मोहम्मद शमी के आने से धारदार हुआ भारतीय आक्रमण, जानें अमरोहा से भारतीय टीम तक का सफर

बीएनएस न्यूज। क्रिकेट विश्वकप 2023 में मोहम्मद शमी के आने से भारतीय आक्रमण और धारदार हो गई है। उन्होंने एकदिवसीय विश्व कप के इतिहास में 45 विकटों के साथ जहीर खान के 44 विकेट का रिकार्ड तोड़ दिया है। शमी ने उत्तर प्रदेश के अमरोहा से पश्चिम बंगाल से भारतीय क्रिक्रेट टीम तक का सफर तय किया है। आइये जानते हैं उस सफर के बारे में-

नहीं पूरा हुआ तौसीफ अली का तेंज गेंदबाज बनने का सपना
अमरोहा के घरेलू टूर्नामेंट में तौसीफ अली नाम के एक तेज गेंदबाज का बोलबाला था। तौसीफ तेज गेंदबाजी का शौक और हुनर दोनो रखते थे। लोग सलाह देते थे कि क्लब में जाओ, ट्रेनिंग करो घरेलू में जा सकते हो। पर तौसीफ अली किसान परिवार से थे, घरेलू या नेशनल के लायक तैयारी के लिए न पैसे थे, ना ही उम्र बची थी। एक समय आया जब तौसीफ अली ने स्वीकार कर लिया कि शायद ये खेती किसानी ही उनका मुकद्दर है, प्रोफेशनल क्रिकेट के लिए देर हो चुकी है। तौसीफ अली भारतीय टीम के तेज गेंदबाज का सपना दिल में दफन कर अपनी आम जिंदगी में लौट आए। शादी हुई, खेती किसानी से परिवार पाला। पांच बेटे हुए और सबके अंदर क्रिकेट को लेकर दीवानगी पैदा की।

तौसीफ अली का सपना पूरा हुआ
तौसीफ अली को मालूम था कि उनसे कहा- कहा गलती हुई थी, क्या-क्या नही हुआ जिसकी वजह से उन्हें अपने सपने मारने पड़े। वो अपने बच्चों के साथ ऐसा कुछ नहीं होने देना चाहते थे। 15 साल तक अपने बेटे को गेंदबाज बनने के लिए खुद ट्रेन करते रहे, अपने तर्जुबे अपनी गलतियों का निचोड़ उन्होंने अपने बेटे की राह में रख दिए। बेटे को बस चलना था और वो हासिल करना था जिसे हासिल करने की जद्दोजहद का मौका भी उसके अब्बू को हासिल नहीं हुआ था। 15 साल की उम्र तक बेटे को ट्रेन करने के बाद तौसीफ अली सारी जमा पूंजी इकट्ठा करके अपने बेटे को लेकर मुरादाबाद की एक क्रिकेट एकेडमी में कोच बदरुद्दीन के पास लेकर गए। कोच के सामने बेटे ने गेंद फेंकना शुरू किया तो बदरुद्दीन ने तुरंत उसे अपना शागिर्द कुबूल कर लिया। वो लड़का इस कदर मेहनती था कि उसने एक दिन भी ट्रेनिंग में देर नहीं की और न ही एक भी दिन छोड़ा।

मुरादाबाद में नहीं हुआ शमी का चयन
मुरादाबाद में ट्रेनिंग के दौरान अगर कोई मैच खत्म होता तो वो लड़का पुरानी इस्तेमाल हुई गेंद मांगने खड़ा हो जाता, वजह पूछी गई तो बताया कि इन पुरानी गेंदों से मैं रिवर्स स्विंग की प्रैक्टिस करूंगा। बदरुद्दीन को पूरा यकीन था कि इस लड़के को अंडर 19 के ट्रायल में तो सिलेक्टर उठा ही लेंगे। इसी उम्मीद के साथ शमी ने ट्रायल दिया, सोच बदरुद्दीन के मुताबिक चयनकर्ता के पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण मोहम्मद शमी को मौका नहीं दिया गया। बदरुद्दीन से कहा गया कि अगले साल आइए इसे लेकर, लड़के में जान है, कब तक दूर रखेंगे चयनकर्ता इसे भारतीय कैप से।

