मातृशक्ति में विश्व का पथ प्रदर्शित की शक्ति, समाज को सीता जैसे चरित्र की आवश्यकता : लीना गहाणे

नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर (मौसी जी ) के जन्मदिवस के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में मेधाविनी सिंधु सृजन दिल्ली प्रांत द्वारा एक भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख लीना गहाणे थीं। नई दिल्ली की नवनिर्वाचित सांसद बांसुरी स्वराज कार्यक्रम की मुख्य अतिथि, दिल्ली विश्व विद्यालय की कुलानुशासक रजनी अब्बी जी विशिष्ट अतिथि रहीं तथा प्रोफ़ेसर गीता भटट कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
माता के दृढ़ और आदर्श व्यक्तित्व का प्रभाव
लीना जी ने मौसी जी के व्यक्तित्व की सूक्ष्म और विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि मौसी जी पर उनकी माता के दृढ़ और आदर्श व्यक्तित्व का प्रभाव है। मातृशक्ति में इतनी शक्ति है कि वह विश्व का पथ प्रदर्शित कर सकें। उन्होंने कहा कि आज समाज को सीता जैसे चरित्र की आवश्यकता है। उन्होंने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन के विविध पक्षों को उजागर किया।
नारी के पास ही नव समाज की रचना का वरदान
बांसुरी स्वराज जी ने कहा कि नारी शक्ति अनंत है। इतिहास पुराण और वर्तमान में इसका प्रमाण का पग पग पर मिलता है। नारी के पास ही नव समाज की रचना का वरदान है। उन्होंने कहा की स्त्री सशक्तिकरण,स्त्री कीआर्थिक जागरूकता और राजनीतिक सहभागिता के बिना संभव नहीं है।
स्त्रियां ‘पुरुष आचरण’ के अनुकरण से बचें
गीता भट्ट जी ने स्त्रियों को ‘पुरुष आचरण’ के अनुकरण से बचने को कहा। रजनी अब्बी जी कहा की यदि हम सब अपना अपना काम करते चलें तो समाज के सभी काम सुनिश्चित हो जाएंगे। मौसी जी के संकल्प को दोहराने भारी संख्या में सेविकाए उपस्थित थीं
लक्ष्मीबाई केलकर ने महिलाओं में बोया आत्मनिर्भता का बीज
लक्ष्मीबाई केलकर ने 1936 में राष्ट्रसेविका समिति की स्थापना कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया। उन्हें स्वयं के लिए और राष्ट्र के लिए सदैव खडे़ रहने का संकल्प दिलाया। राष्ट्रसेविका समिति के माध्यम से लक्ष्मीबाई केलकर ने सुसंस्कृत और आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न संजोया और उसे साकार भी करवाया।
13 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान जाने की हिम्मत कौन कर सकता था? वह भी कोई महिला? सोचने मात्र से ही रोंगटे खडे़ हो जाते हैं, लेकिन विषम परिस्थितियों में भी एक साहसी महिला कराची जाकर हिंदू महिलाओं को ढांढ़स बंधाने और उनके प्राणों की रक्षा करने का प्रण करती है। यह साहसी महिला थीं लक्ष्मीबाई केलकर।
वेणुताई के साथ वह कराची हवाई अड्डे पर उतरती हैं। वह वहां की सेविका बहनों के घर जाती हैं और उनका हौसला बढ़ाती हैं। 15 अगस्त, 1947 को कराची में लक्ष्मीबाई चौदह सौ सेविकाओं की एक सभा करके उनमें हिम्मत जगाती हैं और उनके सुरक्षित भारत पहुंचने की योजना बनाती हैं।
वह कहती थीं कि स्त्री राष्ट्रशक्ति का एक मजबूत स्तंभ है। यदि स्त्री मजबूत होगी तो हमारा राष्ट्र भी मजबूत होगा। लक्ष्मीबाई केलकर मातृत्व, नेतृत्व और कतृत्व का अनूठा संगम थीं।
सीता माई के होने से ही प्रभु श्रीराम की संपूर्णता
शादी के बाद लक्ष्मीबाई ने रामायण आधारित प्रवचन देना प्रारंभ कर दिया। वह कहती थीं कि हर घर में प्रभु श्रीराम तभी आएंगे, जब हर घर में सीता माई होंगी। सीता माई के होने से ही प्रभु श्रीराम की संपूर्णता होती है। उन्होंने प्रवचनों के माध्यम से रामायण और महाभारत को तत्कालीन समय से जोड़ते हुए युवा पीढ़ी तक उसके सार को पहुंचाया। इसको सुनियोजित तौर पर आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने राष्ट्रसेविका समिति की स्थापना की। उन्होंने सेविका बहनों को कई सूत्र दिए, जो आगे चलकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में और राष्ट्र के प्रति प्रेम जगाने में मददगार साबित हुए।
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