सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने कहा, विनेश फोगाट हमेशा भारतीय खेल प्रशंसक के दिलों में रहेंगी

विनेश के स्वागत के लिए लोग तिरंगे झंडे के साथ एयरपोर्ट पर पहुंचे थे।

सुनील गावस्कर। जिस खबर से खेल जगत से जुड़े लोग और खेल के प्रशंसक डर रहे थे, उसका निर्णय निर्धारित समय से पहले ही आ गया। विनेश फोगाट को अयोग्य करार दिए जाने के विरुद्ध किए गए अपील को खेल पंचाट न्यायालय (सीएएस) ने एक ही लाइन में खारिज कर दिया। इससे उन लाखों भारतीयों की उम्मीदें टूट गईं जो रजत पदक की आशा कर रहे थे।जिन लोगों को यह एक मामूली सी गलती लगी, वह कोर्ट की नजरों में नियमों का उल्लंघन था और इस फैसले ने लाखों उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

इस लेख के लिखे जाने तक न्यायालय की ओर से विस्तार में आदेश नहीं आया है। इस फैसले के विरुद्ध कोई और अपील होगी या नहीं यह देखना होगा। फिलहाल, खेल प्रशंसकों और खेल जगत में निराशा और उदासी है। सभी ने कहा कि विनेश ने अपने व्यवहार से दिल जीत लिया। हालांकि, यह ओलिंपिक में पदक जीतने जैसा नहीं है, लेकिन यह सच है कि वह हमेशा भारतीय खेल प्रशंसक के दिलों में रहेंगी।

न्यायालय के इस निर्णय पर कई प्रतिक्रियाएं आई हैं जिससे पता लगता है कि विनेश को देश कितना महत्व देता है, जिन्होंने अपनी सांसें रोककर रखीं, क्योंकि वह न केवल कुश्ती के मैदान पर बल्कि दिल्ली की सड़कों पर भी अपने साथी एथलीटों के लिए न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रही थीं। बजरंग पूनिया, जो सड़कों पर उस कठिन वक्त में उनके साथ थे, उन्होंने कहा कि विनेश विश्व चैंपियन व रुस्तम-ए-हिंद हैं। लेकिन, उन्होंने यह शायद यह ज्यादा ही कह दिया कि जिनको पदक चाहिए, वो इसे 15 रुपये में खरीद सकते हैं। यह सही है या गलत यह तो पता नहीं, लेकिन अगर वह उनसे पदक खरीदने के लिए कह रहे हैं, तो वह न केवल न्याय के लिए विनेश की लड़ाई को कमतर आंक रहे हैं, बल्कि पदक जीतने वालों को भी कमतर समझ रहे हैं।

उन्होंने भी पदक जीते हैं, तो क्या उसे 15 रुपये में खरीदा था? या पदक जीतने वाले दूसरे एथलीटों ने खरीदा था? नहीं सर, उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनत की और कई बलिदान दिए जिसके बाद विजेता बने। हो सकता है कि वह विनेश के साथ एकता दिखाने में थोड़ा बहक गए हों, लेकिन शायद उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया है कि लाखों भारतीय उनके साथ खड़े थे। हर खेल प्रशंसक इसके सुखद अंत की उम्मीद कर रहा है। चलिए देखते हैं इसका अंत कैसा रहता है।

भारतीय क्रिकेट में घरेलू सत्र की शुरुआत दलीप ट्राफी से होने वाली है और इस बार कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी इसमें हिस्सा लेंगे। चयनकर्ताओं के पास यह एकमात्र तरीका है जहां वह गेंदबाजों व बल्लेबाजों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए आंक पाएंगे। कई बार यह देखने को मिलता है कि अंडर-19 खिलाड़ी प्रथम श्रेणी स्तर पर अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करता है क्योंकि विपक्षी टीम का स्तर जूनियर टूर्नामेंटों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक होता है। वहीं, जो खिलाड़ी राज्यों के टी-20 लीग में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उसे सैयद मुश्ताक अली ट्राफी या आइपीएल में नहीं दोहरा पाते क्योंकि वहां का स्तर कहीं अधिक ऊंचा होता है। फ्रेंचाइजी को अब यह लग रहा है कि राज्यों की प्रीमियर लीग में चमकने वाले खिलाड़ियों के लिए करोड़ों खर्च करना अच्छा विचार नहीं है।

चयनकर्ताओं ने कप्तान रोहित शर्मा और विराट कोहली को दलीप ट्राफी के लिए नहीं चुना है, और वह शायद बांग्लादेश टेस्ट सीरीज में बिना अधिक अभ्यास किए उतरेंगे। हालांकि, जसप्रीत बुमराह जैसे खिलाड़ी के लिए सावधानी बरतने की जरूरत है, लेकिन बल्लेबाजों को मैदान पर समय गुजारना चाहिए। जब कोई खिलाड़ी अपने खेल में 30 की आयु में पहुंचता है तो उसे लगातार खेलने की जरूरत होती है, जिससे वह अपने खेल के उच्च मानकों को बरकरार रख सके। जब कोई खिलाड़ी लंबे समय के लिए खेल से आराम लेता है तो उसकी मांसपेशियों की याददाश्त कुछ हद तक कमजोर हो जाती है और पहले की तरह खेल पाना उसके लिए आसान नहीं होता।

यह बहुत निराशाजनक है कि आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एकादश अभ्यास मैच को दो दिवसीय कर दिया गया है। वरिष्ठ खिलाड़ियों को आराम देना जरूरी है, लेकिन युवा खिलाड़ियों को दो दिवसीय मैच के बजाय एक उचित प्रथम श्रेणी मैच में खेलने का अवसर मिलना चाहिए, जो न हमारे देश में होगा और न आस्ट्रेलिया में। आखिरकार, टीम वहां क्रिकेट खेलने जा रही है, न कि आराम करने। आस्ट्रेलिया बदला लेने के लिए तरस रहा है और भारतीयों को वहां सीरीज जीतकर हैट ट्रिक लगाने के लिए बेहतर प्रदर्शन करना होगा। अभी भी समय है कि इसे तीन दिवसीय खेल में बदल दिया जाए और युवा खिलाड़ियों को विश्व टेस्ट चैंपियन के विरुद्ध सफल होने का अवसर दिया जाए। बीसीसीआइ, आप यह कर सकते हो।

 

 

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