Nepal Crisis: आखिर नेपाल के पीछे कौन है ? जो कर रहा भारत के साथ रिश्तों पर चोट है
नई दिल्ली, बीएनएम न्यूज। नेपाल ने फिर हिमाक़त की, नोट पर भारत के हिस्से को खुद के नक़्शे में दिखाया, हिंदुस्तान को ग़ुस्सा आया। नेपाली नोट में खोट है, साथ में चीन की ओट है, तभी रिश्तों पर चोट है। लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी भारत के अखंड, अटल इलाक़े हैं। नेपाल ने नए नोट में इन हिस्सों पर ख़ुद का हक़ जता दिया है।
भारत में कहते हैं- घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। विस्तारवाद चीन की पहचान है, नेपाल के नोट में चीनी धोखे के निशान हैं। साल भर पहले नेपाली प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड भारत आए, दोस्ती के कुछ अल्फ़ाज़ कहे लेकिन उनके नोट में अब खोट है। सवाल ये नहीं कि नेपाल की नीयत क्या है, सवाल है कि बार बार चीन नेपाल के ख़तरनाक़ हाथों में क्यों खेल रहा है।
खबर के पीछे की खबर जानना और समझना जरूरी है। नेपाल और चीन की सेना के बीच पिछले कुछ महीनों में नज़दीकियां बढ़ी हैं। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बड़े अधिकारी लगातार नेपाल की खाक छान रहे हैं। भारत-नेपाल सीमा से कुछ दूरी पर है पोखरा शहर जहां चीन ने अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया हुआ है, जिसके लिए नेपाल ने ड्रैगन से अरबों का क़र्ज ले रखा है।
दरअसल, भारत-नेपाल के बीच केपी शर्मा ओली रिश्तों की ऐसी उलझी गांठ बांध कर गए हैं कि उसका सुलझना मुश्किल हो रहा है। केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री थे तो चीन के हाथ की कठपुतली बने हुए थे। क्रोनोलॉजी समझिए, ओली की झोली नेपाल में मजबूत होने लगी है, ड्रैगन आग में घी डाल रहा है।
प्रचंड दो नाव की सवारी कर रहे हैं। चीन को ख़ुश रखना चाहते हैं और भारत के साथ ज़ुबान से मधुर संबंध रखने का दावा भी करते हैं।
प्रचंड ने उस नेपाली कांग्रेस के साथ सरकार बनाई जिसका झुकाव भारत की तरफ़ ज्यादा रहा। प्रचंड पहली विदेश यात्रा पर भारत आए। जब प्रचंड को सियासी फ़ायदा नहीं मिला तो चीन समर्थक केपी शर्मा ओली के साथ करीबी बढ़ा ली और नेपाली कांग्रेस को झटक दिया। लेकिन प्रचंड को समझना होगा कि शासक दो नाव की सवारी नहीं करता, पैर फिसला तो गहराई ख़तरनाक़ मिलेगी। सैन्य, सामरिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक नज़रिए से भारत सक्षम और सशक्त है- ये नेपाल को समझना होगा। वैसे प्रचंड जी, साज़िश पर सीमाब अकबराबादी की कलम कुछ यूं चलती है-
“ये साज़िश कर रहे हैं चंद तिनके आशियाने के
कि बिजली को किसी सूरत असीर-ए-आशियां कर लें”
डॉ मेहक जोंजुआ
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