवार की मध्यरात्रि, लगभग 2 बजे, उन्होंने नश्वर देह का त्याग कर दिया और ब्रह्म में लीन हो गए।
अंतिम दर्शनों को उमड़ी भीड़
जैसे ही महंत श्री राम गिरि जी महाराज के ब्रह्मलीन होने की खबर फैली, पंचगामा मंदिर और आसपास के क्षेत्रों में शोक की लहर व्याप्त हो गई। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शनों के लिए मंदिर परिसर में रखा गया। अपने प्रिय संत के अंतिम दर्शन पाने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। कैथल, कुरुक्षेत्र, करनाल, जींद और पंजाब के नजदीकी क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में भक्तगण, महिलाएं, पुरुष, बच्चे और वृद्ध, सभी भारी मन और नम आंखों के साथ मंदिर पहुंचने लगे। विभिन्न अखाड़ों और मठों से जुड़े साधु-संत भी अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने और अंतिम विदाई देने के लिए पहुंचने लगे। मंदिर परिसर “श्री राम गिरि जी महाराज अमर रहें” और अन्य भक्तिमय जयकारों से गूंज उठा, हालांकि इस जयघोष में बिछोह का दर्द स्पष्ट रूप से झलक रहा था। हर कोई उस दिव्य आत्मा को नमन करना चाहता था, जिसने अपना संपूर्ण जीवन समाज के आध्यात्मिक उत्थान और ईश्वर की सेवा में समर्पित कर दिया।
भू-समाधि: संतों की प्राचीन परम्परा
हिंदू संत परम्परा में, विशेषकर दशनामी सन्यासी अखाड़ों से जुड़े सिद्ध संतों के लिए दाह संस्कार के स्थान पर भू-समाधि की परम्परा है। यह माना जाता है कि ऐसे संत अपनी साधना और तप के बल पर जीवनकाल में ही आत्म-साक्षात्कार कर लेते हैं और उनका शरीर मृत्यु के उपरांत भी एक विशेष ऊर्जा और चैतन्य का केंद्र बना रहता है। महंत श्री राम गिरि जी महाराज को भी इसी परम्परा के अनुसार पंचगामा मंदिर परिसर में ही भू-समाधि दी जाएगी। इस प्रक्रिया में, उनके नश्वर शरीर को जमीन के अंदर ध्यान की मुद्रा, जैसे शवासन या पद्मासन, में स्थापित किया जाएगा। यह स्थल भविष्य में उनके अनुयायियों के लिए एक पवित्र समाधि स्थल और प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
भू-समाधि की प्रक्रिया की तैयारियां पंचगांव के निवासियों, सरपंचों और मंदिर से जुड़े सेवादारों के सक्रिय सहयोग से चल रही हैं। समाधि के लिए उचित स्थान का चयन कर उसे विधि-विधानपूर्वक तैयार किया जा रहा है। दोपहर 12 बजे के बाद वैदिक मंत्रोच्चार और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ भू-समाधि की प्रक्रिया आरंभ होने की सूचना है। इस दौरान विभिन्न अखाड़ों के प्रतिनिधि संत, स्थानीय गणमान्य व्यक्ति और हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहेंगे।
एक युग का अंत, एक विरासत का आरंभ
महंत श्री राम गिरि जी महाराज का ब्रह्मलीन होना न केवल पंचगामा क्षेत्र के लिए, बल्कि व्यापक संत समाज और उनके अनगिनत अनुयायियों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से निस्वार्थ सेवा, कठोर तपस्या और अटूट ईश्वर-निष्ठा का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। उनका सरल स्वभाव, उनकी मृदु वाणी और उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शन ने अनगिनत लोगों के जीवन को सकारात्मक दिशा प्रदान की।
यद्यपि उनकी भौतिक उपस्थिति अब हमारे बीच नहीं होगी, तथापि उनकी शिक्षाएं, उनके आदर्श और उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा पंचगामा मंदिर के कण-कण में और उनके भक्तों के हृदय में सदैव जीवंत रहेगी। उनके द्वारा जलाई गई अध्यात्म की लौ आने वाले समय में भी समाज को आलोकित करती रहेगी। उनके उत्तराधिकारी और मंदिर प्रबंधन समिति के समक्ष अब उनके द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों को बनाए रखने और उनके अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होगी।
आज जब उन्हें भू-समाधि दी जाएगी, तो यह केवल एक शरीर का विलयन नहीं होगा, बल्कि एक महान संत की गौरवशाली जीवन यात्रा का आध्यात्मिक समापन होगा, जिसकी गूंज और प्रेरणा अनंत काल तक महसूस की जाती रहेगी।