भगत सिंह: क्रांति के प्रतीक
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान में फैसलाबाद) के एक सिख परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से क्षुब्ध थे। उनका जीवन क्रांति और देशप्रेम की गाथाओं से भरा पड़ा है। भगत सिंह ने राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्हें ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या के आरोप में 23 मार्च 1931 को लाहौर के शादमान चौक पर फांसी दी गई थी। उनकी यह कार्रवाई अंग्रेजों के अन्याय और अत्याचार का प्रतिशोध थी, जिसे उन्होंने लाला लाजपत राय की निर्मम पिटाई और उनकी मृत्यु के बाद अंजाम दिया था।
पाकिस्तान में भगत सिंह की विरासत
वर्तमान में शादमान चौक, जहां भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई थी, लाहौर शहर में एक ऐतिहासिक स्थान है। भगत सिंह के योगदान को देखते हुए और उन्हें सम्मान देने के लिए वहां उनकी प्रतिमा लगाने और चौक का नाम उनके नाम पर रखने की योजना बनी थी। लाहौर हाईकोर्ट ने 5 सितंबर 2018 को पंजाब सरकार को निर्देश भी दिए थे कि भगत सिंह के नाम पर शादमान चौक का नामकरण किया जाए। यह निर्देश भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान के अध्यक्ष इम्तियाज रशीद कुरैशी द्वारा दायर एक याचिका के बाद आया था।
क्रांतिकारी नहीं, ‘आतंकवादी’?
हालांकि, अब यह योजना पूरी तरह रद्द कर दी गई है। इसके पीछे एक प्रमुख कारण यह बताया गया कि एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी, कमोडोर तारिक मजीद, ने भगत सिंह को ‘क्रांतिकारी’ मानने से इनकार करते हुए उन्हें ‘आतंकवादी’ करार दिया है। उन्होंने दावा किया कि भगत सिंह ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की थी, जो आज के संदर्भ में एक आतंकवादी कृत्य है। मजीद का यह भी कहना है कि भगत सिंह का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं था। उन्होंने भगत सिंह को एक अपराधी के रूप में चित्रित किया और इस बारे में फर्जी प्रचार करने का आरोप भी भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पर लगाया।
कट्टरपंथ का प्रभाव
कमोडोर मजीद ने यह भी दावा किया कि भगत सिंह मुसलमानों के प्रति शत्रुतापूर्ण धार्मिक नेताओं से प्रभावित थे। उनके इस विचार ने पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों को समर्थन दिया, जिन्होंने शादमान चौक का नाम बदलने और वहां भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित करने का विरोध किया। मजीद के इस बयान और कट्टरपंथी तत्वों के दबाव के चलते पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद योजना को रद्द कर दिया।
अदालत का आदेश और विवाद
लाहौर हाईकोर्ट के न्यायाधीश शाहिद जमील खान ने अपने आदेश में साफ कहा था कि शादमान चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखा जाए। मगर, इस फैसले को लागू नहीं किया गया। भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन ने लाहौर महानगर निगम की इस अनदेखी को अदालत की अवमानना माना है। इम्तियाज रशीद कुरैशी ने कहा है कि वे सेवानिवृत्त कमोडोर तारिक मजीद को कानूनी नोटिस भेजेंगे और अदालत में अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।
विचारधारा का संघर्ष
यह पूरा मामला केवल भगत सिंह के नाम पर चौक का नामकरण करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विचारधाराओं के बीच संघर्ष का प्रतीक भी है। एक ओर भारत में भगत सिंह को एक महान क्रांतिकारी, शहीद और देशभक्त माना जाता है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। वहीं, पाकिस्तान में उन्हें अपराधी या आतंकवादी के रूप में देखा जाता है। यह अंतर केवल राष्ट्रीय दृष्टिकोण का नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक घटनाओं को किस दृष्टि से देखा जाए, इस पर भी आधारित है।
भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में असर
भगत सिंह का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच अक्सर चर्चा का विषय बनता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई ऐसे स्थान अब पाकिस्तान में हैं, जिनका भारत के इतिहास में विशेष महत्व है। शादमान चौक उन्हीं में से एक है। भारत में यह स्थान स्वतंत्रता की भावना और बलिदान का प्रतीक है, जबकि पाकिस्तान में यह विवाद का कारण बना हुआ है।
भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी का सम्मान और उनकी विरासत पर चर्चा केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह इस बात को भी दर्शाता है कि इतिहास को हर देश अपने नजरिए से कैसे देखता है। जहां एक ओर भगत सिंह ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में स्वतंत्रता की ज्वाला भड़काई, वहीं पाकिस्तान में उन्हें आतंकवादी मानना उनकी विचारधारा और ऐतिहासिक दृष्टिकोण का प्रतिबिंब है। यह विवाद अभी भी जारी है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन की कानूनी लड़ाई क्या रंग लाती है।