शमी का कोलकाता जाना काम आया
बदरुद्दीन दूरदर्शी आदमी थे। बोले, इस लड़के का एक साल और दाव पर नहीं लगाना है। उन्होंने शमी के पिता तौसीफ अली से बात की और कहा कि इसे आप कोलकाता भेजिए। वहां क्लब खेलेगा तो आज नहीं तो कल स्टेट टीम में आ जायेगा। तौसीफ अली के पास ये जुआ खेलने की सिर्फ एक वजह थी कि अपने बेटे की काबिलियत और जुनून पर उनका भरोसा था।
कोलकाता आकर उस लड़के ने एक क्लब ज्वाइन कर लिया, पर स्टेट और नेशनल टीम का रास्ता दूर भी था और मुश्किल भी। जुनून के भरोसे वो बंगाल तो पहुंच गया, पर जुनून न तो पेट भरता है न सर पर छत रखता है। पर दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो जुनून और काबिलियत ही ढूंढते हैं लोगो में, ऐसे ही एक शख्स थे देवव्रत दास, जो की उस वक्त बंगाल क्रिकेट के सहायक सचिव की हैसियत पर थे। वो उस लड़के की काबिलियत से इतने प्रभावित हुए कि कोलकाता में बेघर उस लड़के को अपने साथ रहने के लिए रख लिया। फिर उन्होंने बंगाल के एक चयनकर्ता बनर्जी को उस लड़के की प्रतिभा पर नजर रखने को कहा।

बंगाल की अंडर 22 की टीम में चयन
बनर्जी ने लड़के को गेंद फेंकते देखा और उसे बंगाल की अंडर 22 की टीम में चयन कर लिया। देवदत्त दास से जब उस लड़के पर ऐसी मेहरबानी की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि “इस लड़के को रुपया पैसा नहीं चाहिए, इसे बस एक चीज नजर आती है वो है पिच के आखिर में गड़े हुए तीन स्टंप। स्टंप से गेंद की टकराने की आवाज उस लड़के को इतनी पसंद है कि उसके ज्यादातर विकेट बोल्ड आउट ही है।” वहा से निकलकर उस लड़के ने मोहन बागान क्लब ज्वाइन किया, वहां ईडन गार्डन के नेट्स में उसने सौरव गांगुली को गेंदबाजी की। सौरव के साथ भी वही हुआ, जो अब तक हर उस इंसान के साथ हो रहा था जो उस लड़के को गेंद फेंकते हुए देख रहा था।गांगुली प्रभावित बिना रह सके और फिर उनके दखल से शमी को बंगाल की 2010–11 की रणजी टीम में चुन लिया गया।

मेहनत रंग लाई
कुछ साल की मेहनत और जद्दोजहद के बाद 6 जनवरी 2013 के दिन पाकिस्तान के खिलाफ इस लड़के को भारतीय टीम की डेब्यू कैप दी गई। जिसे पहनने के बाद आज तक वो लड़का उस टोपी नंबर 195 का रुतबा दिन ब दिन बढ़ाए जा रहा है। हजारों दर्शको के बीच में, वो लड़का पूरे दम के साथ जब दौड़ना शुरू करता था तो उसके अंदर एक ही लालच रहता, किसी तरह गेंद स्टंप को लगे और वो टक का साउंड आए जिसे सुनकर ही इतने साल वो सांस लेता रहा है। जिंदगी की तमाम उतार चढ़ाव, मुश्किलों परेशानियों के बावजूद आज भी अमरोहा के तेज गेंदबाज तौसीफ अली का बेटा मोहम्मद शमी जर्सी नंबर 11 पहन कर जब रनअप पर दौड़ना शुरू करता है तो उसके पीछे पीछे उसके अब्बू का सपना, कोच बदरुद्दीन की लगन, देवदत्त दास की इंसानियत सब कुछ साथ साथ चलता है।

 

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