National Seminar in JDMC: जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में “सांस्कृतिक एकता और भारतीय भाषाएं” पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

नई दिल्ली, बीएनएम न्‍यूज : National Seminar in JDMC: दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज की भारतीय भाषा समिति द्वारा में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का विषय “सांस्कृतिक एकता और भारतीय भाषाएं” रखा गया था, जो आज के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक और विचारोत्तेजक है। इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषाओं की विविधता को समझना, उनके माध्यम से सांस्कृतिक एकता को मजबूत करना, और भाषा के जरिए देश की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को प्रोत्साहित करना था।

एकता की शक्ति

कार्यक्रम का आरंभ कॉलेज की प्राचार्या प्रो. स्वाति पाल के स्वागत भाषण के साथ हुआ। उन्होंने अपनी बात को शुरू करते हुए भारत की भाषाई विविधता को हमारी एकता की शक्ति बताया और इसे सामाजिक सद्भाव का ऐतिहासिक आधार करार दिया। उनके वक्तव्य ने उपस्थित सभी लोगों में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया, जिसके चलते संगोष्ठी की गरिमा बढ़ गई।

प्रो. स्वाति पाल ने अपने उद्घाटन भाषण में भारतीय भाषाओं की सांस्कृतिक और सामाजिक भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विविध भाषाएं केवल भाषाई संवाद का माध्यम नहीं हैं, बल्कि ये विभिन्न संस्कृतियों की पहचान और उनकी संरक्षा का भी साधन हैं।

विशेषज्ञों की उपस्थिति और उनके विचार

संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा, जिसमें कई प्रमुख वक्ताओं ने विचार रखे। इनमें प्रसिद्ध भाषाविद् और वरिष्ठ आचार्य प्रो. पूरनचंद टंडन, रामानुजन कॉलेज के प्राचार्य प्रो. रसाल सिंह, और केंद्रीय हिंदी संस्थान व केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक प्रो. सुनील बाबूराव कुलकर्णी शामिल थे। उन्होंने अपने वक्तव्यों में भारतीय भाषाओं के इतिहास, विकास और उनकी वर्तमान चुनौतियों पर विस्तृत चर्चा की।

प्रो. पूरनचंद टंडन ने अपने विचारों में यह बताया कि भारतीय भाषाएं न केवल विचारों का आदान-प्रदान करती हैं, बल्कि एक समरस और समृद्ध समाज की नींव भी रखती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भाषाई विविधता हमारे देश की सबसे महत्वपूर्ण संपत्तियों में से एक है, और इसे संरक्षित करना संवैधानिक दायित्व है।

मुख्य सत्र में विद्वानों की भागीदारी

संगोष्ठी के पहले सत्र में कई प्रतिष्ठित विद्वानों ने अपने-अपने विचार साझा किए। इस सत्र का मुख्य आकर्षण डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह का भाषण था, जिसमें उन्होंने भारतीय भाषाओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर विचार किया। डॉ. धर्मेंद्र ने बताया कि कैसे विविध भारतीय भाषाएं हमारी सांस्कृतिक पहचान की संवाहक रही हैं। उनका वक्तव्य सभी उपस्थितों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य किया।

डॉ. धर्मेंद्र ने विशेष रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाषाई प्रावधानों पर जोर देते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भारतीय भाषाओं को शिक्षा प्रणाली में उचित स्थान दिया जाए। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से भाषाई समन्वय और संवाद को भारतीय संस्कृति की आत्मा के रूप में प्रस्तुत किया।

शिक्षा में मातृभाषा की भूमिका

 

इसके बाद प्रो. सुधीर प्रताप सिंह ने अपने वक्तव्य में शिक्षा प्रणाली में भारतीय भाषाओं की भूमिका और चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने जोर देकर कहा कि मातृभाषा में शिक्षा न केवल ज्ञान के प्रभावी संप्रेषण का माध्यम है, बल्कि यह सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण का भी एक महत्वपूर्ण साधन है।

प्रो. सुधीर ने कहा, “यदि हम मातृभाषा में शिक्षा को बनाए रखते हैं, तो हम केवल ज्ञान नहीं बल्कि एक संस्कृति को भी संजोते हैं।” उनके विचार ने मातृभाषा के महत्व को फिर से स्थापित करने का कार्य किया, और यह स्पष्ट किया कि कैसे मातृभाषा में शिक्षा छात्रों के मानसिक विकास में सहायक हो सकती है।

साहित्य में सांस्कृतिक एकता की अभिव्यक्ति

 

इस सत्र का समापन प्रो. जगदेव कुमार शर्मा के वक्तव्य के साथ हुआ। उन्होंने भारतीय भाषाओं के जरिए साहित्य में सांस्कृतिक एकता की अभिव्यक्ति पर गहरी चर्चा की। प्रो. जगदेव ने अनेक साहित्यिक उदाहरणों के माध्यम से यह दर्शाया कि कैसे भारत की विभिन्न भाषाएं समान सांस्कृतिक मूल्यों की अभिव्यक्ति करती हैं। उन्होंने बताया कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज के सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को भी प्रतिबिंबित करता है।

उनके विचारों ने सभी उपस्थितों को प्रेरित किया कि वे भारतीय भाषाओं के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को समझें और इन्हें संरक्षित करने का प्रयास करें।

प्रश्नोत्तर सत्र की विशेषताएं

 

सत्र के अंत में प्रतिभागियों के साथ प्रश्नोत्तर का दौर चला, जिसमें वक्ताओं ने विभिन्न जिज्ञासाओं का संतोषजनक समाधान प्रस्तुत किया। यह हिस्सा विशेष रूप से शिक्षाप्रद और जानकारी से भरा रहा। प्रतिभागियों ने अपने विचार साझा किए और वक्ताओं का आभार व्यक्त किया। यह सत्र न केवल बौद्धिक रूप से समृद्ध रहा, बल्कि विचारों के आदान-प्रदान से सभी को भारतीय भाषाओं की दिशा में एक नई दृष्टि प्रदान की।

शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण

 

संगोष्ठी के दौरान विभिन्न शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें क्षेत्रीय भाषाओं के योगदान, शिक्षा में मातृभाषा की भूमिका, और मीडिया में भारतीय भाषाओं के प्रयोग जैसे विषयों पर बारिकी से चर्चा की गई। विद्यार्थियों और शोधार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और अपने विचार साझा किए। प्रस्तुत शोध पत्रों ने यह दर्शाया कि किस प्रकार क्षेत्रीय भाषाएं न केवल सांस्कृतिक धरोहर हैं, बल्कि वे सामाजिक बदलाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

संगोष्ठी का समापन और संदेश

अंत में धन्यवाद ज्ञापन के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ। आयोजकों ने सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों, और सहयोगियों का आभार व्यक्त किया। इस संगोष्ठी ने न केवल ज्ञानवर्धक विचारों का आदान-प्रदान किया, बल्कि प्रतिभागियों को भारतीय भाषाओं की समृद्ध विरासत को समझने और संरक्षित करने की प्रेरणा भी दी।

इस प्रकार, दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में आयोजित यह संगोष्ठी न केवल शिक्षा के महत्व को उजागर करती है, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता और भाषा के महत्व को भी पुनः स्थापित करती है। प्रतिभागियों ने इस संगोष्ठी से जो ज्ञान और अनुभव प्राप्त किया, वह निश्चित रूप से उन्हें अपनी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने हेतु प्रेरित करेगा।

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