जौनपुर के इस गांव में मुस्लिम परिवारों ने अपने नाम के साथ जोड़ने लगे दुबे, तिवारी, पांडेय; वजह जानकर हर कोई हैरान

जौनपुर, बीएनएम न्यूजः जौनपुर जिले के केराकत तहसील के डेहरी गांव में कुछ मुस्लिम परिवारों ने अपने नाम के साथ हिंदू टाइटल जोड़ना शुरू कर दिया है। गांव में 30 से 35 मुसलमान परिवार अपने नाम के साथ दुबे, तिवारी, ठाकुर, कायस्थ टाइटिल जोड़ रहे हैं। इस परिवर्तन से संबंधित व्यक्तियों के परिवारवालों और रिश्तेदारों को दुबई में धमकियां मिल रही हैं।

केराकत तहसील का गांव डेहरी अचानक सुर्खियों में आ गया है। जब इस गांव के नौशाद अहमद ने शादी के कार्ड पर नौशाद अहमद दुबे लिखकर सभी का ध्यान खींचा। उनका कहना है कि उनके पूर्वज पूर्व में हिंदू थे, इसलिए अब वह अपने नाम के साथ अपने गोत्र का नाम भी लिख रहे हैं। इसे लेकर पूरे इलाके में चर्चा का बाजार गर्म है।

सात पीढ़ी पहले मुसलमान में हुआ था परिवर्तन

नौशाद अहमद दुबे ने बताया कि सात पीढ़ी पहले हमारे पूर्वजों में से एक लाल बहादुर दुबे से पीढ़ियां मुसलमान में परिवर्तित हो गई थीं। वह अपना नाम लाल मोहम्मद लिखने लगे। नौशाद के पूर्वज आजमगढ़ से आए थे। पूवर्जी के बारे में जानकारी होने पर उन्होंने कहा कि एक हिंदू संस्था से जुड़कर हिंदू-मुस्लिम धर्म के बीच एक सौहार्द के माहौल में रह रहे हैं।

इन परिवारों ने कही ये बात

गांव के दूसरे निवासी सैय्यद शांडिल्य, अब्दुल्लाह दुबे, इरशाद पांडेय, ठाकुर गुफरान और इसरार अहमद दुबे का कहना है कि हम सभी से अपील करेंगे कि अपनी जड़ों से जुड़ें। नौशाद ने बताया कि भारत में तो नहीं, लेकिन विदेशों में रह रहे भतीजे और अन्य रिश्तेदारों को हमारे टाइटल बदलने के मामले को लेकर धमकियां मिल रही हैं, जिसका हमें कोई खौफ नहीं है।

70 मुस्लिम लोगों ने लगाया ब्राह्मण टाइटिल

जौनपुर मुख्यालय से 35 किमी दूर केराकत तहसील का गांव डेहरी है। यहां कुल 70 घर हैं। यहां मुस्लिमों की आबादी करीब 7 हजार है। करीब 5 हजार के हिंदू हैं। गांव के करीब 70 लोगों ने अपना सरनेम बदला है। वे नाम के आगे दुबे और तिवारी जैसे ब्राह्मण सरनेम लगा रहे हैं। गांव के नौशाद अहमद अब नौशाद अहमद दुबे हो गए हैं।

मेरे पिता लाल बहादुर दुबे से शेख हुए थे

नौशाद बताते हैं- हमें अपने हिंदू होने का पता करीब 2 साल पहले चला। हमने अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी इकट्ठा की, तो पता चला कि मेरे पिता लाल बहादुर दुबे से लाल बहादुर शेख हुए थे। वो लोग आजमगढ़ के रहने वाले थे। इसके बाद नौशाद अहमद ने अपने नाम के आगे दुबे लगा लिया। नौशाद अब गायों की सेवा भी करते हैं। हालांकि नौशाद के घर के किसी अन्य सदस्य ने अपना सरनेम चेंज नहीं किया है।

कुर्ता-पाजामा को हमने मान लिया था इस्लामी लिबास

नौशाद अहमद दुबे कहते हैं- हम अपनी जड़ों से जुड़ेंगे तो हमारा सौहार्द बढ़ेगा। इससे देश मजबूत होगा। इसलिए हम लोगों से कह रहे हैं कि अपनी जड़ों को पता करिए और जड़ों के टाइटल को अपनाइए। ये शेख, पठान, मिर्जा, सैयद हमारे भारतीय टाइटिल नहीं हैं। ये विदेशियों के लाए गए टाइटिल हैं। अब किन परिस्थितियों में लोगों ने अपनाया है और क्यों अपनाया, यह तो हमें नहीं पता है। लेकिन लोगों को अपने जड़ों के टाइटिल को ही अपनाना चाहिए, जिससे देश और समाज का भला हो सके।

मुस्लिमों ने संस्कृति को छोड़कर दरिद्रता अपना ली

नौशाद कहते हैं- मुसलमानों के अंदर जो भ्रांतियां हैं, उसके चलते हम तो यही कहेंगे कि हमने अपनी संस्कृति और सभ्यता को छोड़कर दरिद्रता अपना ली है। हमारे पास अपना कुछ नहीं बचा। न टाइटिल बचा, नाम बचा और न ही संस्कार बचे। कुर्ता-पाजामा को हमने इस्लामी लिबास मान लिया। बिरियानी मुगलई खाने को हमने इस्लाम का खाना मान लिया, तो इससे हमें दूर होना होगा। हम भारतीय रहकर भी इस्लाम और मुस्लिम धर्म को फॉलो कर सकते हैं।

वहीं, इसी गांव में शेख अब्दुल्ला अब शेख अब्दुल्ला दुबे हो गए हैं। अब्दुल्ला ने बताया कि उन्होंने भी अपने पूर्वजों की खोज की और अब दुबे सरनेम रख लिया है।

हमारे पूर्वज भी हिंदू थे, नहीं बदला टाइटिल

इसी गांव के एहतेशाम अहमद बताते हैं- मेरे भी पूर्वज हिंदू ब्राह्मण थे, लेकिन अभी मैंने अपने नाम के आगे टाइटल नहीं लगाया है। डेहरी गांव में कई घर ऐसे हैं, जहां यमुस्लिम लोग अपने नाम के आगे दुबे, तिवारी जैसे टाइटल लगाने लगे हैं। साथ ही गायों की सेवा करने लगे हैं।

ग्राम प्रधान फरहान ने बताया- पुरखों को खोजते हुए करीब 4 पीढ़ी पीछे गए, जिसमें उनके पुरखे हिंदू निकले। इसको देखते हुए उन्होंने हिंदू टाइटिल लगा लिया है। इस काम में हम उनके साथ खड़े हैं। गांव में करीब 6 हजार मुस्लिम आबादी है। इसमें से करीब 70 लोगों ने अपने नाम के आगे दुबे, तिवारी और पांडेय लगा रखा है।

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